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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ३४१] - कादिचूणम् (२३४४) त्रिकण्टकादिचूर्णम् | भी मिला ली जाय तो उसका नाम 'चतुर्जात' (वं. से. । वाजी.; नपुंसका. । त. ३) हो जाता है। त्रिकण्टकामगुप्तानां वीजचूर्णसशर्फरम् । त्रिगन्ध और चतुर्जात रूक्ष, उष्ण, तनिक क्षीरेण यापिबद्गच्छेद्दशवार निरन्तरम् ॥ पित्तकारक, वर्ण (शरीरके रंग) को सुधारने वाले, गोखरु, और कौं चके बीज बराबर बराबर रुचिकारक, तीक्ष्ण और पित्तश्लेष्म नाशक हैं । लेकर चूर्ण बनाएं। इसमें सबके बराबर खांड । (२३४७) त्रिजातकादिचूर्णम् मिलाकर दूधके साथ सेवन करनेसे नित्यप्रति दश (वै. मृ. । अलं. २ विषय १३) बार स्त्री रमणकी शक्ति प्राप्त होती है। त्रिजातकव्योषलवङ्गजीर(मात्रा-३ से ६ माशे तक ।) नागाहयग्रन्थिकचूर्णमेतत् । (२३४५) त्रिकण्टकादिप्रयोगः मधुप्रयुक्तं सहसा निहन्ति (यो. स. । समु. ४) द्विष्टार्थनां छदिमपि प्रसक्ताम् ॥ त्रिफण्टवीर्यामुशलीस्वगुप्ता ___ इलायची, दालचीनी, तेजपात, सोंठ, मिर्च, ___ चूर्ण सिताढयं मधुनानु दुग्धम् ।। पीपल, लौंग, जीरा, नागकेसर और पीपलामूलका लीढ़वाप्तवीर्यो विगतलमोसौ समान भाग चूर्ण शहदके साथ मिलाकर चाटनेसे ___ स्त्रीणां शतं क्रीडति कामकेलौ॥ खराब पदार्थोके देखने या सूंघने आदिसे उत्पन्न गोखरु, शतावर, मूसली, और कौं वके बीजों उल्टी तुरन्त नष्ट हो जाती है। (मात्रा ३ माशे।) का समान भाग चूर्ण और सबके बराबर मिश्री (२३४८) त्रिजात्यादिचूर्णम् (यो.चि.।चूर्णा.) लेकर एकत्र मिला लीजिए। त्रिजातिविश्वात्रिफलाविडङ्ग, इसे शहदमें मिलाकर चाटकर ऊपरसे दूध ___ द्राक्षानिशायुग्ममरिष्टपत्रम् । पीनेसे, वीर्य और कामशक्तिकी वृद्धि तथा क्लम (बिना कृष्णा गुडूची मिषिमेषशृङ्गी, परिश्रम किए ही थकान रहना)का नाश होता है। पुरातनाः षष्टिकतन्दुला च ॥ एतानि चूर्णानि समानि कृत्वा, ( मात्रा ६ माशे ।) सिता प्रदेया तदनन्तरं समा। (२३४६) त्रिगन्धम् (शा. सं. । ख. २ अ. ६) दिनोदये चूर्णमिदं हि खादन् , त्रिगन्ध मेलात्वपत्रैष्चातुर्जातं सकेशरम् । कुर्यानरं शीतरसापहारी ॥ त्रिगन्धं स चतुति रूझोष्णं लघु पेतकृत् ॥ दद्रुणि रक्तं कुपितं च पित्तं, घर्यरुचिकर तीक्ष्णं पितश्लेष्माम पाञ्जयेत् ॥ कुष्ठाम्लपित्तं खसखुजिपामा । इलायची, दाल चीनी ओर तेजपातके समूह . विस्फोटकान् मण्डलकान् प्रदोषान् , का नाम 'निगन्ध' है। यदि निगन्धमें नागकेसर । अनेकदोषान् प्रशमं प्रयान्ति ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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