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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[तकारादि
उसे छानकर फिर पकाइये और जब वह गाढ़ा हो बेरकी गुठलीके बराबर गोलियां बना लीजिए। जाय तब उसमें शेष रहा हुवा उपरोक्त चूर्ण मिला इन्हें भिन्नभिन्न अनुपानों के साथ सेवन कराने कर गोलियां बना लीजिए।
- से अनेको रोग नष्ट होते हैं। इन्हें मुखमें रखनेसे कण्ठ, ओष्ठ, तालु और इन्हें अर्शमें तक्रके साथ, गुममें काञ्जी या गलेके कष्टसाध्य रोगोंका और विशेषतः रोहिणी, नीबूके रस के साथ, अग्निमांद्य में उष्ण जलसे, मुखशोष तथा मुखको दुर्गन्धका नाश होता है। चर्म रोगों में खे की छाल के क्वाथके साथ, मूत्रकृत में त्रिफलादिगुटिका (यो. र. । कुष्ठ.) ताजे पानीके साथ, हृद्रोगमें तैलके साथ, ज्वरोंमें ___ रसप्रकरणमें देखिए।
इन्द्रजौके स्वरसके साथ, शूलमें बिजौ रेके रसके (२४०३) त्रिफलादिगुटिका (पृ.नि.र.संप्र.) साथ और विषविकारमें कैथ या तेन्दुके रसके साथ त्रिफला पश्चलवणं कुष्ठं कटुकरोहिणी।। सेवन कराना चाहिए। देवदारु विडङ्गानि पिचुमन्दफलानि च ॥ (२४०४) त्रिफलादिमोदकः बला चातिबला चैव द्विहरिद्रा सुवर्चला।
(वृ. नि. र. । पातच.) एतत्संभृतसंभारं करञ्जत्वग्रसेन तु ॥
| त्रिफला पोषगुडकं शरा त्रिवृतार्धकम् । पिष्टवा च गुटिकां कृत्वा बादरास्थिसमां बुधः मोदई भारित्वा तु पियेवोष्णजलं पुनः ॥ एकै कां तां समुद्धत्य रोगे रोंगे पृथक् पृथक् ।।
| पार्श्वयूले रुचौ कासे ज्वरे चानिलसम्भवे ॥ अर्श.सि हन्ति तक्रेण गुल्मानम्लेन निहरेत् ।
हर, बहे , आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल, उष्णेन वारिणा पीता शान्तमनि प्रदीपयेत् ।। जन्तुजुष्टा तु योगेन त्वग्दोषं ख.देराम्बुना।
गुड़, और खांड एक एक भाग तथा निसोत सबसे
| आधा लेकर सब ओषधियों को कूटकर गुमें मूत्रकृच्छं तु तोयेन हृद्रोगं तैलसंयुता ॥
मिलाकर मोदक बना लीजिए। इन्द्रस्वरससंयुक्ता सर्वज्वरविनाशिनो । मातुलुङ्गरसेनाथ सय शूलहरी स्मृता ॥
इन्हे गर्म पानी के साथ सेवन करनेसे पसलीका कपित्थतिन्दुकानान्तु रसेन सह मिश्रिता।
शूल, अरुचि, खसी, श्वास और वातज्वर नष्ट विषाणि हन्ति सर्वाणि पानाशनप्रयोगतः ॥
होता है। त्रिफला (हर, बहेड़ा, आमला ) पाँचॉलवण
त्रिफलादिमोइकः (सेंधा, काला नमक, खारी नमक, काचलपण, (शा. सं. । खं. २; यो. चि. म. । अ. ३) सामुद्रल प्रण) कूठ, कुटकी, देवदारु, बायबिग, . रसपकरणमें देखिए । नीमके फल, बला, (खरैटी ), अतिबला (कंपी), (२४०५) त्रिफलादिवटिका ( ग.नि. श्वय.) हल्दी, दारुहल्दी और हुलहुल । सबका समान त्रिफलागुरुकृष्णानां त्रिपञ्चशफल्पिता। भाग चूर्ण लेकर करञ्जकी छालके रसमें घोटकर गुडेन गुटिका हन्ति शोफपाण्डुभगन्दरान् ॥
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