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चूर्णप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[२१]
(१२३२) गङ्गाधरचूर्णम् (द्वितीयम् ) सेभलकी छाल, भांग, और भांगरा समान भाग तथा (भा. प्र. । अति.)
कुडेकी छाल सबके बराबर लेकर चूर्ण बना लीजिए। मुस्तावत्सकबीजं मोचरसो बिल्वधातकीलोध्रम् । इसे बकरीके दूध, मण्ड अथवा शहदके साथ गुडमथितसंप्रयुक्तं गङ्गामपि वेगवाहिनी रुन्ध्यात्।। चाटनेसे नानावर्णसंयुक्त (रंग बिरंगा) पुराना और
नागरमोथा. इन्द्रजौ. मोचरस, बेलगिरी. अनेक प्रकारका अतिसार, कष्टसाध्य ग्रहणी, तृष्णा. धायके फूल और लोधके चूर्णको गुड़ और मथित
भयङ्कर खांसी, अनेक प्रकारके ज्वर, दुस्साध्यशोथ, (जलरहित, कपड़ेसे छना हुवा दही)के साथ सेवन
अरुचि और पाण्डु रोग अवश्य नष्ट होता है ।
( मात्रा-१॥ माशा दिनमें ३-४ बार ) करनेसे वेगवान् गङ्गोपम अतिसार भी नष्ट हो
(१२३४ ) गङ्गाधरचूर्णम् (वृद्धम् ) जाता है।
(भा. प्र. | अति.) (मात्रा-१ माशा। दिनमें २-३ बार खिलाएं।) मुस्तारलुकशुण्ठीभिर्धातकीलोध्रवालकैः । (१२३३ ) गङ्गाधरचूर्णम् ( मध्यम ) बिल्वमोचरसाभ्याश्च पाठेन्द्रयववत्सकैः।। (भै. र. । ग्रहण्य.)
आम्रवीजसमङ्गातिविषायुक्तैश्च चूर्णितः । बिल्वं शृङ्गाटकदलं दाडिमं दलमेव च। मधुतण्डुलपानीयं पीतं हन्ति प्रवाहिकाम् ॥ समुस्तातिविषाचैव सर्जश्वेतश्च धातकी॥ हन्ति सर्वानतीसारान्ग्रहणी हन्ति वेगतः। मरिचं पिप्पलीशुण्ठी दावी भूनिम्बनिम्बकम्। वृद्धं गङ्गाधरं चूर्ण रुन्ध्याद्गीर्वाणवाहिनीम् ॥ जम्बूरसाञ्जनश्चैव कुटजस्य फलं तथा ॥
नागरमोथा, अरलु (सोना पाठा), सोंठ पाठा समझा हीवेरं शाल्मली वेष्टमेव च।। धायके फूल, नेत्रबाला, बेलगिरी, मोचरस, पाठा शक्राशनं भृङ्गराजचूर्ण देयं समं समम् ॥ (जलजमनी), इन्द्रजौ, कुडेकी छाल, आमकी कुटजस्य खचूर्ण सर्वचूर्णसमें मतम् ।। गुठलीका गर्भ [ गिरी], मजीठ और अतीस । समान एसत्गङ्गाधरं नाम महचूर्ण महागुणम् ।।
भाग लेकर चूर्ण बनाएं।
__इसे (१ माशेकी मात्रानुसार ) शहदमें मिलानानावर्णमतीसारं चिरजं बहुरूपिणम् ।
कर तण्डुल जल [चावलोंको पानीमें भिगोकर दुर्वारां ग्रहणी हन्ति तृष्णां कासदुर्जयम् ॥ नितारा हुवा जल )के साथ सेवन करनेसे प्रवृद्ध. ज्वरश्च विविधं हन्ति शोथश्चैव सुदारुणम् । । प्रवाहिका (पेचिश), सब प्रकारके अतिसार, और अरुचिं पाण्डुरोगश्च हन्यादेव न संशयः॥ ग्रहणी रोग अत्यन्त शीघ्र नष्ट होते हैं। छागीदुग्धेन मण्डेन मधुना वाथ लेहयेत् ॥ । गङ्गाधरचूर्णम् (बृहद् ) (भे.र. प्र.) ___ बेलगिरी, सिंघाड़े और अनारके पत्ते, मोथा, रस प्रकरणमें अवलोकन कीजिए. अतीस, सफेद राल, स्याह मिर्च, पीपल, सोंठ, (१२३५) गङ्गाधरचूर्णम् (भै. र. । ग्रह.) दारुहल्दी, चिरायता, नीमकी छाल, जामनकी मुस्तसैन्धवशुण्ठीभिर्धातकीलोध्रवत्सकैः। (गुठली), रसौत, इन्द्रजौ, पाटा, मजीठ, नेत्रबाला, । बिल्वमोचरसाभ्याश्च पाठेन्द्रयववालकैः ।।
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