________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
घृतपकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ ३७१)
(२४५३) त्रिफलाद्यं घृतम् (वा.भ.।उ.अ.१३) त्रिफलाका क्वाथ १ सेर, भंगरेका रस १ सेर, त्रिफलाष्टपलं क्वाथ्यं पादशेष जलाढके। बासेका रस १ सेर, बकरीका दूध १ सेर, घी १ तेन तुल्यपयस्केन त्रिफलापलकल्कवान् ॥ । सेर और पीपल, मिश्री, मुनक्का, त्रिफला, नीलोफर, अर्द्धप्रस्थो घृतात्सिद्धः सितया माक्षिकेण वा। मुलैठी, क्षीरकाकोली, गिलोय, कटेली, मजीठ, युक्तं पिबेत्तत्तिमिरी तयुक्तं वा वरारसम् ॥ पद्माख, खस, चन्दन, सारिवा और देवदारुका आठ पल (४० तोले) त्रिफलाको १ आढक
११-१। तोला अत्यन्त महीन पिसा हुआ कल्क (४ सेर) पानीमें पकाकर १ सेर पानी शेष रक्खें
| लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकाइये। जब समस्त और छानकर उसमें १ सेर दूध तथा १ पल
जलांश जल जाय तो घृतको छान लीजिए। (५ तोले) त्रिफलेका कल्क और आधा सेर घी इसे सेवन करनेसे रक्तदुष्टि, रक्तस्राव, नक्तामिलाकर पकाएं। जब सब पानी जल जाय तो न्थ्य (रतौंधा), तिमिर, काच, और सूर्यकेतेजको घृतको छान लें।
न सहना आदि समस्त नेत्ररोग नष्ट होते और इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चाटने या
बलवर्ण तथा अग्निकी वृद्धि होती है। त्रिफलाके क्वाथके साथ पीनेसे तिमिररोग नष्ट (२४५५) त्रिफलाद्यं घृतम् (ग. नि.। घृता.) होता है।
त्रिफला मदन कुष्ठं शाङ्गेष्टा रजनीद्वयम् । (२४५४) त्रिफलाद्यं घृतम् (ग. नि. । घृता.) ! शुकनासा काकमाची हपुषा ऽतिविषा वचा॥ त्रिफलाया रसपस्थं प्रस्थं भृङ्गरसस्य च । । पाठा कोशातकी मूर्वा तिक्ता काकादनी घृतम् । पीडयित्वा वृष वालं रसप्रस्थं प्रदापयेत् ॥
एतत्कषायकल्काभ्यां सिद्धं पीतं घृतोत्तमम् ।। अजाक्षीरस्य च प्रस्थं कार्षिकैः श्लक्ष्णपेषितैः।।
। विशीयमाणं विध्वस्तस्नायुकेशनखं नरम् । पिप्पलीशर्कराद्राक्षात्रिफलानीलमुत्पलम ॥ कुष्ठातुरं तु जनयेन्मुमूर्षुमपि निर्गदम् ॥ मधुकं क्षीरकाकोलीमधुपर्णीनिदिग्धिका । त्रिफला, मैनफल, कूठ, काकजंघा, हल्दी, मञ्जिष्ठापद्मकोशीरसारिवादारुचन्दनैः ॥ दारुहल्दी, शुकनासा, काकमाची (मकोय), हाऊघृतं प्रस्थं पचेत् प्राज्ञः कल्कैरेभिः समन्वितम्। बेर, अतीस, बच, पाठा, कोशातकी (कड़वी तूंबी), ऊर्ध्वपानमधःपानं मध्ये पानं विशिष्यते ॥ मूर्वा, कुटकी और चौंटली । समान भाग लेकर अतिपदुष्टे रक्ते च रक्ते वातिनुते तथा। इनके क्वाथ और कल्कसे घृत पका लीजिए। नक्तान्ध्ये तिमिरे काचे सर्वनेत्ररुजासु च ॥ इस घृतको पीनेसे मृत्प्रायः कुष्ठरोगी भी बकविद्योतितं भ्रान्तं सूर्य तेजोद्विपं तथा। स्वस्थ हो जाता है। यदि स्नायु गल गए हों, गृध्रदृष्टिकरं धन्यं बलवर्णाग्निवर्धनम् ॥ या केश और नखादि गिर गए हों तो वह भी त्रिफलाया घृतं सिद्धं सर्वनेत्ररुजान्तकृत् ॥ । ठीक हो जाते हैं।
For Private And Personal