SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३०४ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। | जकारादि (२१६७) ज्वराङ्गशो रसः ( ११ ) इसमेंसे १ रत्ती रस पानमें रखकर खिलानेसे (र. प्र. सु. । अ. ८) आठ प्रकारके वर नष्ट होते हैं । सूतगन्धविषकारवीकणा (२१६९) ज्वरान्तकोरस:(भै.र.;धन्वः।ज्वर.) दन्ती वीज मिति वर्धितः क्रमात् । भास्करो गन्धकःसर्वो देवी विहङ्गं तीक्ष्णकम् । मर्दितैश्च दशनिम्बुकद्रवै शोणितं गगनश्चैव पुष्पकश्च महेश्वरम् ।। रक्तिकातुलिता वटी कृता ।। भूनिम्बादिगणैर्भाव्यं मधुना गुटिका दृढा । भक्षिता ज्वरगणानिहन्ति चै चातुर्थिकं तृतीयश्च ज्वरं सन्ततकन्तथा ।। सय एव विनिहन्ति सूचिकाम् ।। आमज्वरं भूतकृतं सर्वज्वरमपोहति ॥ (अत्र सर्वो रसः; देवो सौराष्ट्रमृत्तिका, विहङ्गं पारा १ तोला, गन्धक २ तोले, बछनाग | स्वर्णमाक्षिक, पुष्पकं कासीसं, महेश्वरं कनकवीजं ३ तोले, काली जीरी ४ तोले, पीपल ५ तोले और जमालगोटा ६ तोले लेकर प्रथम पारे गन्धककी अन्यत् सुगमम् । ताम्रादीनां समभागचूर्ण भूनिकजली बना लीजिए, तत्पश्चात् अन्य ओषधियोंका म्बादिकाथेन भावयेत् । भूनिम्बाद्यष्टादशद्रव्याणि चूर्ण मिलाकर दश कागजी नीबूके रसमें घोटकर सर्वद्रव्यतुल्यानि अष्टावशिष्टं काथं कृत्वा दिन आधी आधी रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। त्रयं विभाव्य विशोष्य मधुना विमर्यानुरूपं लिहेत् ।) ___ताम्र भस्म, गन्धक, पारा, सौराष्ट्री, सोनामक्खी इनके सेवनसे सर्व प्रकारके ज्वर और विसू- भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म, शिंगरफ, अभ्रक भस्म, चिका अत्यन्त शीघ्र नष्ट होती है। कसीस और धतूरे के बीज समान भाग लेकर प्रथम पारे (२१६८) ज्वराङ्कुशो रसः (१२) | गन्धककी कजली बना लीजिए तत्पश्चात् उसमें (वै. क. दु. । ज्वर.) अन्य ओषधियोंका अत्यन्त महीन चूर्ण मिलाकर मरिच टङ्कणं शङ्खचूर्ण पारदगन्धकम् । भूनिम्बादि गणके' काथमें ३ दिन तक घोटकर. शोधितं ब्रह्मपुत्रश्च भागमेकं विनिक्षिपेत् ॥ (१-१ रत्तीकी ) गोलियां बना लीजिए। . . गुञ्जामानं प्रदातव्यं नागवलीदलै सह । इनमेंसे प्रतिदिन प्रातः सायं १-१ गोली. ज्वराङ्कुशो रसो ह्येष ज्वरमष्टविधं जयेत् ॥ शहदके साथ खिलानेसे चातुर्थिक (चौथिया) प्रथम पारे गन्धककी कमली बना लीजिए। तृतीयक (तिजारी) और सन्तत ज्वर तथा आमतत्पश्चात् अन्य औषधियोंका चूर्ण मिलाकर अच्छी ज्वर और भूतज्वरादि समस्त प्रकारके ज्वर नष्ट तरह खरल करके रखिए । | होते हैं। १-भूनिम्बादि गण-चिरायता, देवदारु, सोठ, नागरमोथा, कुटकी, इन्द्र जौ, धनिया, गजपीपल और दशम्ल । यह सब चीजें समान भाग मिलाकर ताम्रादि समस्त औषधोंके बराबर लें और आठगुनें पानीमें पकाकर आठवां भाग शेष रहने पर छान लें । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy