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भारत - भैषज्य रत्नाकरः ।
ट Boocod अथ टकारादि चूर्ण प्रकरणम्
(२१९८) टङ्कणप्रयोगः ( वं. से. । क्षु. ) कोटिप्रविष्टेन टङ्कणेन न शाम्यति । कुनखश्चेत्तदा भ्रान्तः शैलोपि लवते जले ||
सुहागेकी खीलको नाखूनके नीचे भरने से ( अथवा घी में मिलाकर लगानेसे ) कुनखं रोग अवश्य नष्ट होता है । (२१९९) टङ्गनादिचूर्णम् (आ.वे. वि. | योनि . ) टङ्गनं पञ्चवणं तुगाक्षीरीं शिलाजतु । नागरं मुस्तकं वह्नि पद्मकं नीलमुत्पलम् ।। जीवन्तीं मधुकं द्राक्षां गुडूचीं चन्दनद्वयम् । चूर्णयित्वाम्भसा नारी पिबेत् कण्डूमशान्तये ।। योनिकण्डूगदे योनौ शीततोयाभिषेचनम् । स्नेहस्वेदश्च कर्तव्यो वस्तिश्चोत्तरसंज्ञितः ॥
सुहागा, पांचों लवण, बंसलोचन, शिलाजीत, सोंठ, नागरमोथा, चीता, पद्माख, नीलो पल ( नीलोफर ), जीवन्ती, मुलैठी, मुनक्का, गिलोय, लाल चन्दन और सफेद चन्दन । सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए ।
इसे ठण्डे पानी के साथ पीने से योनिकी खुजली शान्त होती है । योनिकी खाजको शान्त करनेके | लिए, योनिको ठण्डे पानीसे धोना तथा स्नेहन | स्वेदन और उत्तरवस्ति करानी चाहिए । इतिटकारादिचूर्ण प्रकरणम् ।
अथ टकाराद्यञ्जन त्रकरणम् (२२००) टङ्कणाद्यञ्जनम् ( र. र. | ने. ) टगं रस पिवा जम्बीरैः कांस्त्रभाजने । परमरोगहरं कण्डं रक्तत्रावञ्च नाशयेत् ॥
समान भाग सुहागेकी खील और खपरिया ( अभा में जत भस्म ) को नीबू के रस में कोसीके पात्र में पीलर महीन कर लीजिए ।
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इसका अञ्जन करनेसे नेत्रों की पलकों के रोग, खुजली और रक्तस्रावका नाश होता है । इति टारायजनन करणन् ।
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अथ टकारादिरसत्रकरणम् (२२०१) टङ्गनादिवटी
( भै. र. र. रा. सुं. । अग्निमां. ) टङ्गननागरगन्ध कपारद
गरले मरिच समभागयुतम् । लकुचस्त्र सैश्वण इनतिमा
गुटिका जनयत्यचिरादनलम् ॥
शुद्र
सुहागेकी खील, सोंड, गन्धक, शुद्ध पारद, मीठा तेलिया और स्याह मिर्चका चूर्ण समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य औषधियों का चूर्ण मिलाकर
१- नखके नीचेका मांस कठोर हो जाना तथा उसमें दाह होना ।
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