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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३२४ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [तकारादि पिलाइये। इसके सेवनसे पैतिक गुल्म नष्ट (२२५१) त्रिकटुकादिगणः (सु.सं.।सू.अ.३८) होता है। पिप्पलीमरिचशृङ्गवेराणि त्रिकटुकम् । (२२४८) त्रायमाणादिकाथः (वृ.नि.र.शू.) । ज्यूषणं कफमेदोन्नं मेहकुष्ठत्वगामयान् ॥ त्रायमाणकणामूलं त्रिता मधुकं शिवा।। निहन्यादीपनं गुल्मपीनसाग्न्यल्पतामपि ॥ गिरिमालाशिवाद्राक्षाकुरण्टपित्तशूलहृत् ॥ पीपल, कृष्णमिर्च और सोंठके मिश्रणको ___त्रायमाणा, पीपलामूल, निसोत, मुलैठी, सोंठ, त्रिकटु या त्र्यूषण कहते हैं। अमलतास, हर्र, मुनक्का और पिया बांसेका काथ त्रिकुटा-कफ, मेद, प्रमेह, कुष्ठ, चर्मरोग, पीनेसे पित्तज शूल नष्ट होता है । गुल्म, पीनस और अग्निमांद्य नाशक तथा अग्नि(२२४९) त्रायमाणादि क्वाथः । दीपक है। (वृ. यो. त.। त. १२३) । (२२५२) त्रिकवादिकाथः (वृ. नि. र.। कृ.) त्रायमाणपटोलपर्पटकच्छुराकटुरोहिणी । त्रिकटुत्रिफलाकाथःसक्षारलवणःपिबेत् । पावकेन लघीयसा परिपाच्य साधुशृतं हितम् । कफवातप्रकोपन्नो विरेकात्कफदिजित् ॥ हन्ति सर्वविसर्पजालमुपद्रवौघसमायुतम् । सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, और आमद्वन्द्वजं विषजं च तं पुरसंयुतं गुणवत्तरम् ॥ लेके काथमें यवक्षार और सेंधानमक मिलाकर त्रायमाणा, पटोल, पित्तपापड़ा, धमासा और पीनेसे विरेचन होकर कफ और वायुके प्रकोप कुटकीको अधकुटा करके रातको पानीमें भिगो | तथा अण्डवृद्धिका नाश होता है। टीजिा और प्रातःकाल मन्दाग्रिपर पकाकर ठान- (२२५३) त्रिकटवादिकाः कर रोगीको पिला दीजिए । यह द्वन्द्वज, विषज __ (वं. से.; यो. र.; वृ. नि. र.; वृं. मा. । शिर.) और अन्य सर्व प्रकारके विसोको नष्ट करता है। त्रिकटुपुष्करवीजकरञ्जरास्नातुरङ्गगन्धानाम् । यदि इसमें गूगल मिला लिया जाय तो और भी काथः शिरोतिजालं नासापीतो निवारयति । अधिक गुणकारी हो जाता है। त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), कमलगट्टे (२२५०) त्रायमाणादिकाथः । करञ्जकी गिरी, रास्ना और असगंधका काथ (च. सं. । चि. अ. ३.) नासिका द्वारा पीनेसे शिरशूल नष्ट होता है। त्रायमाणामृतानिम्बपटोलत्रिफलाशतम् ।। (२२५४) त्रिकट्वादिकाथ: गुरुक्षीरा पिबेदेतत् स्तन्यदोषविशुद्धये ॥ (वै. जी. । विलास १ ) यदि बालककी माताका दूध भारी हो तो | त्रिकटुत्रिफलाकलिङ्गनिम्ब उसे (माताको) त्रायमाणा, गिलोय, नीमकी छाल, | त्रिदुग्राखदिरोद्भवःकषायः । पटोल और हरै, बहेड़ा तथा आमलेका काथ पशुमूत्रसमन्वितो निपीतः पिलाना चाहिए। कृमिकोटीरपि हन्ति वेगतोऽयम्।। १ त्रिकटुपुष्कररजनीरास्नासुरदारुग्रगन्धानामिति पाठभेदः । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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