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कषायप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ ३२३]
सन्ततादि ज्वरोमें त्रायमाणा, कुटकी, अनन्त- | और मुलैठी, १-१ भाग; निसोत और पटोल मूल और सारिवाका क्वाथ देनेसे वातादि दोष | ४-४ भाग तथा छिलके रहित मसूर ८ भाग । शान्त होते हैं।
इनके काथमें घी डालकर पीनेसे विद्रधि, गुल्म, (२२४३) त्रायन्त्यादिक्काथः
वीसर्प, दाह, मोह, मद, ज्वर, तृष्णा, मूर्छा, ( वृ. नि. र.; ग. नि. । ज्वर ) वमन, हृद्रोग, रक्तपित्त, कुष्ठ और कामलाका नाश त्रायन्तीदशमूलपुष्करजटावातारिभिः कारवी। होता है। भार्गी स्यादमृताटरूषकशटीगोमूत्रसंयोजितैः ॥ (२२४६) त्रायन्त्यादिकाथः (वृद्ध) शृङ्गीव्योषपुनर्नवाभिरचिरादुष्णकषायो हरेत् ।
(यो. चि. । का.) साभिन्यासगदं कफज्वरहरं निःसंशयं पाययेत्॥ त्रायन्तीन्द्रयवावासाछिन्नातिक्तापटोलकैः। __ त्रायमाणा, दशमूल, पोखरमूल, अरण्डमूल, निम्बदस्पर्शभूनिम्बशम्पाकपद्मकपर्पटैः॥ कलौंजी, भारंगी, गिलोय,बासा (अडूसा ), कपूर- अष्टावशेषितःकाथः पित्तश्लेष्मज्वरापहः॥ कचरी, काकडासिंगी, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल)
त्रायमाणा, इन्द्रयव, बासा, गिलोय, कुटकी, और पुनर्नवाको गोमूत्रमें पकाकर गर्म गर्म पीनेसे पटोलपत्र, नीमकी छाल,धमासा,चिरायता,अमलतास कफज्वर और अभिन्यास सन्निपात शीघ्र नष्ट
पद्माख, और पित्तपापड़ा समान भाग लेकर होता है।
अधकुटा करके आठगुने पानीमें पकाकर आठवां (२२४४) त्रायन्त्यादिकाथः (यो.चि.का.) भाग पानी शेष रहने पर छानकर पिलानेसे पित्तजायन्तीपर्पटोशीरतिक्तानिम्बदुस्पृशा- कफज ज्वर नष्ट होता है। कषायो मधुसंयुक्तो पित्तज्वरविनाशनः ॥ (२२४७) त्रायमाणाकाथ:
त्रायमाणा, पित्तपापड़ा, खस, कुटकी, नीमकी (वा. भ. । चि. स्था. अ. १४) छाल और धमासेके काथमें शहद डालकर पीनेसे द्विपलं त्रायमाणाया जलद्विपस्थसाधितम् । पित्तज्वर नष्ट होता है।
अष्टभागस्थितं पूतं कोष्णं क्षीरसमं पिबेत् ॥ (२२४५) त्रायन्त्यादिक्वाथः
पिबेदुपरि तस्योष्णं क्षीरमेव यथा बलम् । (वा. भ. । चि. । अ. १३) तेन नि तदोषस्य गुल्मः शाम्यति पैत्तिकः ।। प्रायन्ती त्रिफला निम्ब कटुका मधुकं समम्। १० तोले त्रायमाणाको २ सेर पानीमें पकात्रिवृत्पटोल्काभ्याञ्च चत्वारोंशाः पृथक् पृथक्॥ इये जब पावसेर पानी शेष रह जाय तो छान मसूरान्निस्तुपादष्टौ तत्काथःसघृतो जयेत् ।। लीजिए। विद्रधीगुल्मवीसर्पदाहमोहमदज्वरान् ॥ । प्रथम विरेचनादि द्वारा शरीर शुद्धि करा तृण्मूर्छाच्छर्दिहृद्रोगपित्तामृकुष्ठकामलाः॥ देनेके पश्चात् इस काथमें समान भाग दूध मिला"बायमाणा, त्रिफला, नीमकी छाल, कुटफो । कर मन्दोण पिलाकर ऊपरसे यथाशक्ति उष्ण दूध
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