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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् ] द्वितीयो भाग । [३५१] तिलोंको पीसकर गोला बनाकर पेटके ऊपर क्षौद्रेण कुर्याद्गुटिकां मुखेन घुमानेसे भयङ्कर शूल भी नष्ट हो जाता है। तां धारयेत्सर्वगलामयनीम् ॥ (२३९२) तिलादिवटी (वृ. नि. र. । शूल.) बच, दारुहल्दी, पीपल, जवाखार, रसौत तिलनागरपथ्यानां भागं शम्बृकभस्मनाम् । और पाठाका समान भाग चूर्ण लेकर सबको द्विभागगुडसंयुक्तं वटी कृत्वाक्षभागिकाम् ॥ शहदमें मिलाकर गोलियां बना लीजिए। शीताम्बुना पिबेत् प्रातर्भक्षयेत् क्षीरभोजनम् । इन्हें मुंह में रखकर रस चूसनेसे गलेके सायाह्ने रसकं पीत्वा नरो मुच्येत दुर्जरात् ॥ समस्त रोग नष्ट होते हैं । परिणामसमुत्थाच्च शूलाच्चिरभवादपि ॥ (२३९५) त्रिकटुकादिगुटी (यो.चि.मिश्रा.) तिल, सोंठ और हर्रका चूर्ण तथा शंख मरीचं पिप्पली शुण्ठी ग्रन्थिकं च समांशतः। भस्म १-१ भाग लेकर दो भाग गुड़में मिलाकर । गुडेन गुटिका कार्या पकखण्डेन वा पुनः ॥ १-१ कर्ष ( ११ तोले )के वटक बना लीजिए। एतत्त्रिकटुकं नाम शून्यवाधिर्यवारणम् । प्रति दिन प्रातःकाल शीतल जलके साथ शीतकाले सदा ग्राह्य बुद्धिचैतन्यकारणम् ।। १-१ वटक खाने, सायंकालको खपरिया सेवन सोंठ, मिर्च, पीपल और पीपलामूल समान करने और दूध भातका आहार करनेसे अजीर्ण भाग लेकर महीन चूर्ण करके उसको सबके बराबर और पुराना परिणामशूल नष्ट हो जाता है। गुड़ या खांडकी चाशनीमें मिलाकर गोलियां बना (२३९३) तृष्णानी गुटी ( यो. र. । तृ.) । लीजिए। नीलाम्बुनादमधुलाजावटावरोहै। इनके सेवनसे शून्यता ( स्पर्शशक्तिका नष्ट श्लपणीकृतैर्विरचिता गुटिका मुखस्था॥ हो जाना ) और बधिरता नष्ट होती है। तृष्णां निवारयति तत्क्षणमेव तीव्राम् ।। यह गोलियां बुद्धि और चैतन्यकी वृद्धिके मृत्यो.स्पृहामिव यतेः परमार्थचिन्ता ॥ लिए शीतकालमें सेवन करने योग्य हैं । . नील कमल, मोथा, धानकी खील, वटके (२३९६) त्रिकटुकादिमोदकः अंकुर । समान भाग लेकर महीन पीसकर शहद में (हा. सं. । स्था. ३ अ. ११) मिलाकर गोलियां बना लीजिए । त्रिकटुकमभयानां पुष्करं चित्रकाणां इनको मुंहमें रखनेसे प्रबल तृष्णा भी तुरन्त कृमिरिपुतिलचूर्ण कारयेत् सगुडेन । शान्त हो जाती है। उपसि वटकमेकं भक्षयेयो मनुष्यो (२३९४) तेजोवत्यादिगुटिका विनिहन्तिगुदरोगं चाग्निवृद्धिं करोति॥ ( वृ. यो. त. । त. १२८) __ त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), हर्र, पोखर तेजोवती दारुनिशां सकृष्णां मूल, चीता, तिल और बायबिडंगका समान भाग यवाग्रज तायगिरिश्च पाठाम् । | चूर्ण लेकर गुड़में मिलाकर मोदक बना लीजिए। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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