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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org –भैषज्य–रत्नाकरः । [ ३३४ ] पाठा मोचरसालपञ्चलवणाजाजीद्वयं वेल्लकम् । वृक्षाम्लाम्लवरापलाशतरुजं मांस्यम्बुदं बालकम् ।। ऐन्द्र ब्रह्मवर्चला दृढपदी कु समस्तं समम् । बल्या सर्वसमा जयाखिलसमा मत्स्यण्डिका भारत कारादि यह बालकों के लिए विशेष हितकारी और उनके स्वरको स्पष्ट करनेवाला है । ( मात्रा १ || माशा ) (२३१२) तालीसाद्यंचूर्णम् (वं. से. । राजय.) वासिता ॥ तालीसमरिचनागरपिप्पलीतन्मूलत्रुटिफलत्वचः । चूर्णोयं ग्रहणीक्षयादिकसनश्वासारुचिप्लीहरुक् । जातिफलमृणालं त्वक्क्षीरीमुस्ततुल्यांशम् ॥ दुर्नामातिष्टतिज्वरातिंपवनस्थौल्यप्रमेह प्रणुत् ॥ चूर्ण त्रिगुणसितोपलमेतदुच्यं प्रदीपनं हृद्यम् । तीव्रापस्मृतिपाण्डुगुल्मजठरश्लेष्मोत्थपित्तोद्भवो ज्वररक्तपित्तकासश्वासक्षयगुल्मशूलघ्नम् ॥ न्मादध्वंसविधायको विजयते सर्वामयध्वंसकः॥ कृम्यतिसारग्रहणीहृद्रोगामूढमारुतं दाहम् । करचरणादिषु शमयति पाण्डुगदं कण्ठरोगश्च ॥ बालानां च विशेषहितकरो सुस्पष्टवाणीप्रदः । तालीसपत्र, मिर्च, सोंठ, पीपल, पीपलामूल, पुष्ट्यायुर्बलकान्तिधी स्मृतिमहामेधाविलासप्रदः । सफेद इलायची, दालचीनी, जायफल, कमलनाल, बसलोचन और मोथेका चूर्ण १-१ भाग तथा मिश्रीका चूर्ण ३३ भाग लेकर सबको एकत्र मिला लीजिए । तालीसपत्र, बच, बंसलोचन, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ, मिर्च, हल्दी, बेलगिरी, अजमोद, कचूर, दालचीनी, तेजपात, नागकेसर, इलायची, लौंग, धायके फूल, अतीस, जायफल, अजवायन, पाठा, मोचरस, हरताल, पांचोनमक, सफेद जीरा, काला जीरा, बायबिडंग, तिंतड़ीक, चूक, त्रिफला, पलाशका क्षार, जटामांसी, नागरमोथा, सुगन्धवाला, इन्द्रायनकी जड़, हुलहुल, भूई आमला और कूठ । १--१ भाग, असगन्ध ४६ भाग, भांग ९२ भाग, और मिश्री १८४ भाग लेकर यथाविधि चूर्ण बना लीजिए । इसके सेवनसे ग्रहणी, खांसी, क्षय, श्वास, अरुचि, तिल्ली, बवासीर, अतिसार, ज्वर, वायु, स्थूलता, प्रमेह, अपस्मार (मिर्गी), पाण्डु, गुल्म, उदरविकार, कफज और पित्तज उन्माद इत्यादि सैकड़ों रोग नष्ट होते और आयु, बल, पुष्टि, कान्ति, मेधा और स्मरणशक्ति की वृद्धि होती है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्वास, यह चूर्ण रुचिवर्द्धक, अग्निदीपक, हृदयके लिए हितकारी, और ज्वर, रक्तपित्त, खांसी, क्षय, गुल्म, शूल, कृमि, अतिसार, ग्रहणी, हृद्रोग, मूढवात, हाथपैरोंकी दाह, पाण्डु तथा कण्ठ रोगों को नष्ट करने वाला है । ( मात्रा ६ माशे । शहद में मिलाकर प्रातः सायं चाटें ।) (२३१३) तिक्तकं चूर्णम् (ग. नि. । चूर्णा . ) मुस्तं त्रिकटुकं पाठां त्वग्वीजं वत्सकस्य च । निम्बं पटोलं कटुकां हरिद्रां धन्वयासकम् ॥ जातीमवालं भूनिम्बं मधुकं सरसाञ्जनम् । त्रायमाणां गुडूचीं च त्रिफलां चेति चूर्णयेत् ॥ चूर्णोऽयं तिक्तको नाम कवलः प्रतिसारिणम् । दन्तमूलास्यगलजान्रोगानाशु व्यपोहति ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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