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भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
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मिलाकर मूंगकी दाल तथा जौकी रोटी खिलानेसे | त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), पीपलामूल, गण्डमाला और गलगण्ड रोग नष्ट होता है। देवदारु, हर्र, बहेड़ा और आमला, समान भाग (२३००) त्रिफले ( भै. र. । परि.) लेकर काथ बनाकर उसमें यवक्षार सेंधानमक, पथ्या विभीतकं धात्री महती त्रिफला मता। सामुद्रनमक और कालानमक मिलाकर पीनेसे स्वल्पा काश्मयखजूरपरूषकफलैभवेत् ॥ | वातकफज अण्डवृद्धि नष्ट होती है।
हर, बहेड़ा और आमलेके मिश्रणको (यवक्षार २ माशे और तीनों नमक मिला"वृहत्त्रिफला" और खम्भारी, खजूर तथा फालसेके | कर १ माशा लेने चाहियें।) फलोंके मिश्रणको "लघुत्रिफला" कहते हैं। । (२३०४) त्र्यषणादिकाथ: (२३०१) त्रिवृतादिक्काथः (बृ.मा.शो. वृ.नि.र.) (वृ. नि. र. । ज्वर.; वं. से.) क्षीराशिनःपित्तकृते तु शोथे
त्र्यूषणःदशमूलशुण्ठीभार्गीछिन्नोद्गवः काथः । त्रिद्गुडूचीत्रिफलाकषायम् । पीतःशमयति सहसा ज्वरमुग्रं सन्निपाताख्यम् । पिबेद्वां मूत्रविमिश्रितं वा
त्रिकुटा, दशमूल, सोंठ, भारंगी और गिलोय फलत्रिकचूर्णमथाक्षमात्रम् ॥ का काथ पीनेसे भयङ्कर सन्निपात ज्वर नष्ट होता है।
पित्तज शोथमें निसोत, गिलोय और त्रिफला इति तकारादिकषायप्रकरणम । का काथ अथवा गोमूत्रके साथ १। तोलाकी मात्रा नुसार त्रिफलाका चूर्ण पिलाना चाहिए।
अथ तकारादिचूर्णप्रकरणम् (२३०२) त्रिवृतादिक्काथः । | (२३०५) तवराजादिचूर्णम्(वृ. नि. र. । क्षय.) (वं. से.; ग. नि.; . मा.; । वृ. नि. र.; र. र.; तवराजकणाद्राक्षा खर्जरं मधुकं त्रुटी ।
च. द.। ज्वर.; हा. सं. । स्था. ३ अ. २) लवङ्गं पत्रकश्चैव नागकेसर नामतः ॥ त्रिद्विशालाकटुकात्रिफलारग्वधैःशृतः। मधुना भक्षितं हन्ति चूर्णमेषां हि निश्चितम्। समारों भेदनःकाथः पेयः सर्वज्वरापहः॥ भ्रमं दाहं शिरःपीडां क्षयरोग न संशयः ।।
निसोत, इन्द्रायण, कुटकी, त्रिफला और यवासशर्करा (जवासेकी खांड-शीरखिस्त), अमलतासके क्वाथमें यवक्षार मिलाकर पीनेसे पीपल, मुनक्का, खजूर, मुलैठी, सफेद या हरी विरेचन होकर समस्त ज्वर नष्ट हो जाते हैं। इलायची, लौंग, तेजपात और नागकेसर समान २३०३) त्र्यूषणादिक्काथः (वं.मा.।वृद्धय.;वं.से.) | भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। त्र्युषणं पिप्पलीमूलं देवदारू फलत्रिकम् । इसे शहदके साथ सेवन करनेसे भ्रम, दाह, कषायं पाययेद् ह्येष समारलवणत्रिकम् ॥ ! शिरपीड़ा और क्षय रोग अवश्य नष्ट हो जाता है।
: संस्कारै इति पाठान्तरम् ।
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