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भारत
1- भैषज्य रत्नाकरः ।
अथ गकारादि चूर्णप्रकरणम्
(१२२९) गगनायस चूर्णम् (यो. चिं. । चूर्णा.) त्रिकटु त्रिसुगन्धञ्च लवङ्ग जातिकाफलम् । तुगाक्षीरी शटी शृङ्गी वाजिगन्धा च दाडिमी ॥ एतानि समभागानि सर्वतुल्यमयोरजः । आयसेन समं देयं गगनं च सुशोधितम् ।। यावन्त्येतानि चूर्णानि तावद्दद्यात्सितोपला । कर्षप्रमाणं दातव्यं खादयेच्च यथावलम् ॥ अनिञ्जननं हृद्यं प्रमेहं हन्ति दारुणम् । अश्मरीं मूत्रकृच्छ्रञ्च धातुस्थं विषमज्वरम् ॥ नाशयेच्च त्रिदोषश्च राजयक्ष्मज्वरापहम् । पीनसं कासश्वासनं रुच्यं श्वासहरं परम् ।।
त्रिकटु ( सोंठ, मिर्च, पीपल), त्रिसुगन्ध ( दालचीनी, इलायची, तेजपात ) लौंग, जावित्री, जायफल, बंसलोचन, कचूर, काकड़ासिंगी, असगन्ध और अनार दाना समान भाग और इन सबके समान शुद्ध लोह चूर्ण तथा अभ्रक भस्म एवं इन सबके बराबर मिश्री लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें ।
इसे १ कर्ष ( १ | तोले ) अथवा अग्निबलानुसार मात्रा से सेवन करना चाहिए ।
यह चूर्ण अग्निवर्द्धक, हृद्य, भयङ्कर प्रमेह, अमरी, मूत्रकृच्छ्र, धातुगत विषमज्वर, सन्निपात, यक्ष्मा, पीनस, खांसी और श्वास नाशक तथा रोचक है।
(लोह चूर्णके स्थान में लोह भस्म डालना उत्तम है ।) ( १२३० ) गंङ्गाधर चूर्णम्
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कट्वङ्गमुस्ते कुटजस्थ बीजमाम्रास्थि शुण्ठी जलरोध्रपाठा । जम्बूफलं कोमल बिल्वधात्रीविषायष्टयप्यथ धातकी च ॥ गङ्गाधरं नाम वदन्ति चूर्ण सर्वानतीसारगदान्निहन्ति ॥
(नोट- वैद्यजीवन में पाठ भिन्न है, प्रयोग यही है | )
[ गकारादि
सोना पाठा, नागरमोथा, इन्द्रजौ, आमकी गुठलीका गर्भ (गिरी), सोंठ, नेत्रबाला, लोध, पाठा ( जलजमनी) जामन ( जामनकी गुठली ), बेलका कच्चा फल ( बेलगिरी ), आमला, अतीस, मुलैठी और घायके फूल । समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । यह गङ्गाधर नामक चूर्ण हर प्रकारके अतिसार रोगको नष्ट करता है ।
मात्रा - १ माशा, अनुपान - मथित ) । ( १२३१ ) गङ्गाधरचूर्णम् (भा. प्र. । अति.) मोचरसमुस्तानागरपाठारलुधातकीकुसुमैः । चूर्णमथितसमेतं रुणद्धि गङ्गाप्रवाहमपि सद्यः ॥
मोचरस, मोथा, सोंठ, पाठा ( जलजमनी ) अरलु ( सोना पाठा ) और धायके फूल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे मथित ( जलरहित, वस्त्रसे छने हुवे दही) के साथ सेवन करनेसे गङ्गाके समान वेगअतिसार भी नष्ट हो जाता है ।
(ग. नि. । अति ; वै. जी. । १ वि . ) सेवन कराएं। )
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( मात्रा १ माशा, दिन भरमें २-३ वार