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[ ३३० ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[ तकारादि त्रिफला, नीमकी छाल, मुलैठी, कटैली, । (२२८८) त्रिफलादिक्वाथः (यो. र. । बहुमू.) कटैला, और मसूर के काथमें घी मिलाकर पीनेसे त्रिफलावेणुपत्राब्दपाठामधुयुतैः कृतः। कास और ज्वर नष्ट होता है।
कुम्भयोनिरिवाम्भोधिं बहुमूत्रन्तु शोषयेत् ॥ (नोट-यह काथ जीर्णज्वर और वातज त्रिफला, बांसके पत्ते, मोथा और पाठाका कासमें हितकर है । कफज कास अथवा नवीन मधुमिश्रित काथ बहुमूत्रको इस प्रकार नष्ट कर ज्वरमें नहीं देना चाहिये।)
देता है जिस प्रकार कुम्भज ऋषिने क्षणभरमें (२२८५) त्रिफलादिक्काथः (वं. मा. । मुख.)
समुद्रको सुखा दिया था।
(२२८९) त्रिफलादिक्काथः कथिता त्रिफला पाठा मृद्वीका जातिपल्लवाः।
(वृ. नि. र.; वं. से.; यो. र. । शूल.; शा. सं.। निषेव्या भक्षणीया वा त्रिफला मुखपाकहा ॥
ख. २ अ. २) त्रिफला, पाठा, मुनक्का, और चमेलीके पत्तों |
त्रिफलारग्वधकाथः शर्कराक्षौद्रसंयुतः । का काथ पिलाने अथवा शहदके साथ त्रिफला
रक्तपित्तहरो दाहपित्तशूलनिवारणः॥ चूर्ण चटानेसे मुखपाक नष्ट होता है ।
त्रिफला और अमलतासके काथमें खांड और (२२८६) त्रिफलादिकाथः
शहद मिलाकर पीनेसे रक्तपित्त, दाह और पित्तज (वै. जी.वि. ३; भा. प्र.। पां.; शा. सं.।खं.२अ.२) शूल नष्ट होता है । त्रिफलावृषभूनिम्बनिम्बतिक्तामृताकृतः। (२२९०) त्रिफलादिकाथः (यो. र. । ने.) काथो मधुयुतःपीतः कामलापाण्डुरोगजित् ॥ अयःस्थं त्रिफलाकाथं सर्पिषा सह योजितम् । ___ त्रिफला, बासा, चिरायता, नीमकी छाल, भुक्तोपरि पिबेत्सायं मासेनान्धोऽपि पश्यति ।। कुटकी, और गिलोयके काथमें शहद मिलाकर प्रातःकाल त्रिफलेके क्वाथमें घी डालकर लोहे पीनेसे कामला तथा पाण्डुरोग नष्ट होता है। के बर्तनमें भरकर रख दीजिए और उसे सायङ्काल(२२८७) त्रिफलादिक्काथः
के भोजनके पश्चात् पीजिए। इस प्रकार १
मास तक त्रिफला काथ सेवन करनेसे अन्धेको (ग. नि. । कु.; च. सं. । चि. अ. ७ कु.)
भी दीखने लगता है। त्रिफलापटोलपिचुमन्दवचा
(२२९१) त्रिफलादिकाथः रुणयष्टिकाःसकटुका रजनी ।
(च. सं. । चि. अ. ३ ज्व.; वं. से. । ज्व.) नवःभिशृतं प्रपिबतःसलिलं
त्रिफलां त्रायमाणाश्च मृद्वीकां कटुरोहिणीम् । न भवन्ति पित्तकफकुष्ठरुजः॥
पित्तश्लेष्माहरस्त्वेष कषायो ह्यानुलोमिकः॥ हर्र, बहेड़ा, आमला, पटोलपत्र, नीमकीछाल, त्रिफला, त्रायमाणा, मुनक्का और कुटकीका बच, मजीठ, कुटकी और हल्दी। इन नौ वस्तुओं-_ काथ पीनेसे पित्तकफज ज्वर नष्ट होता और वायु का काथ पीनेसे पित्तकफज कुष्टका नाशहोता है। अनुलोम होता है।
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