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मिश्रप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[३१३]
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(२१९५) ज्वरनाशकवस्तिः
सेहुंड ( थोहर ) के दूधमें समान भाग सेंधा (च. सं. । चि. अ. ३) | नमक मिलाकर अग्नि पर पकाकर गाढ़ा कर पटोलारिष्टपत्राणि सोशीरश्चतुरङ्गलः।
लीजिए। हीवेरं रौहिणं तिक्ता श्वदंष्ट्रा मदनानि च ॥
। इसमें से २ वल्ल (४ या ६ रत्ती ) औषध स्थिरा बला च तत् सर्व पयस्यद्धोदके शतम्।
| उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे विरेचन होकर क्षीरावशेष नि!हं संयुक्तमधुसर्पिषा ॥
ज्वर नष्ट हो जाता है। कल्कैर्मदनमुस्तानां पिप्पल्या मधुकस्य च ।। (२१९७) ज्वरहरी वस्तिः वत्सकस्य च संयुक्तं वस्ति दद्यात् ज्वरापहम् ।।
(च. सं. । चि. स्था. अ. ३ ) पटोलपत्र, नीमके पत्ते, खस, अमलतासका
जीवन्ती मधुकं मेदां पिप्पली मरिचं वचाम् । गूदा, सुगन्धबाला, कुटकी, गोखरु, मयनफल,
ऋद्धिं रास्नांबलां विश्वं शतपुष्पां शतावरीम् ॥ शालपर्णी, और खरैटी । सब चीजें समान भाग
पिष्टवा क्षीरञ्जलं सर्पिस्तैलश्च विपचेद् भिषक् । लेकर कूटकर उनमें सबसे चार गुना दूध और
आनुवासनिकं स्नेहमेतद् विद्याज्ज्वरापहम् ॥ उतना ही पानी मिलाकर पकाइये । जब दूध मात्र
जीवन्ती, मुलैठी, मेदा, पीपल, स्याह मिर्च, शेष रह जाय तो उतारकर छान लीजिए।
बच, ऋद्धि, रास्ना, खरैटी, सोंठ, सौंफ और इस दूधमें घी और शहद तथा मैनफल,
शतावर । सब चीजें समान भाग लेकर पीस मोथा, पीपल, मुलैठी और इन्द्रजौका कल्क
लीजिए । इस कल्क और दूध तथा पानीके साथ
घृत और तैल पका लीजिए।। मिलाकर वस्ति देनेसे ज्वर नष्ट होता है।
इस स्नेहकी वस्ति लेनेसे ज्वर नष्ट होता है। (२१९६) ज्वरनाशनो विरेका
__ (विधिः-कल्क १ भाग, घी २ भाग, (र. स. क. । उ. ५)
| तैल २ भाग, दूध ८ भाग, पानी ८ भाग । एकत्र सैन्धवेन युतं वनक्षीरमग्निविपाचितम् । मिलाकर स्नेह मात्र शेष रहने तक पकावें । द्विवल्लमुष्णकैःपीतं विरेकाज्ज्वरनाशनम् ॥ । इति जकारादिमिश्रप्रकरणम् ।
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