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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ३५३ ] औषधोंके बराबर और निसोतके बराबर ही खाण्ड ! त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ) और सुहागे तथा शहद लेकर खाण्डकी चाशनीमें समस्त चूर्ण की खील समान भाग लेकर चूर्ण करके पानके मिलाकर ठण्डा होने पर शहद मिलाइये और फिर रसमें घोटकर स्याह मिर्च के बराबर गोलियां बना मोदक बना लीजिए। लीजिए। इन्हें यथोचित मात्रानुसार खानेसे विरेचन । इनके सेवनसे कफ नष्ट होता है। होकर कण्डू ( खुजली ) नष्ट हो जाती है। । (से. वि.-मुंहमें रखकर रस चूसें । दिन ( मात्रा-१ तोला । अनुपान-गर्म जल ) भरमें २०-२५ गोली तक खा सकते हैं ।) (२४००) त्रिजातादिगुटिकाः (२४०२) त्रिफलादिगुटिका (वृ. नि. र. । कास.) (वा. भ. । उत्त. अ. २२) त्रिजातमधकर्षश्च पिप्पल्पर्धपलं सिता। फलत्रयद्वीपिकिराततिक्तद्राक्षामधुकखर्जरं पलांशं इलक्ष्णकल्कितम् ॥ | ___ यष्टयाहसिद्धार्थककटुत्रिकाणि । मधुना गुटिका नन्ति ता वृष्याःपित्तशोणिते। मुस्ताहरिद्राद्वययावशूफकासश्वासारुचिच्छदिमूच्छाहिमामदभ्रमान्।। वृक्षाम्लकाम्लाग्रिमवेतसाश्च ।। क्षतक्षये ज्वरभ्रंशे प्लीहशापाढयमारुतान् । | अश्वत्थजम्ब्बाम्रधनञ्जयत्वक रक्तनिष्ठीवहृत्पावरुपिपासाज्वरानपि ॥ त्वचाहिमारात्खदिरस्थ सारः।। ___दालचीनी, इलायची, तेजपात । प्रत्येक आधा काथेन तेषां घनतां गतेन आधा कर्ष (७॥ माशे ). पीपल आधापल ( २॥ __ तच्चूर्णयुक्ता गुटिका विधेया॥ तोले ); मिश्री, मुनक्का, मुलैठी खजूर । १-१ । ता धारिता नन्ति मुखेन नित्यं पल । सबको बारीक पीसकर शहदमें मिलाकर ___ कण्ठोष्ठताल्वादिगदान्सुकृच्छ्रान् । गोलियां बना लीजिए। विशेषतो रोहिणिकास्यशोष___ यह गोलियां वृष्य (वीर्यवर्द्धक ) हैं और गन्धान्विदेहाधिपतिप्रणीताः ॥ रक्तपित्त, खांसी, श्वास, अरुचि, वमन, मूर्छा, __त्रिफला, ( हर्र, बहेड़ा, आमला ), चीता, हिचकी, मद, भ्रम, क्षतक्षीणता, स्वरभंग ( गला | चिरायता, मुलैठी, सरसों, त्रिकटु (सोंठ, मिर्च, बैठना), प्लीहा (तिल्ली ) ऊरुस्तम्भ, शोथ, रक्त- पीपल), मोथा, हल्दी, दारुहल्दी, यवक्षार, तिंतड़ीक, थूकना, हृदय और पसलीका दर्द, तथा ज्वरका बिजौरे नीबूके छिलके, अम्लवेत, पीपल वृक्षकी नाश करती हैं। छाल, जामन, आम, कोह (अर्जुन) और दुर्गन्धित (२४०१) त्रिपुरभैरवीगुटी (वृ.नि.र.श्वास.) खैरकी छाल तथा खैर सार समान भाग लेकर त्रिकटुटङ्कणं नागपत्रेण क्रियते वटी। चूर्ण कर लीजिए । इसमेंसे आधे चूर्णको ८ गुने मरिचप्रमाणा कफजिन्नाम्ना त्रिपुरभैरवी ॥ पानीमें पकाइये जब चौथा भाग पानी शेष रहे तो भा, १५ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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