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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। - [ तकारादि __प्रतिदिन प्रातःकाल १ मोदक खानेसे बवा- (२३९८) त्रिकण्टकाद्यो मोदकः सीर नष्ट और अग्निदीप्त होती है । ( मात्रा १
(भै. र. । वाजी.) तोला । अनुपान उष्ण जल )
गोक्षुरेक्षुरबीजानि वाजीगन्धा शतावरी। (२३९७) त्रिकटुकाद्यो मोदकः मुषलो वान रीबीजं यष्टीनागवला बला ॥ (भा. प्र. । प्रमेह. )
एषाञ्चूर्ण दुग्धसिद्धं गव्येनाज्येन भर्जितम्। त्रिकटु त्रिफला पाठा मूलं शोभाञ्जनस्य च । सितया मोदकं कृत्वा भक्ष्य वाजीकरं परम् ॥ विडङ्गतन्दुला हिङ्गु तथा कटुरोहिणी॥ चूर्णादष्टगुणं क्षोरं घृतं चूर्णसमं स्मृतम् । वृहती कण्टकारी च हरिद्रे द्वे यवानिका। सर्वतो द्विगुणं खण्डं खादेदग्निबलं यथा । केम्बुकं शालपर्णी च तथातिविपचित्रसौ॥ वाजीकराणि भूरीणि संगृहय रचितो यतः । सौवर्चलं जीरकश्च हपुषा धान्यमेव च।। | तस्माद्वहुषु योगेषु योगोऽयं प्रवरो मतः ॥ एषां कर्षप्रमाणश्च श्लक्ष्णचूर्णश्च कारयेत् ॥ गोखरु, तालमखानेके बीज, असगन्ध, यवशक्तुपलानाञ्च नवतिं द्वितपाधिकाम् । शतावर, मूसली, कौं चके बीज, मुलैी, नागबला घृततैलमधूनाञ्च प्रत्येकञ्च पलानि षट् ॥ (गंगेरन )की जड़ और बला (खरैटी ) मूल । एभिःकर्षप्रमाणश्च प्रत्यहं मोदकं सुधीः । सबका समान भाग चूर्ण लेकर उसे सबसे ८ भक्षयन्नाशयेदुग्रान्प्रमेहानतिदारुणान् ॥ गुने दूधमें पकाएं जब मावा हो जाए तो उसमें
त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), हरी, बहेड़ा, चूर्णके बगबर गायका घी डालकर भूनिए और आमला, पाठा, सहं जनेकी जड़, बायबिडंगके चावल फिर उसे सबसे दोगुनी खाण्डकी चाशनीमें मिला( बीज ), हींग, कुटकी, बड़ी कटेली, छोटी कर मोदक बना लीजिए । मात्रा अग्निबलानुसार कटेली, हल्दी, दारुहल्दी, अजवायन, सुपारी, १ तो० तक । अनुपान दूध । यह मोदक बहुतसी शालपर्णी, अतीस, चीता, सौवर्चल (काला नमक), बाजीकरण औषधोंके योगसे बनते हैं अतएव यह जीरा, हाऊबेर और धनिया । प्रत्येकका महीन । अत्युत्तम बाजीकर (कामशक्तिवर्द्धक ) मोदक हैं । चूर्ण १-१ कर्ष (११ तोला ), जौका सत्तू (२३९९) त्रिजातगुटिका (ग.नि.।गुटिका.) ९२ पल ( ५ सेर १२ छटांक ) तथा घी, तेल विजात त्रिफला व्योषं सूक्ष्मचूर्णन्तु कारयेत् ।
और शहद ६-६ पल (३० तोले ) लेकर तत्तुल्यं त्रिवृताचूर्ण शर्करा क्षौद्रमेव च ।। सबको एकत्र मिलाकर मर्दन करके १-१ कर्ष बद्धवात्र मोदकान्वैतान भक्षयेच यथा बलम् । (११ तोले )के मोदक बना लीजिय । इनमेंसे विरेक एष प्रबलस्तथा काडूविनाशनम् ॥ १-१ मोदक प्रतिदिन खानेसे भयङ्कर प्रमेह भी दालचीनी, इलायची, तेजपात, हर्र, बहेड़ा, नष्ट हो जाता है।
आमला, त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च और पीपल )का • ( अनुपान दूध )
चूर्ण १-१ भाग तथा निसोतका चूर्ण समस्त
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