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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [३३५] मोथा, त्रिकुटा, पाठा, दालचीनी, इन्द्रजौ, । (२३१५) तिक्ताचूर्णम् (वं. से. वै. र. । ज्व.) नीमकी छाल, पटोलपत्र, कुटकी, हल्दी, धमासा, | सशर्करामक्षमात्रां कटुकामुष्णवारिणा। चमेलीकी कली, चिरायता,मुलैठी, रसौत, त्रायमाणा, ! पीत्वा ज्वरं जयेज्जन्तुः कफपित्तसमुद्भवम् ॥ गिलोय, और त्रिफला समान भाग लेकर चूर्ण १। तोला कुटकी के चूर्ण और खांडको एकत्र बना लीजिए। मिलाकर गर्म पानीसे खानेसे कफपित्तज ज्वर नष्ट इस चूर्णका मञ्जन करनेसे मसूढे, मुख और | होता है गलेके समस्त रोग शीघ्र नष्ट होते हैं। | (२३१६) तिलबाकुच्योर्योगः (ग. नि.। कु.) (२३१४) तिक्ताख्यं चूर्णम् । तिलैःसमां बाकुचिकां हिताशी (वं. से. । हृद्रो. ग. नि.। परि. चूर्णा.) ___ संवत्सरं यो नियमेन खादेत् । मुस्तैलाचन्दनोशीरजीवनीव्योषचित्रकाः।। तस्य प्रणश्येत्पवलं हि कुष्ठं । बिल्वत्वक्कटुकादारुदावीत्वक्पर्पटत्वचः॥ मेधादयश्चापि भवन्ति भावाः ॥ पटोलं निम्बषड्ग्रन्थाऋद्धिभूनिम्बशिग्रकाः।। १ वर्ष तक पथ्य पालनपूर्वक तिल और चूर्ण त्रायन्ती सौराष्ट्री केशरातिविषा:समाः॥ बाबचीका समान भाग मिश्रित चूर्ण नित्य प्रति तिक्ताख्यं हन्ति हृद्रोगं शुलहृत् सन्निपातजित ॥ नियमपूर्वक यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे ____ मोथा, इलायची, सफेद चन्दन, खस, भयङ्कर कुष्ठ नष्ट होकर बुद्धि और स्मरणशक्ति जीवनीय गण, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च पीपल) चीता, आदि की वृद्धि होती है। बेलकी छाल, कुटकी, देवदारु, दारु । (२३१७) तिलमूलादिचूर्णम् हल्दीकी छाल, पटोलपत्र, दालचीनी, नीमको छाल, (यो. र.; वृ. नि. र. । गुल्म.) बच, ऋद्धि, चिरायता, सहजना, त्रायमाणा, फटकी, तिलमूलश्च शिग्रुश्च ब्रह्मदण्डीयमूलकम् । नागकेसर और अतीस । सब चीजें समान भाग | मधुयष्टीत्रिकटुकैर्युतं चूर्णमुपासते ॥ लेकर चूर्ण बनावें। पुष्परोधे वातगुल्मे स्त्रीणां सद्यःसुखावहम् ।। इसके सेवनसे हृद्रोग, शूल और सन्निपात तिलकी जड़, सहजने की जड़की छाल, नष्ट होता है। | ब्रह्मदण्डी की जड़, मुलैठी और त्रिकुटा (सोंठ, ग. नि. में ऐसा पाठ है १ मुस्तैलाचन्द नोशीरं यवानी व्यीषवत्सको । फलं त्वक् कटुका दारु दाऊत्वकूपर्पटस्तथा ॥ पटोलपत्रं षड्ग्रन्था मूर्वा भूनिम्बशिकाः त्रायमाणा च सौराष्ट्री सुरा प्रतिविषासमाः तितकं नाम हृदगुल्मशूलनं सन्निपातनुत् ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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