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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir RANAYAN. AAVVVVVV. Vvvvvm [३१८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [तकारादि (२२१०) तण्डुलीयकल्कः (शा.सं.खंरअ.५) । कृष्णाचूर्णयुतस्त्रिदोषजनिते विष्टम्भदाहान्विते। - तंदुलीयजटाकल्कः सक्षौद्रःसरसाञ्जनः। कासश्वासविलापतृट्वति हितःसन्दीपनःपाचनः।। तन्दुलोदकसंपीतो रक्तप्रदरनाशनः ॥ कुटकी, पद्माख, सुगन्धबाला, लालचन्दन, चौलाई की जड़ और रसौतको पीसकर शहदमें धनिया, बासा (अडूसा), हर्र, अमलतास, पाठा, मिलाकर चावलोंके धोवन (तण्डुल जल) के साथ | सोंठ, इन्द्रजौ, गिलोय और मोथेका काथ बनाकर सेवन करनेसे रक्तप्रदर नष्ट होता है। उसमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पीनेसे कब्ज और (२२११) तण्डुलीयमूलप्रयोगः (रा.मा.अति.)| दाहयुक्त सन्निपात ज्वर, खांसी, श्वास, प्रलाप घृष्ट्वोदकेन घननादजटा तु हन्ति । और तृष्णा नष्ट होती है । यह कार्य दीपन तं रक्तयुक्तमपि मालिकशर्कराढ्या ॥ पाचन भी है। चौलाईकी जड़को पानीमें पीसकर उसमें (२२१५) तिक्तादिकाथः ( ग. नि. । व्व. ) शहद और खांड मिलाकर पीनेसे रक्तातिसार काथः सततके तिक्ता पटोलं सारिवा धनम् । नष्ट होता है। सतत ज्वर ( दिन रातमें २ बार आनेवाले (२२१२) तण्डुलीयमूलप्रयोगः ज्वर )में कुटकी, पटोलपत्र, साश्विा और मोथेका (यो. त. । त. ७५; ग. नि.) काथ देना चाहिए । तण्डुलीयकमूलानि पिष्टवा तण्डुलवारिणा। (२२१६) तिक्तादिक्वाथ: ऋत्वन्ते तुत्र्यहं पीत्वा वन्ध्याकुर्वन्ति योषितः॥ (वं. से.; वृ. नि. र. । ज्व. ) मासिक धर्म होनेके पश्चात् तीन दिन तक तिक्ता पर्पटभूनिम्बौ मुस्तां छिनरुहां पिबेत् । चौलाईकी जड़को चावलोंके पानीमें पीसकर पीनेसे अभ्यासेन जयत्येष ज्वरमामृत्युमातुरः ॥ स्त्री वंध्या हो जाती है। कुटकी, पित्तपापड़ा, चिरायता, मोथा और (२२१३) ताम्बूलपत्रयोगः (वं.से.स्लीप.) | गिलोयका काथ नित्य प्रति कुछ दिनों तक पीनेसे सप्तताम्बूलपत्राणां कल्कं तप्तेन वारिणा। मरणासन्न ज्वररोगी भी स्वस्थ हो जाता है। संसृष्टलवणोपेतं श्लीपदं हन्ति सेवितम् ॥ । (२२१७) तिक्तादिकाथः (वृ. नि. र. । ज्व.) ५ ताम्बूलपत्रों ( पानों )को नमकके साथ तिक्तातिक्तकपर्पटमृतसठीरास्नाकणापौष्करम्। पीसकर गर्म पानीसे सेवन करनेसे श्लीपद (हाथी प्रायन्तीहतीसुरौषधशिवादुःस्पर्शभार्गीकृतः॥ पग ) रोग नष्ट होता है। कायो नाशयति त्रिदोषनिकर स्वापं दिवा जागरम् (२२१४) तिक्तादिकाथः (वैद्यामृत. वि. ६) नक्तं तृण्मुखशोषदाहकसनश्वासानशेषानपि ॥ तिक्तापद्मकतोयचन्दनधनावासाभयारग्वधैः। कुटकी, कड़वा पटोल, गिलोय, कचूर, पाठविश्वकलिङ्गकामृतलतामुस्तैःकषायःकृतः॥ रासना, पीपल, पोखरमूल, त्रायमाणा, बड़ी कटैली, For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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