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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir घृतमकरणम् ] द्वितीयो भागः। [३६५ ] wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww दध्नोपेतं यावशूकांशविल्वैः। । (२४३७) तिल्वकाद्यं घृतम् (ग. नि.घृता.) सर्पिष्पस्थं हन्ति तत्सेव्यमानम् ॥ तिल्वकस्य पलान्यष्टौ त्वचस्तु सुकृतादतः । दुष्टान्वातानेकसर्वाङ्गसंस्थान । | अंशुमत्युरुबूकञ्च विल्वायश्च पृथक् पलम् ॥ योनिव्यापद्वध्नगुल्मोदरश्च ॥ यवकोलकुलत्थानां प्रस्थं प्रस्थं फलत्रिकात् । लोध ८ पल (४० तोले ), बच १ प्रस्थ तत्साधयेज्जलद्रोणे चाष्टभागावशेषितम् ।। (१ सेर), संहजनेकी छाल, बेल, सोनापाठा (अरलु) घृतपस्थं पचेत्तेन दत्वा दधस्तथाढकम् । . की छाल, खम्भारीकी छाल, पाढलछाल, अरणी, | कर्षेण यावशूकस्य पकं तदवचूर्णयेत् ॥ अरण्डमूल, कटैली और निसोत १-१ पल (५- | एतत्तु तैल्वकं नाम जीर्णज्वरविषापहम्। ५ तोले) लेकर सबको १६ सेर पानीमें पकाइये। कृमिकुष्ठहरश्चैव शोफपाण्ड्डामयापहम् ॥ जब ४ सेर पानी जल जाय तो उसे छानकर ___ लोध आठ पल, मेंडफलकी छाल, शालपर्णी, उसमें १ प्रस्थ (१ सेर) घी, ४ सेर दही और १०-१० तोले जवाखार तथा बेलकी छालका अरण्डमूल, बेलछाल, अरलुकी छाल, खम्भारीछाल, कल्क मिलाकर पकाइये। पाढलछाल और अरनी १-१ पल (५-५ तोले) __ इसके सेवनसे एकांगगत तथा सागगन दुष्ट तथा जौ,बेर,कुलत्थ और त्रिफला(हर्र,बहेड़ा,आमला) वातव्याधि, योनिरोग, बध्न और गुल्मरोग तथा १-१ प्रस्थ (८० तोले) लेकर सबको ३२ सेर उदररोग नष्ट होते हैं। पानीमें पकाइये जब ४ सेर पानी शेष रहे तो (२४३६) तिल्वकाख्यं घृतम् उसे छानकर उसके साथ १ आढक (४ सेर) (वं. से. । वातव्याधि.) दही मिलाकर १ प्रस्थ घृत पकाइये और सब त्रिफला शजिनी दन्ती विडङ्गं त्रिता सुधा। पानी जल जानेके पश्चात् घीमें १ कर्ष (१। तोला) कार्षिकाणि पवेत्तानि तिल्वकस्य पलेन च ॥ जवाखार मिला दीजिए। दनि च त्रिवृताकाथे घृतपस्थं चतुर्गुणे।। इसके सेवनसे जीर्णज्वर, विष, कृमि, कुष्ठ, तिल्वकाख्यं घृतं तत्स्याद्विरेके वातरोगिणम॥ शोथ और पाण्डुरोग नष्ट होता है। ____ हर्र, बहेड़ा, आमला, शंखपुष्पी, दन्ती, बाय (२४३८) तुरङ्गगन्धावृतम् यो.स.। समु.५) बिडङ्ग, निसोत और थूहर (सेंड) का दूध १-१ | तुरनगन्धाकाथेन विपचेदाज्यमुत्तमम् । कर्ष (१।-१। तोला)तथा लोध १ पल (५ तोले) ऋतुकाले मुहुःपीतं वन्ध्यानां गर्भदं परम् ॥ लेकर इनके कल्क तथा १ प्रस्थ दही ओर ४ प्रस्थ असगन्धके काथके साथ पका हुवा घृत ऋतुनिसोतके काथके साथ १ प्रस्थ (८० तोले) घृत | कालमें सेवन करानेसे वन्ध्या स्त्री गर्भ धारण पका लीजिए। करती है। ___ यह घृत वातरोगियोंको विरेचन देनेके लिए (घी १ सेर । काथ ४ सेर। असगन्धका उपयोगी है। कल्क पाव सेर । मात्रा-१ तोला । अनुपान दूध ।) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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