SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३६६ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [तकारादि - - - (२४३९) तृणपञ्चमूलाद्यं घृतम् तालीसपत्र, जीवन्ती, और वच । एक एक कर्ष (भा. प्र. म. ख.; वं. से, । अश्म.) (११-१। तोला) तथा हींग २० तोले लेकर पञ्चमूल्यास्तृणाख्यायास्तथा गोक्षुरकस्य तु। सबको पानीके साथ पीसकर कल्क बनाइये । पृथग्दशपलान्भागाञ्जलद्रोणे विपाचयेत् ॥ तत्पश्चात् यह कल्क, १ सेर घी और ४ गुडगोक्षुरबीजश्च कल्कं तत्र प्रदापयेत् ।। सेर पानी एकत्र मिलाकर पकाइये। जब सब तत्सिद्धं मूत्रदोषेषु शर्करास्वश्मरीषु च ॥ पानी जल जाय तो घृतको छानकर रख लीजिए। स्नेहने भोजने चैव प्रयोज्यं सर्पिरुत्तमम् ॥ इसे अग्नि बलोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे ___ तृणपञ्चमूल (शर, दाब, कुश, कास और हिचकी, श्वास, शोथ, अग्निमांद्य, अर्श, ग्रहणीरोग ईख) तथा गोखरु । प्रत्येक वस्तु १०-१० पल | और हृदय तथा पसलीकी पीड़ा शान्त होती है। (५०-५० तोले) लेकर सबको ३२ सेर पानीम (२४४१) त्रायमाणाद्यं घृतम् पकाइये जब ४ सेर पानी शेष रहे तो छान (च. सं.। चि. अ. ५; वं. से.; भै. र.; धन्व.; लीजिए। इस क्वाथ और १०-१० तोले गुड़ च. द. । गुल्म.) और गोखरुके कल्कके साथ १ सेर घृत पका जले दशगुणे साध्यं त्रायमाणा चतुष्पलम् । लीजिए। : इसके सेवनसे मूत्रदोष, शर्करा और अश्मरी पश्चभागस्थितं पूतं कल्कैः सयोज्य कार्षिकैः।। नष्ट होती है। रोहिणीकटुकामुस्तत्रायमाणादुरालभाः। .. इसे स्नेहनके लिए अथवा भोजनमें प्रयुक्त द्राक्षातामलकीवीराजीवन्तीचन्दनोत्पलैः ।। करना चाहिए। रसस्यामलकानाश्च क्षीरस्य च घृतस्य च । (२४४०) तेजोवत्यादिघृतम् एतानि पृथगष्टाष्टौ दत्वा सम्पग्विपाचयेत् ॥ __ (च. द.; धन्वं.; । हिक्का; च. सं.;) पित्तगुल्मं रक्तगुल्म वीसपै पैसिकं ज्वरम् । तेजोवत्यभयाकुष्ठं पिप्पली कटुरोहिणी। हृद्रोगं कामलां कुष्ठं हन्यादेतद्धृतोत्तमम् ॥ भूतिकं पौष्करं मूलं पलाशं चित्रकं शठी ॥ ४ पल (२० तोले ) त्रायमाणाको ४० पल सौवर्चलं तामलकी सैन्धवं विल्वपेशिका । पानीमें पकाइये, जब २० पल पानी शेष रहे तो तालीसपत्रं जीवन्तीं वचा तैरक्षसंमितैः॥ उसे छान लीजिए । तत्पश्चात् मांसरोहिणी, हिङ्गपादैघृतं प्रस्थं पचेत्तोयचतुर्गुणे। कुटकी, मोथा, त्रायमाणा, धमासा, मुनक्का, भुईएतद्यथावलं पीत्वा हिक्काचासौ जयेन्नरः॥ आमला, खस, जीवन्ती, चन्दन और नीलोफर, शोथानिला ग्रहणीहत्पार्थरुज एव च ॥ १-१ कर्ष (११-१। तोला) लेकर सबको चव्य, हर्र, कूठ, पोपल, कुटकी, अजमायन, पानीके साथ पीस लीजिए । पश्चात् यह कल्क, पोखरमूल, पलाश (ढाक) की छाल, चीता, कचूर, । उक्त काथ, और ८-८ पल आमलेका रस, दूध सञ्चल (कालानमक), भुई आमला, सेंधा, बेलगिरि, | और घी एकत्र मिलाकर पकाइये । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy