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कषायमकरणम्]
द्वितीयो भागः।
[१९]
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वैद्यको चाहिये कि पाण्डु रोगीको गोमय काथो हन्यात्सन्निपातान्समग्रान् । रस (गायके गोबरका स्वरस) धी, गुड़ और बुद्धिभ्रंशं स्वेदशैत्यालापान् ॥ चावलोंके पानीको एकत्र करके सेवन करावे ।। शूलाध्मानं विद्रधिश्लेष्मवातान् ।
(प्र० वि० चावलोंका पानी १२ तो० और वातव्याधीन मूतिकानाञ्च तद्वत् ॥ अन्य ओषधियाँ एक एक तोला लेनी चाहिएं। पीपलामूल, इन्द्रजौ, देवदार, बायबिडंग, तण्डुल जल विधि प्रथम भागके परिशिष्टमें अव- भारंगी, भांगरा, त्रिकुटा [ संठ, मिर्च, पीपल ] लोकन कीजिए ।)
चीता, कायफल, पोखरमूल, रास्ना, हरी, दोनों (१२२४ ) गोमूत्रयोगः (धू. मा. । शोथोदर.)
कटहली, अजवायन, निर्गुण्डी, चिरायता, बच, गोमूत्रयुक्तं महिषीपयो वा क्षीरं गवां वा त्रिफलाविमिश्रम् ।
चव्य और पारेका काथ सब प्रकारके सन्निपात, क्षीरामभुक्केवलमेव गव्यं
बुद्धिभ्रंश, स्वेद, शीत, प्रलाप, शूल, अफारा, मत्रं पिबेद्वा श्वयथदरेष ॥ विद्रधि, कफवात रोग, वातव्याधि, और सूतिका भैंसके दूधमें गोमूत्र मिलाकर, अथवा त्रिफला
रोगोंका नाश करता है। युक्त गोदुग्ध वा केवल गोमूत्र सेवन करने और ( १२२७ ) ग्रन्थिकादि क्वाथः केवल क्षीरान ( दूध भात ) खानेसे शोथोदर
(वृ. नि. र. । सन्नि., यो. र. ज्व.)
ग्रन्थिककलितरुपथ्याकृतमालशिवाटरूपकै( उदरकी सूजन) रोग नष्ट होता है।
विहितः। (प्र० वि० ३ से ६ माशेकी मात्रानुसार | एरण्ड तैलयुक्तः काथो हन्यान्मरुन्मांधम् ॥ त्रिफलेका चूर्ण अथवा त्रिफलेसे यथा विधि दुग्ध पीपलामूल, बहेड़ा, हर्र, अमलतासका गूदा, सिद्ध करके पिया जा सकता है।)
आमला और अडूसेके काथमें अरण्डका तेल (कास्टर (१२२५) ग्रन्थिकादि काथः
आइल) डालकर पीनेसे वातविकार नष्ट होता है । (यो० र०। उरु० चि०)
(प्र. वि. एरण्ड तेल उष्ण काथमें, और ग्रन्थिकारुष्क कृष्णानां काथं क्षौद्रान्वितं पिबेत्। १ तोलेकी मात्रासे मिलाना चाहिए तथा उष्ण
पीपलामूल, भिलावा और पीपलके काथमें ही पीना चाहिए । ) शहद डालकर पीनेसे उरुस्तम्भ रोग नष्ट होता है। (१२२८ ) ग्रन्थिकादि काथ: (प्र० वि० शहद काथका सोलहवां भाग |
(वृ. नि. र.। ज्वर०) मिलाना चाहिए।)
ग्रन्थिकं पर्पटो वासा भार्गी विश्वा गुडूचिका। ( १२२६ ) ग्रन्थिकादिकाथः (यो. र.। सन्नि.) एभिः सुसाधितं तोयं तीब्रवातज्वरापहम् ।।
ग्रन्थीन्द्रजामरतस्कृमिशत्रुभार्गी, पीपलामूल, पितपापड़ा, अडूसा, भारंगी, सोंठ भृङ्गत्रिकट्वनलकटफलपौष्कराणां ।।
- और गिलोयका काथ तीव्र वातज्वरका नाश
करता है। रास्नाभयाहतिकाद्वयदीप्यभूत
इति गकारादि कषायपकरणम् । केशीकिरातकवचाच्चविकाकीणाम् ॥
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