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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३२२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [तकारादि vRRVAVvvvvvvvvvv vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv काथके साथ दूध पकाकर उसमें शहद और | (२२३९) तृष्णानिग्रहणो कषायदशकः शर्करा ( खाण्ड ) मिलाकर पीनेसे खांसी नष्ट (च. सं. । सू. अ. ४) होती है। नागरधन्वयासकमुस्तपर्पटकचन्दनकिरात(यह पित्तज कासमें विशेष हितकारी है। तिक्तकगुडूचीहीवेरधान्यकपटोलानीति दशेमानि (२२३७) तृणपञ्चमूलीसिद्धपयः तृष्णानिग्रहणानि भवन्ति ।। सोंठ, धमासा, मोथा, पित्तपापड़ा, लाल (वं. से. । रक्तपित्ता.) चन्दन, चिरायता, गिलोय, सुगन्धबाला, धनिया शतं क्षीरं पिबेच्चापि पञ्चमूल्या तृणाहया। और पटोलपत्र । यह दश चीजें तृष्णानाशक हैं । गोकण्टकानां स्वरसै पणिनीभिस्तथा पयः ॥ । (२२४०) त्रायन्त्यादिकषायः (ग.नि.।ज्वर.) हन्त्याशु रक्तं सरुजं विशेषान्मूत्रमार्गगम् । त्रायन्ती कटुका मुस्तं चन्दनोशीरसारिवाः। मेढ़गे विहतश्चापि वस्तिरुत्तरसंज्ञिकः॥ पटोलपत्रं मधुकं मधुकं चाक्षसम्मितम् ॥ तृणपञ्चमूलके साथ अथवा शालपर्णी, पृष्ट तत्पकं मधुना पेयं कफपित्तोद्भवे ज्वरे ।। पर्णी, मुद्गपर्णी और माषपर्णीके साथ अथवा त्रायमाणा, कुटकी, मोथा, लाल चन्दन, खस, गोखरुके स्वरसके साथ दूध पकाकर पीनेसे सारिवा, पटोलपत्र, मुलैठी और महुवेके फूल ११-१। रक्तपित्त और विशेषकर मूत्रमार्गसे आने वाला तोला लेकर काथ बनाकर ठण्डा करके उसमें शहद रक्त शान्त होता है। मिलाकर पीनेसे कफपित्तज्वर नष्ट होता है । ____ मूत्रमार्गसे रक्त आता हो तो उसमें इस (२२४१) त्रायन्त्यादिक्वाथः (ग.नि.पाण्डु) दूधकी उत्तरवस्ति भी लाभ पहुंचाती है। त्रायन्तिकामधुकपिप्पलीमूलमुस्ता (दूध ८ भाग, पानी ३२ भाग, कुटी हुई वासागुडूचिपिचुमन्दकिरातजातम् । औषध १ भाग । सबको मिलाकर पानी जलने शीतीकृतं मधुयुतं पिबतः कषायम् तक पकाकर छान लें।) हारिद्रकज्वरमसौ विनिहन्ति शीघ्रम् ।। त्रायमाणा, मुलैठी, पीपलामूल, मोथा, वासा, (२२३८) तृप्तिन्नो कषायदशकः गिलोय, नीमकी छाल और चिरायता । इनके (च. सं. । सू. अ. ४) काथको ठण्डा करके शहद मिलाकर पीनेसे हारिद्रक नागरचित्रकचव्यविडङ्गमूर्वागुडूचीवचामुस्त- सन्निपात शीघ्र नष्ट होता है । पिप्पलीपटोलानीति दशेमानि तृप्तिन्नानि भवन्ति। (२२४२) त्रायन्त्यादिक्वाथः सोंठ, चीता, चव, बायबिडंग, मूर्वा, गिलोय, (वं. से.; वृ. नि. र.; यो. र. । ज्वर. ) वच, मोथा, पीपल और पटोलपत्र । यह दश | त्रायन्तीकटुकानन्तासारिवाभिः शृतं जलम् । चीजें तृप्तिका नाश करती हैं। सन्तताये ज्वरे देयं वातादीनां निवृत्तये ॥ १ तृप्ति-कफजरोग, जिसमें पूर्णाहार किए बिना ही तृप्ति रहती है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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