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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ३२५] त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), हर्र, बहेड़ा, गोखरु, खरैटी, कटैली, और सोंठ २-२ आमला, इन्द्रजौ, नीमकी छाल, निसोत, बच और तोले, पानी १२८ तोले, गायका दूध ३२ तोले। खैरके काथमें गोमूत्र मिलाकर पीनेसे पेटके कृमि सबको एकत्र मिलाकर पकाइये जब पानी जल शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। जाय तो छान लीजिए। इसमें गुड़ मिलाकर (२२५५) त्रिकट्वादिक्काथः (यो. र. । सन्नि.) पीनेसे मूत्रावरोध, कब्ज़ और कफज्वर नष्ट त्रिकटुकलिङ्गकटुकाहरीतकीविभीतकामलकैः। होता है। ध्वंसयति कण्ठकुब्ज वृषरजनीद्वययुतः काथः।। (२२५८) त्रिकण्टकादिसिद्धपयः (च.द.।मू.) त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), इन्द्रजौ, त्रिकण्टकैरण्डशतावरीभिः कुटकी, हर्र, बहेड़ा, आमला, हल्दी, दारुहल्दी सिद्धं पयो वा तृणपश्चमूलैः । तथा बासेका काथ पीनेसे कण्ठकुञ्ज सन्निपात गुडप्रगाढं सघृतं पयो वा नष्ट होता है। रोगेषु कृच्छ्रादिषु शस्तमेतत् ॥ (२२५६) त्रिकण्टकादिकाथः । गोखरु, अरण्डमूल और शतावर अथवा (धन्व.; यो. र.; भै. र.; . मा.; । मूत्र; | तृणपञ्चमूल (कुश, कास, शर, दर्भ और ईखकी वृ. यो. त. । त. १०० ) जड़) से सिद्ध दूधको गुड़से मीठा करके घी डालत्रिकण्टकारग्वधदर्भकास कर पीनेसे मूत्रकृच्छू नष्ट होता है । __दुरालभाःप्रस्तरभेदपथ्याः। (औषध ५ तोले, दूध ४० तो०, पानी १६० तो. । मिलाकर पकाएं । पानी जल कर निघ्नन्ति पीडां मधुनाऽश्मरीं च दूध मात्र शेष रहने पर उतार लें।) __सम्माप्तमृत्योरपि मूत्रकृच्छ्रम्॥ (२२५९) त्रिकार्षिकादिकषायचतुष्टयः गोखरु, अमलतास, दाभ, कास, धमासा, (ग. नि. । ज्वरा. ) पखानभेद और हर्रके काथमें शहद डालकर पीने | इमं चान्यं प्रवक्ष्यामि समासेन यथा क्रमम् । से पथरी और मृत्युके समीप पहुंचा देने वाले सर्वज्वरहरं श्रेष्ठं कषायममृतोपमम् ॥ मूत्रकृच्छ्रकी पीड़ा भी नष्ट होजाती है। त्रिकर्ष पञ्चकर्ष वा सप्तकर्षमथापि वा । (२२५७) त्रिकण्टकादिक्षीरः । - एवं सशमनार्थ तु देयं स्यान्नवकार्षिकम् ॥ (वृ. नि. र.; . मा.; वं. से. । ज्व.; शा. सं । त्रिकार्षिकं पटोलन्तु मधुकं भद्ररोहिणी। खं. २ अ. २) एतदेव समुस्तं स्यात्साभयं पञ्चकार्षिकम् ।। त्रिकण्टकबलाव्याघ्रीगुडनागरसाधितम्। सनिम्बपत्रं सोशीरं विज्ञेयं सप्तकार्षिकम् । वर्षोमूत्रविबन्धनं कफज्वरहरं पयः॥ त्वचात्र सप्तपर्णस्य फलान्यारग्वधस्य च ॥ १ बचेति पाठान्तरम् For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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