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चूर्णप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ ३४१]
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कादिचूणम्
(२३४४) त्रिकण्टकादिचूर्णम् | भी मिला ली जाय तो उसका नाम 'चतुर्जात'
(वं. से. । वाजी.; नपुंसका. । त. ३) हो जाता है। त्रिकण्टकामगुप्तानां वीजचूर्णसशर्फरम् । त्रिगन्ध और चतुर्जात रूक्ष, उष्ण, तनिक क्षीरेण यापिबद्गच्छेद्दशवार निरन्तरम् ॥ पित्तकारक, वर्ण (शरीरके रंग) को सुधारने वाले,
गोखरु, और कौं चके बीज बराबर बराबर रुचिकारक, तीक्ष्ण और पित्तश्लेष्म नाशक हैं । लेकर चूर्ण बनाएं। इसमें सबके बराबर खांड । (२३४७) त्रिजातकादिचूर्णम् मिलाकर दूधके साथ सेवन करनेसे नित्यप्रति दश (वै. मृ. । अलं. २ विषय १३) बार स्त्री रमणकी शक्ति प्राप्त होती है। त्रिजातकव्योषलवङ्गजीर(मात्रा-३ से ६ माशे तक ।)
नागाहयग्रन्थिकचूर्णमेतत् । (२३४५) त्रिकण्टकादिप्रयोगः
मधुप्रयुक्तं सहसा निहन्ति (यो. स. । समु. ४)
द्विष्टार्थनां छदिमपि प्रसक्ताम् ॥ त्रिफण्टवीर्यामुशलीस्वगुप्ता
___ इलायची, दालचीनी, तेजपात, सोंठ, मिर्च, ___ चूर्ण सिताढयं मधुनानु दुग्धम् ।।
पीपल, लौंग, जीरा, नागकेसर और पीपलामूलका लीढ़वाप्तवीर्यो विगतलमोसौ
समान भाग चूर्ण शहदके साथ मिलाकर चाटनेसे ___ स्त्रीणां शतं क्रीडति कामकेलौ॥
खराब पदार्थोके देखने या सूंघने आदिसे उत्पन्न गोखरु, शतावर, मूसली, और कौं वके बीजों
उल्टी तुरन्त नष्ट हो जाती है। (मात्रा ३ माशे।) का समान भाग चूर्ण और सबके बराबर मिश्री (२३४८) त्रिजात्यादिचूर्णम् (यो.चि.।चूर्णा.) लेकर एकत्र मिला लीजिए।
त्रिजातिविश्वात्रिफलाविडङ्ग, इसे शहदमें मिलाकर चाटकर ऊपरसे दूध
___ द्राक्षानिशायुग्ममरिष्टपत्रम् । पीनेसे, वीर्य और कामशक्तिकी वृद्धि तथा क्लम (बिना
कृष्णा गुडूची मिषिमेषशृङ्गी, परिश्रम किए ही थकान रहना)का नाश होता है।
पुरातनाः षष्टिकतन्दुला च ॥
एतानि चूर्णानि समानि कृत्वा, ( मात्रा ६ माशे ।)
सिता प्रदेया तदनन्तरं समा। (२३४६) त्रिगन्धम् (शा. सं. । ख. २ अ. ६)
दिनोदये चूर्णमिदं हि खादन् , त्रिगन्ध मेलात्वपत्रैष्चातुर्जातं सकेशरम् । कुर्यानरं शीतरसापहारी ॥ त्रिगन्धं स चतुति रूझोष्णं लघु पेतकृत् ॥ दद्रुणि रक्तं कुपितं च पित्तं, घर्यरुचिकर तीक्ष्णं पितश्लेष्माम पाञ्जयेत् ॥ कुष्ठाम्लपित्तं खसखुजिपामा ।
इलायची, दाल चीनी ओर तेजपातके समूह . विस्फोटकान् मण्डलकान् प्रदोषान् , का नाम 'निगन्ध' है। यदि निगन्धमें नागकेसर । अनेकदोषान् प्रशमं प्रयान्ति ॥
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