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कषायपकरणम् ]
द्वितीयो भाग ।
[३२७ ]
करके आधा सेर पानीमें पकाकर आठवां भाग त्रिफलाके काथ या भंगरेके रससे उपदंश शेष रहने पर छानकर पीनेसे पित्ताभिष्यन्द (गी । (आतशक ) के घावोंको धोनेसे वह नष्ट हो से आंख दुखना), आंखोंसे पानी बहना, तिमिर, | जाते हैं। सूजन, दाह और शूल शान्त होकर नेत्र स्वच्छ (२२६८) त्रिफलादिकल्कः हो जाते हैं।
(वा. भ. । चि. स्था. अ. १२) (२२६४) त्रिफलाकाथः (वं. से. । विसर्प.) त्रिफलाव्योषपत्रैलात्वकक्षीरीचित्रकत्वचाम् । त्रिफलारससंयुक्तं सर्पित्रिवृतया सह। विडङ्गं पिप्पलीम् लोमशं वृषकं वचाम् ॥ प्रयोक्तव्यं विरेकार्थवीसर्पज्वरशान्तये ॥ ऋद्धिं लाङ्गलिकं चव्यं समभागानि पेषयेत् ।
विसर्पजन्य ज्वरमें विरेचन कराने के लिए कल्केलिप्त्वायसी पात्रीं मध्याह्ने भक्षयेदिदम् ।। त्रिफलाके काथमें निसोतका चूर्ण और घी मिलाकर वाताने सर्वदोषेऽपि परं शूलान्विते हितम् ।। पिलाना चाहिए।
त्रिफला, त्रिकुटा, तेजपात, इलायची, बनस(२२६५) त्रिफलाकाथः (ग. नि. । नेत्र.)
लोचन, चीता, दालचीनी, बायबिडंग, पीपल, कल्कःकाथोऽथवा चूर्ण त्रिफलाया निषेवितम्।
जटामांसी, बासा, बच, ऋद्वि, कलिहारी, और मधुना हविषा वापि समस्ततिमिरान्तकृत् ।।
चव । समान भाग लेकर पानीमें पीसकर प्रातःकाल त्रैफलेनाथ हविषा लिहानस्त्रिफलां निशि।
लोहेकी कटोरीमें लेप कर दीजिए और दोपहरको यष्टीमधुकसंयुक्तां मधुना च परिप्लुताम् ॥
(शहदमें मिलाकर ) चाट लीजिए। त्रिफलेका कल्क, काथ अथवा चूर्ण शहद
इसके सेवनसे सर्वदोषज वातरक्त और शूल या घीमें मिलाकर सेवन करनेसे समस्त तिमिर ।
नष्ट होता है। रोग नष्ट होते हैं।
(२२६९) त्रिफलादिकषायः (ग. नि.। चर.) रात्रिके समय त्रिफला और मुलैठी के चूर्णको
फलत्रिकमुशीरञ्च पटोलं मधुयष्टिका । त्रिफलाघृत और शहदमें मिलाकर चाटनेसे तिमिर
आटरूप कषायोऽयं पेयःपित्तकफज्वरे ।। रोग नष्ट होता है।
त्रिफला, खस, पटोलपत्र, मुलैठी, और बासे (२२६६) त्रिफलाकाथः (वं. मा.। ज्व.)।
( अडूसे) का काथ पित्तकफज ज्वरमें लाभ
पहुंचाता है। गुडप्रगाढां त्रिफलां पिबेद्वा विषमार्दितः।। त्रिफलेके क्वाथको गुड़से मीठा करके पीनेसे
(२२७०) त्रिफलादिकषायः (ग. नि.। ज्वर.)
त्रिफलाव्योषकटुकगुडूचीनिम्बवत्सकान् । विषमज्वर नष्ट होता है।
किराततिक्तकं मुस्तं पटोलञ्चैव संहरेत् ॥ (२२६७) त्रिफलाकाथः (बृ.मा.।उप. वृ.नि.र.) |
सिद्धःकपायःपातव्यो वातश्लेष्मोद्भवे ज्वरे ॥ त्रिफलायाःकषायेण भृङ्गराजरसेन वा।। __ त्रिफला, त्रिकुटा, कुटकी, गिलोय, नीमकी वणमक्षालनं कुर्यादुपदंशपशान्तये ।। | छाल, इन्द्रजौ, चिरायता, मोथा, पटोलपत्र ।
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