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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् । द्वितीयो भागः। [३०३ । AAAAAAAAAAAAAmAvne मपुटेद्भधरे शीते वनीक्षी रैर्विमईयेत् ॥ (२१६५) ज्वराङ्कशरसः (९) प्रपुटेधरे पश्चात्पश्चगुञ्जामितं शुभम् । (र. चं.; र. सा. सं.; र. रा. सुं. । ज्वर.) आद्रकस रसेनैव सर्वज्वरनिकृन्तनः ॥ रसस्प द्विगुणं गन्धं गन्धतुल्यं च टङ्कणम् । ऐकाहिकं द्वयाहिकश्च व्याहिकश्चातुराहिकम्। रसतुल्यं विषं योज्यम् मरीचं पश्चधा विषात् ॥ विषमश्चापि शीतादयं ज्वरं हन्ति ज्वराङ्कशः।। कट्फलं दन्तिवीजच प्रत्येक मरिचीन्मितमः । ताम्र भस्म. १ भाग और हरताल भस्म २ ज्वराङ्कशरसो नाम मर्दयेद्याममात्रकम् ।। भाग लेकर दोनोंको करेलेके रसमें घोटकर टिकिया मापैकेन निहन्त्याशु ज्वरं जीण त्रिदोषजम् ॥ बनाकर सुखाकर भूधर यन्त्रमें पकाइये । तत्पश्चात् शुद्र पारा १ भाग, गन्धक २ भाग, सुहागा थोहरके दूधमें धोटकर फिर भूधर पुटकी आंच २ भाग, शुद्ध बछनाग १ भाग तथा काली मिर्च, दें। जब स्वांगशीतल हो जाय तो निकालकर पीस | कायफल और शुद् जमालगोटा ५-५ भाग लेकर लीजिए। प्रथम पारे और गन्धककी कजली बना लीजिए इसमेंसे ५ रत्ती दवा अद्रकके रसके साथ और फिर उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिलाकर देनेसे एकाहिक, द्वयाहिक, तृतीयक और चातुर्थि १ पहर तक घोटिए । कादि सर्दी लगकर आने वाले समस्त विषम __इसे १ माषेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे स्वर नष्ट होते हैं। त्रिदोषज जीर्णज्वर अवश्य नष्ट होता है । (२१६४) ज्वराङ्कशरसः (८) (भै.र. । ज्व.) ( अनुपान-अदरकका रस ।) (२१६६) ज्वराङ्कशारसः (अल्प) (१०) शुद्धमू तथा गन्धं वीज कनकसम्भवम् । ( भै.र.;वृ.नि. र. र.रा.सु.।ज्वर. आयु.वि.अ.४ ) महोपत्र टङ्गनश्च हरितालं तथा विष॥ L. शुद्धसूतं विषं गन्धं धूतवीजं त्रिभिः समम् । भृङ्गराजाम्भसा सर्व मर्द पित्वा वटीं चरेत् । चतुर्णा द्विगुगं व्योषं चूणे गुञ्जाद्वयं हितम् ।। गुजाप्रमाणां खादे तां यथादोषानुपानतः॥ । जम्बीरसा च मज्जाभिराईका रसैयुतम् । एर ज्वराङ्कश। नाम्ना विषम ज्वरनाशनः । | बरा शो रसो नाम्नाज्वरान्सर्वान्त्रणाशयेत् ।। ज्वरातिसारं मन्दानि नाशोच्चाविकल्पत ॥ शुद्ध पारा, शुद्र बछनाग और शुद्रः गन्धक शुद्र पारा, शुद् गन्धक, धतूरेके बीज, सी, १-१ भाग, धतूरेके बीज.. ३ भाग, त्रिकुटा सुहागेकी खील, हरताल, और शुद्ध बंछनाग समान (सों ; मिर्च, पीपल ) १२ भाग लेक. प्रथम पारे भाग लेकर मैगरेके रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी गन्धककी कजली बना लीजिए, फिर अन्य ओपगोलियां बना लीजिए। धियोंका महीन चूर्ण मिलाकर खरल करके रखिए । इनमेंसे १-१ गोली यथोचित अनुपानके . इसमेंसे २ रत्ती चूर्ण जम्भीरी नीबूकी मजा साथ देनेसे विषमज्वर, ज्वरातिसार और अग्निमांद्यः। अथवा अद्रकके रसके साथ सेवन करनेसे समस्त अवश्य नष्ट होता है। प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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