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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
दडालकर
इनका काथ बनाकर पीनेसे वातकफज ज्वर नष्ट शुद्ध लोह चूर्ण । सब चीजें समान भाग लेकर होता है।
अधकुटी करके मिट्टी के बरतनमें आठ गुने पानीमें (२२७१) त्रिफलादिकषायः
पकाइये । जब चौथाई पानी शेष रहे तो उतारकर (ग. नि.। ज्वर.; . मा.; वृ. नि. र.; वं. से. ।। छान लीजिए । इसमें शहद मिलाकर पीनेसे कफज
___ ज्वर.; वृ. यो. त.। त. ५९) ज्वर तथा अन्य कफज रोग नष्ट होते हैं। यह त्रिफलाशाल्मलीरास्नाव्याधिघाताटरूषकैः। हृदयके लिए भी हितकर है। एषां काथः सितायुक्तो वातपित्तज्वरापहः ।।
(२२७४) त्रिफलादिकषायः(ग.नि.;.मा.ज्वर) त्रिफला, सेंमलकी मूसली, ( अथवा छाल), रास्ना, अमलतास, और बासे ( अडूसे ) के काथमें
त्रिफलापटोलवासाच्छिन्नरुहा
(तिक्त)रोहिणीषड्गन्थाः। मिश्री मिलाकर पीनेसे वातपित्तज ज्वर नष्ट होता है।
मधुना श्लेष्मसमुत्थे (२२७२) त्रिफलादिकषायः
दशमूलीवासकस्य वा काथः ॥ (ग. नि.; . मा. । प्रमे.)
कफज ज्वरमें त्रिफला, पटोलपत्र, बासा त्रिफलारग्वधद्राक्षाकषायो मधुसंयुतः।
(अडूसा), गिलोय, कुटकी, और बचके काथमें पीतो निहन्ति फेनाख्यं प्रमेहं नियतं नृणाम् ॥
अथवा त्रिफला, अमलतास, और मुनक्काके काथमें
पीना चाहिए। शहद मिलाकर पीनेसे फेनाख्य प्रमेह ( वातज
(२२७५) त्रिफलादिक्काथः (बु. मा. । शोथा.) प्रमेह भेद ) अवश्य नष्ट हो जाता है।
त्रिफलायोरजःक्षारैःशोथजित्रिफलारसः । (२२७३) त्रिफलादिकषायः (ग.नि. । ज्वर.)
त्रिफलाके काथमें त्रिफलाका चूर्ण, लोहभस्म
और यवक्षार मिलाकर पीनेसे शोथ रोग नष्ट त्रिफलोशीरभूतीकं निम्बरोहिषमुस्तकम् ।
| होता है। सरलं दारु खदिरं पटोलं विश्वभेषजम् ॥ त्वक्सप्तपर्णात्पिप्पल्याकार्पासास्थि त्वयोरजः। (२२७६) त्रिफलादिक्काथः (वृ.नि.र. । व्रण.) पक्त्वा तुल्यानि निःस्राव्य स्थापयेन्मृण्मये नवे॥ ये क्लेदपाकतिगन्धवन्तो ततःसंपते हृद्यं स्थितं क्षौद्रयुतं पिबेत् । ।
व्रणा महान्तःसरुजा सशोथाः । हन्याच्च श्लैष्मिकान् रोगान् ज्वरश्च कफसम्भवम् प्रयान्ति ते गुग्गुलुमिश्रितेन
त्रिफला, खस, अजवायन, नीमकी छाल, पीतेन शान्ति त्रिफलाजलेन ॥ रोहिषतृण (मिर्चियागन्ध), मोथा, चीरका बुरादा । त्रिफलाके काथमें गूगल मिलाकर पीनेसे क्लेद देवदारु, खरसार, पटोलपत्र, सोंठ, सतौने (सप्तपर्ण) | पाक, स्राव, दुर्गन्ध, शोथ और पीडायुक्त भयङ्कर की छाल, पीपल, कपासके बीज (बिनौले ) और | घाव भी नष्ट हो जाते हैं।
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