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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चूर्णप्रकरणम् ] ( मात्रा - ३ माशे प्रातः, ३ माशे सायम् । ) प्रकरण में देखिए ताप्यादिचूर्णम् | ताम्रादिचूर्णम् (२३०६) तालकन्दादियोगः (यो. र. । मूत्र.) तालकन्दञ्च खर्जूरं मधुकञ्च विदारिकाम् । सितामधुयुतां खान्मूत्रातीसारनाशनम् ॥ तालवृक्षकी जड़, खजूर, मुलैठी, विदारीकन्द और मिश्री समान भाग लेकर चूर्ण करके शहदके साथ सेवन करनेसे मूत्रातिसार नष्ट होता है । द्वितीयो भागः । ( मात्रा - प्रातः सायं ३ - ३ माशे । ) (२३०७) तालपत्रक्षारः ( वृ. नि. र. । मेदो . ) क्षारं वा तालपत्रस्य हिङ्गुयुक्तं पिवेन्नरः । मेदोवृद्धिविनाशाय भक्तमण्डसमन्वितम् ॥ | 1 तालपत्र ( ताड़ के पत्तों के ) क्षारको समान भाग हींगमें मिलाकर चावलों के साथ सेवन करनेसे मेदोवृद्धि रोग नष्ट होता है (२३०८) तालीसगैरिकयोगः (यो.त. त.७५) aretara पी विडालपदमात्रके । शीताम्बुना चतुर्थे वन्ध्या नारी प्रजायते ।। तालीसपत्र और गेरु का समान भाग चूर्ण मिलाकर १। तोलेकी मात्रानुसार ठण्डे पानीके साथ मासिक धर्मके चौथे दिन पीनेसे स्त्री वन्ध्या हो जाती है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३३३ ] शहद मिलाकर पीने से कफपित्तज खांसी, तमकश्वास, स्वरभेद और रक्तपित्त नष्ट होता है । (२३१०) तालीसादिचूर्णम् ( वृ. नि. र. यो. र. । ज्वर; शा. सं. । ख. २ अ. ६; यो त । त. २७ ) तालीस मरिचं शुण्ठी पिप्पली वंशरोचना | एकद्वित्रिचतुः पञ्च कर्षेर्भागान्प्रकल्पयेत्॥ एलात्वचोस्तु कर्षां प्रत्येकं भागमाहरेत् । द्वात्रिंशत्कर्षतुलिता प्रदेया शर्करा बुधैः ॥ तालीसाद्यमिदं चूर्ण रोचनं पाचनं स्मृतम् । कासश्वासज्वरहरं छर्द्यतीसारनाशनम् ॥ शोफाध्मानहरं प्लीहग्रहणीपाण्डुरोगजित् । पक्त्वा वा शर्करा चूर्ण क्षिपेत्सा गुटिका मता ।। तालीसपत्र १ । तोला, काली मिर्च २॥ तोले, सोंठ ३ ॥ तोले, पीपल ५ तोले, बंशलोचन ६ । तोले, इलायची ७॥ मापे, दालचीनी ७॥ माषे और मिश्री ४० तोले लेकर यथाविधि चूर्ण बना लीजिए अथवा मिश्री की चाशनी करके उसमें समस्त ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर गोलियां बना लीजिए । यह ' तालीसादि चूर्ण' रुचिवर्धक, पाचक, तथा खांसी, श्वास, ज्वर, वमन, अतिसार, शोथ, अफारा, संग्रहणी, तिल्ली और पाण्डु रोग नाशक है । ( मात्रा - २ - ३ माशे । प्रातः सायं शहदके साथ चाटें । ) (२३०९) तालीसचूर्णम् (२३११) तालीसादिचूर्णम् ( वृं. मा. । रक्त. पि.; हा. सं. । स्था. ३ अ. १०) तालीशचूर्णयुक्तः पेयःक्षौद्रेण वासकस्वरसः । कफपित्तकासतमकश्वासस्वरभेदरक्तपित्तहरः । ( यो त । त. २२; यो. र. ) तालीसोग्रातुगापडूषण निशाविल्वाजमोदासठी । तालीस पत्रके चूर्णमें बासेका स्वरस और चातुर्जातलवङ्गधातु किंविषाजातीफलं दीप्यकम् ।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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