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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३३६ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [तकारादि मिर्च, पीपल ) के चूर्णको सेवन करनेसे पुष्परोध (२३२०) तिलादिक्षारयोगः (मासिक धर्म न होना) और वातज गुल्म नष्ट (यो. र.; ग. नि. । अश्म.) होता है। क्षारोनिपीतस्तिलनालजातः (मात्रा ३ माशे । अनुपान तिलका काथ या समाक्षिकक्षीरयुतस्त्रिरात्रम् । गर्म पानी ।) हन्त्यश्मरी सिन्धुविमिश्रितं वा (२३१८) तिलसप्तकचूर्णम् (यो. स. । स. ४) निपीयमानं रुचकं प्रयत्नात् ।। तिलाग्निकव्योषविडङ्गपथ्या तिलनालका क्षार शहदमें मिलाकर ३ दिन चूर्ण गुडेनाथ जयेत्समस्तान् । तक दूधके साथ सेवन करनेसे अश्मरी(पथरी)नष्ट हो दुर्नामकान्पाण्डुगदान् कृमींश्च जाती है । अथवा मूलीके बीजोंके क्वाथमें सेंधानमक कासाग्निसादज्वरगुल्मरोगान् ॥ मिलाकर पीनेसे भी पथरी नष्ट हो जाती है। तिल, चीता, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल). (२३२१) तिलादिक्षारयोगः बायबिड़ङ्ग, और हरके चूर्णको गुड़के साथ सेवन | (. मा.; वृ.नि. र. । अश्मरी; वा. भ.चि.अ. ११) १. ना. करनेसे सर्व प्रकारकी बवासीर, पाण्डु, कृमि, । तिलापामार्गकदलीपलाशयवसंभवः । खांसी, अग्निमांद्य, ज्वर, और गुल्मरोग नष्ट होता है। क्षारःपेयोऽविमूत्रेण शर्करास्वश्मरीषु च ॥ तिल, अपामार्ग, केला, पलाश और यव । (चूर्णकी मात्रा-६ माशे। गुड़ ६ माशे । इन सबके क्षार समान भाग एकत्र मिलाकर गरम पानीसे प्रातःसायं खाएं ) यथोचित मात्रानुसार भेड़के मूत्रके साथ सेवन (२३१९) तिलादिक्षारः (वं. से. । उदर.) करनेसे शर्करा (पेशाबके साथ आनेवाली रेते ) तिलैरण्डद्रमस्तस्य क्षारो भल्लातकं कणा। और अश्मरी (पथरी) नष्ट होती है। एपां भाग समं कृत्वा तत्तुल्यन्तु गुडं मतम् ॥ (मात्रा-१-१॥ माषा । ) खादेदग्निबलं मत्वा पावकस्य विवृद्धये। (२३२२) तिलादिचूर्णम् (ग. नि. । राजय.) जयेप्लीहानमत्युग्रं यकृद्गुल्मं तथैव च॥ तिलमाषाश्वगन्धानां चूर्णमाजघृतान्वितम् । तिल और अरण्डका क्षार,शुद्ध भिलावा और पीपल लियाद्रौद्रयुतं प्रातः क्षयव्याधि निबर्हणम् ।। समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए । इसे समान : तिल, उर्द और असगन्धका समान भाग भाग गुड़में मिलाकर यथोचित मात्रानुसार सेवन । चूर्ण एकत्र मिलाकर बकरीके धी और शहदके करनेसे अत्यन्त प्रवृद्ध प्लीहा (तिल्ली) यकृत् साथ प्रातःकाल सेवन करने से क्षय रोग नष्ट ( जिगर ) और गुल्मका नाश होता तथा अग्निकी होता है। वृद्धि होती है। ( मात्रा-१।। मासे ३ माशे तक । घी ( मात्रा-१॥ माशा। गर्म पानीसे खाएं) ! १ तोला । शहद ३ तो.) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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