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भारत - भैषज्य - रत्नाकरः ।
[ ३७० ]
शर्करामधुकं द्राक्षा मधुयष्टी निदिग्धिका । काकोलीक्षीरकाकोली त्रिफला नागकेसरम् । पिप्पली चन्दनं मुस्तं त्रायमाणा तथोत्पलम् । घृतं प्रस्थं समं क्षीरं कल्कैरेतैः शनैः पचेत् ॥ हन्यात्सतिमिरं काचं नक्तान्ध्यं शुक्रमेव च । तथा स्रावं च कण्डूं च श्वयथुं च कषायताम् || कलुषत्वं च नेत्रस्य विङ्कर्त्मपटलान्वितम् । बहुनाऽत्र किमुक्तेन सर्वान्नेत्रामयान्हरेत् ॥ यस्य चोपहता दृष्टि सूर्याग्निभ्यां प्रपश्यतः । तस्मै तद्भेषजं प्रोक्तं मुनिभिः परमं हितम् ॥ मार्जितं दर्पणं यद्वत्परां निर्मलतां व्रजेत् । तद्वदेतेन पीतेन नेत्रं निर्मलता मियात् ॥
हर्र १००, बहेड़े २०० और आमले ४०० तथा बासा और भंगरा चार चारसो तोले लेकर सबको ४ गुने पानी में पकाइये, जब चौथा भाग पानी शेष रहे तो क्वाथको छान लीजिए । तत्पश्चात् इस काथ और खांड, महुवे के फूल, मुनक्का, मुलैठी, कटेली, काकोली, क्षीरकाकोली, त्रिफला, नागकेसर, पीपल, चन्दन, मोथा, त्रायमाणा और नीलोफरके कक तथा समान भाग दूधके साथ ९ प्रस्थ (१ सेर) घृत पका लीजिए ।
इसके सेवन से तिमिर, काच, नक्तान्ध्य (रतौंधा) नेत्रशुक्र (फूला), नेत्रस्राव, नेत्रकण्डु ( आंख में खाज आना), सूजन, कषायता, नेत्रकी कलुषता, पटल, विड्वर्त्म, इत्यादि समस्त नेत्ररोग नष्ट होते हैं ।
सूर्य और अनिकी ओर देखनेसे नष्टदृष्टि इसके सेवन से यथावत् हो जाती है ।
जिस प्रकार मांजने से दर्पण स्वच्छ हो जाता
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[ तकारादि
है उसी प्रकार इसके सेवन से दृष्टि भी अत्यन्त निर्मल हो जाती है ।
नोट - मूलपाठ में हर्र, बहेड़े और आमलेकी स्पष्ट तोल नहीं लिखी ; यह सन्देह होता है कि हरे इत्यादि १०० - २००-४०० नग ली जाये या पल अथवा तोला ? परन्तु बासा और भंगरा समान भाग लेने के लिए लिखा है इससे प्रकट होता है कि १००-२०० और ४०० नग नहीं अपितु पल या तोलोंकी संख्या हैं । अब यदि इनको तोला भी मानें तो भी सबका मिलकर १५०० तोले (लगभग १८ सेर) काथ होता है। जो १ सेर घीके लिए बहुत अधिक है, इसलिए सब काथ एक बार में न डालकर हरबार चार सेर डालना चाहिए और इस प्रकार १ प्रस्थ धीको ५ बार पकाकर सिद्ध करना चाहिए । त्रिफलायास्त्रयः प्रस्थाः विडङ्गं प्रस्थ एव च । (२४५२) त्रिफला घृतम् (भै. र. । कृमि . ) दीपनं दशमूलञ्च लाभतः समुपाहरेत् ॥ पादशेषे जलद्रोणे शते सर्पिर्विपाचयेत् । प्रस्थोन्मितं सिन्धुयुतं तत्परं कृमिनाशनम् ॥ त्रिफला घृतमेतद्धि ले शर्करया सह ॥
त्रिफला ३ सेर, बायबिडंग १ सेर और यदि मिल सकें तो अजवायन और दशमूल भी १-१ सेर लेकर सबको द्रोण (१६ सेर ) पानीमें पकाएं। जब ४ सेर पानी शेष रहे तो छानकर उसमें १ सेर घी और पावसेर सेंधानमक मिलाकर पकाइये । जब सब पानी जल जाय तो घीको छान लीजिए ।
इसे खाण्डमें मिलाकर चाटने से कृमिरोग नष्ट होता है । (मात्रा- -१ तोले तक । )
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