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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि (२१५९) ज्वराङ्कशरसः (३) (र.का.धे.।ज्व.) (नोट-यह प्रयोग केवल अनुभवी वैवको शिखितत्थं सोममलं हरांशं मर्द त व्यहम् । ही करना चाहिए, और मात्रा विचारपूर्वक निश्चित कृष्णधतूरतोयेन मर्दनाच्च ज्वराङ्कशः॥ करनी चाहिए।) साध्यासाचं निहन्त्याशु ज्वरांश्च विषमान् हठात् (२१६१) ज्वराङ्कुशरसः (५) (र.का.धे.।ज्व.) तुत्थ, सोमल, और पारा समान भाग लेकर रसादधेस्त्रास्तालाद्भल्लाताद्वादशांशकाः। कजली करके उसे ३ दिन तक काले धतूरेके | स्तुकक्षीरसप्तपुटितास्त्रिगुजो ज्वरजिदूसः॥ रसमें घोट लीजिए। ___ रस सिन्दूर आधा भाग, हरताल ३ भाग और शुद् भिलावे १२ भाग लेकर सबको :: इसमें से १-१ रत्ती औषध उचित अनु एकत्र खरल करके थोहरके दूधकी सात भावनाएं पानके साथ देनेसे समस्त विषम ज्वर नष्ट होते हैं। दीजिए। मात्रा बहुत अधिक लिखी है। यह विषैली। इसमेंसे ३ रत्ती औषध उचित अनुपानके औषध है अत एव इसका प्रयोग अनुभवहीन साथ देनेसे ज्वर नष्ट होता है। वैद्योंको न करना चाहिए । ) (२१६२) ज्वराङ्कुशरसः (६) (२१६०) ज्वराङ्कशरसः (४) (र. चं. । ज्व.; र. प्र. सु. । अ. ८) (भा. प्र. म. ख. । ज्व.; वृ. यो. त. । त. ५९) एक एव कथितस्तु सोमल: दारुमृषां शिखिग्रीवां रसकश्च पृथा पृथा। स्वेदितो पि सह चूर्णजलेन । टङ्कत्रयानुमानेन गृहीत्वा कनकद्रवैः॥ यामपूर्वमपि रक्तिकामितो __ भक्षितःसकलशीतजूतिहत् ॥ मर्दयेत्रिदिनं कार्या वटी चणकमात्रया। सोमलको चूनेके पानीमें ( ७ दिन तक ) मरिचैरेकविंशत्या सप्तभिस्तुलसीदलैः॥ स्वेदित करके पीसकर रख लीजिए। खादेवटीद्वयं पथ्यं दुग्धभक्तं सशरम्। ब्ध दुग्धभक्त सशकरम्। इसमेंसे १ रत्ती औषध शीतज्वर आनेसे १ तरुणं विषमं जीर्ण हन्यात्सर्वं ज्वरं ध्रुवम् ॥ पहर पहिले देनेसे शोत ज्वर रुक जाता है। ... दारचिकना, तुत्थ और खपरिया ३-३ टङ्क (नोट-इसे अनुभवी चिकित्सकके अतिरिक्त लेकर ३ दिन तक धतूरेके रसमें घोटकर चनेके | अन्य किसीको प्रयुक्त न करना चाहिए और मात्रा बराबर गोलियां बना लीजिए। समयानुकूल १ चावल या न्यून देनी चाहिए। १ काली मिर्च और सात तुलसीपत्र एकत्र सोमल १ रत्ती मात्रानुसार कदापि न देना चाहिए) पीसकर उसके साथ २ गोली खानेसे तरुण ज्वर, (२१६३) ज्वराङ्कशरसः (७) . विषमज्वर, और जीर्णज्वर अवश्य नष्ट होता है। (र. सा. सं. । ज्वर.) पथ्यमें दूध भात और ग्वांड देनी चाहिए। ताम्रतो द्विगुगं तालं मईयेत्सुषवीद्रवैः । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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