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कषायप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ ३३१]
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(२२९२) त्रिफलादिक्काथः (बृ. नि. र.। शूल.) | (२२९६) त्रिफलादिपाचनकषायः त्रिफलारिष्टयष्टयाहाकटुकारग्वधैः शृतम् ।।
(ग. नि. । कुष्ठ ) पाययेन्मधुसंमिश्रं दाहशूलोपशान्तये ॥ त्रिफला खदिरं काष्ठं निम्बत्वक् च जले शृतम्।
__दाह और शुलकी शान्तिके लिए. त्रिफला, कुष्ठेषु पाचनं दद्यात्सर्वदोषोद्भवेष्वपि ॥ नीमकी छाल, मुलैठी, कुटकी और अमलतासके पृथक् पृथक् दोषोंसे तथा सर्व दोषोंसे उत्पन्न क्वाथमें शहद डालकर पिलाना चाहिए। कुष्ठमें त्रिफला, खैरसार और नीमकी छालका काथ (२२९३) त्रिफलादिवाथः
पिलाकर दोषोंको पचाना चाहिए । (च. सं. । चि. स्था. कामला.; च. द.। काम.) | (२२९७) त्रिफलादिविरेचनम् त्रिफलाया गुडूच्या वादाा निम्बस्य वारसम्। (. मा. । शीतपि.; वृ. नि. र.) शीतं मधुयुतं प्रातः कामलाःपिबेन्नरः॥ । त्रिफलापुरकृष्णाभिर्विरेकश्चात्र शस्यते ।
कामला रोगकी शान्तिके लिए प्रातःकाल त्रिफलां क्षौद्रसहितां पिबेद्वा नवकार्षिकम् ॥ त्रिफला, या गिलोय, या दारुहल्दी अथवा नीमकी शीतपित्त रोगमें त्रिफलेके काथमें गूगल और छालके शीत कषायमें शहद डालकर पीना चाहिए। पीपलका चूर्ण मिलाकर उससे घिरेचन कराना
(२ तोले औषधको कूटकर रातको १० तोले चाहिए अथवा शहदके साथ त्रिफला चूर्ण चटाना पानीमें भिगो दें प्रातःकाल मल छानकर १॥ चाहिए, या नवकार्षिक काथ पिलाना चाहिए। तोला शहद डालकर पिएं।
(२२९८) त्रिफलादिविरेचनम् (वं.से. नेत्र.) (२२९४) त्रिफलादिकाथः (वृ.नि.र.मूत्राघा.) त्रिफलादशमूलानां नियूहं दुग्धमिश्रितम् । वराम्बुलवणञ्चैव समूतं यः पिबेन्नरः। गन्धर्वतैलसंयुक्तं प्रयुञ्जीत विरेचनम् ।। तस्य नश्यन्ति वेगेन मूत्राघातास्त्रयोदशः॥ त्रिफला और दशमूलके क्वाथमें समान भाग
त्रिफलाके काथमें सेंधानमक मिलाकर उसके । दूध और ४-५ तोले अरण्डका तैल (काष्ट्रालय) साथ रस सिन्दूर सेवन करनेसे १३ प्रकारके | मिलाकर पिलानेसे विरेचन होकर वातज तिमिर मूत्राघात अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। | रोग नष्ट होता है। (२२९५) त्रिफलादिक्काथ:
। (२२९९) त्रिफलायोगः ।(ग. नि. । ग्रन्थ्य.) (र. र. । अ. १२ प्रेम.; वं. से. । प्र.) सकाञ्चनारात्रिफलाजले श्रृता त्रिफला मुस्तकं दारुहरिद्रा देवदारु च । प्रशस्यते मागधिकावचूर्णिता । तत्काथं मतिमान्मेहान्बहुपत्ररजं जयेत् ॥ सगण्डमालागलगण्डरोगिणां
त्रिफला, मोथा, दारु हल्दी, और देवदारुके - फलत्रिकाढयं यवमुद्गभोजनम् ।। काथके साथ अभ्रकभस्म सेवन करनेसे प्रमेह त्रिफला और कचनारकी छालके काथमें पीपनष्ट होता है।
| लका चूर्ण मिलाकर पिलाने और त्रिफला चूर्ण
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