SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३४०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। तकारादि - - ~ ~ R.. :.... .. - - y M y V . त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), कटेली, पित्त त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), पीपलामूल, पापड़ा, सुगन्धबाला, इन्द्रजौ, सौराष्ट्री', पटोलपत्र, ब्राह्मी, रेणुका, अकरकरा; पोखरमूल, लौंग, असत्रायमाणा, दारुहल्दी, मूर्वा, कुटकी, कमलनाल, गन्ध, चिरायता, हाऊबेर, कचूर, रास्ना, श्वेतासफेद चन्दन, कुडेकी छाल, इलायची, चिरायता, पराजिता (कोयल), बच और भांगरा । सब चीजें बच, अतीस, केसर, अजवायन, मुलैठी और समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर रक्खें । संहजनेके बीज । सब चीजोंका समान भाग महीन इसके सेवनसे सन्निपात और वात व्याधि चूर्ण लेकर एकत्र मिला लीजिए। नष्ट होती है। __ इसे पथ्यपालन पूर्वक शीतल जलके साथ (२३४२) त्रिकट्वादिचूर्णम् (यो. चि.अ.२) फांकने या शहदमें मिलाकर चाटनेसे कुछदिनोंमें | त्रिकटुत्रिफलाधान्ययवानी शतमूलिका । ही भयङ्कर अम्लपित्त भी नष्ट हो जाता है। वचाभार्गी तथा ब्राह्मी चूर्ण समधुलेहयेत् ।। (२३४०) त्रिकटवादिचूर्णम् (र. र. । कास.) वाक्पतित्वं च वालानां वाणीवाद्यसमज्वरम् । तैलं तीक्ष्णं रूक्षमम्लं वातलश्च विवर्जयेत् ॥ कटुत्रयं पाठा देवदारु ___त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), हर्र, बहेड़ा रास्ना विडङ्गत्रिफलाषाणाम् । आमला, धनिया, अजवायन, शतावर, बच, भारंगी चूर्ण समांशं सितया विमिश्रं और ब्राह्मी समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। कासं जयेद्विष्णुरिवातिपापम् ॥ इसे शहदके साथ चटानेसे बालकोंका स्वर त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), पाठा, देव- शुद्ध होता और ज्वर नष्ट होता है। दारु, रास्ना, बायबिडङ्ग, त्रिफला, और बासा। परहेज़-तेल, मिर्च इत्यादि तीक्ष्ण पदार्थ, समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए और उस | तथा रूक्ष, अम्ल और वातल पदार्थोसे परहेज़ सबके बराबर मिश्री मिलाकर रखिए। कराएं। इसके सेवनसे खांसी अत्यन्त शीघ्र नष्ट । (२३४३) त्रिकण्टकादिचूर्णम् होती है। (वृ. नि. र.; ग. नि.; वृं. मा.; च. द.; यो. र.; - (मात्रा ६ माशे । अनुपान शहद ।) वं. से । अश्म०) (२३४१) त्रिकट्वादिचूर्णम् (यो. चि.अ.२) त्रिकण्टकस्य वीजानां चूर्ण माक्षिकसंयुतम् । त्रिकटुकग्रन्थिकं ब्राह्मी रेणुकाऽऽकल्लपुष्करम्। आविक्षीरेण सप्ताहं पिबेदश्मरिभेदनम् ॥ लवङ्गमश्वगन्धा च किरातं हपुषा सठी॥ गोखरुके फलोंके चूर्णको शहदमें मिलाकर रास्ना श्वेता वचा भृङ्गं सर्वमेकत्र चूर्णयेत् । चाटकर ऊपरसे भेड़का दूध पीनेसे १ सप्ताह में सन्निपाते महावाते चूर्ण मेवं सदाहितम् ॥ पथरी नष्ट हो जाती है । १ एक प्रकारकी सुगन्धित मिट्टी । अभावमै गोपीचन्दन के। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy