SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [३१३] vvvvvvvvvvvvvunnyvvvvvvvanA (२१९५) ज्वरनाशकवस्तिः सेहुंड ( थोहर ) के दूधमें समान भाग सेंधा (च. सं. । चि. अ. ३) | नमक मिलाकर अग्नि पर पकाकर गाढ़ा कर पटोलारिष्टपत्राणि सोशीरश्चतुरङ्गलः। लीजिए। हीवेरं रौहिणं तिक्ता श्वदंष्ट्रा मदनानि च ॥ । इसमें से २ वल्ल (४ या ६ रत्ती ) औषध स्थिरा बला च तत् सर्व पयस्यद्धोदके शतम्। | उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे विरेचन होकर क्षीरावशेष नि!हं संयुक्तमधुसर्पिषा ॥ ज्वर नष्ट हो जाता है। कल्कैर्मदनमुस्तानां पिप्पल्या मधुकस्य च ।। (२१९७) ज्वरहरी वस्तिः वत्सकस्य च संयुक्तं वस्ति दद्यात् ज्वरापहम् ।। (च. सं. । चि. स्था. अ. ३ ) पटोलपत्र, नीमके पत्ते, खस, अमलतासका जीवन्ती मधुकं मेदां पिप्पली मरिचं वचाम् । गूदा, सुगन्धबाला, कुटकी, गोखरु, मयनफल, ऋद्धिं रास्नांबलां विश्वं शतपुष्पां शतावरीम् ॥ शालपर्णी, और खरैटी । सब चीजें समान भाग पिष्टवा क्षीरञ्जलं सर्पिस्तैलश्च विपचेद् भिषक् । लेकर कूटकर उनमें सबसे चार गुना दूध और आनुवासनिकं स्नेहमेतद् विद्याज्ज्वरापहम् ॥ उतना ही पानी मिलाकर पकाइये । जब दूध मात्र जीवन्ती, मुलैठी, मेदा, पीपल, स्याह मिर्च, शेष रह जाय तो उतारकर छान लीजिए। बच, ऋद्धि, रास्ना, खरैटी, सोंठ, सौंफ और इस दूधमें घी और शहद तथा मैनफल, शतावर । सब चीजें समान भाग लेकर पीस मोथा, पीपल, मुलैठी और इन्द्रजौका कल्क लीजिए । इस कल्क और दूध तथा पानीके साथ घृत और तैल पका लीजिए।। मिलाकर वस्ति देनेसे ज्वर नष्ट होता है। इस स्नेहकी वस्ति लेनेसे ज्वर नष्ट होता है। (२१९६) ज्वरनाशनो विरेका __ (विधिः-कल्क १ भाग, घी २ भाग, (र. स. क. । उ. ५) | तैल २ भाग, दूध ८ भाग, पानी ८ भाग । एकत्र सैन्धवेन युतं वनक्षीरमग्निविपाचितम् । मिलाकर स्नेह मात्र शेष रहने तक पकावें । द्विवल्लमुष्णकैःपीतं विरेकाज्ज्वरनाशनम् ॥ । इति जकारादिमिश्रप्रकरणम् । भा... For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy