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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir - [ २९६ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। जकारादि शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और अभ्रक भस्म दिन गूमाके रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां १-१ भाग, शुद्ध बछनागका चूर्ण आधा भाग | बना लीजिए। और शुद्ध जमालगोटेका चूर्ण बछनागसे तीन गुना . इनमेंसे एक एक गोली पानमें रखकर खाने लेकर प्रथम पारे गन्धक की कजली बना से नवीन वर, सन्निपात, विषम चर और जीर्ण लीजिए और फिर अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर ज्वर एक ही दिनमें नष्ट हो जाता है । पथ्यनीबूके रस या काजीमें घोटकर सबका एक गोला मंगकाष और शिखरन । बनाइये । इस गोलेको नागरबेलके पानोंमें लपेटकर | (२१४७) ज्वरभैरवो रसः (५) भूमिमें गढ़ा खोदकर उसमें रखकर कुक्कुट पुटमें (र. का. धे. । अधि. १) फूंक दीजिए । तत्पश्चात् स्वांग शीतल होनेपर रसेन्द्रगन्धकव्योषवह्निस्फाटिकटङ्कणम्। . निकालकर पानों सहित पीसकर उसमें आधा आधा फलमारुष्करं भृङ्गजयपालं समांशकम् ।। भाग शुद्ध जमालगोटे और बछनागका चूर्ण मिला- भागद्वयं विषं चात्र दत्त्वा सर्व विमर्दयेत् । कर घोटकर सुरक्षित रखिए । भावयेन्मार्कवरसैः सप्तधा रवितापतः ॥ इसमें से १-१ रत्ती रस सोंठ, सेंधा और शर्कराकनीराभ्यां दद्याद् गुञ्जाद्वयं भिषक । चीतेके चूर्ण के साथ मिलाकर खिलाने से सर्व श्वासं नवज्वरं जीर्ण विषमं कफपित्तजम् ॥ प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं । वह्निमान्यं तथा शूलं जयेद्रोगानुपानतः ।। (अनुपान शीतल जल) शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, त्रिकुटा ( सोंठ, (२१४६) ज्वरभैरवो रसः (४) मिर्च, पीपल) चीता, फिटकी, सुहागेकी खील, __(मै. र.; धन्व.; र. रा. सु. । ज्वर.) । भिलावा, भंगरा और जमालगोटा समान भाग तथा त्रिकटु त्रिफला टङ्कणविषगन्धकपारदम्।। बछनाग २ भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी जैपालश्च सम्मा द्रोणपुष्पीरसैदिनम् ॥ कजली बना लीजिए तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषताम्बूलेन समं ह्यस्य खादेत् गुञ्जामितां वटीम् । धियोंका चूर्ण मिलाकर भांगरेके रसमें भिगोकर मुद्गयूषं शिखरिणी पथ्यं देयं प्रयत्नतः ॥ धूपमें रख दीजिए । रस दवासे एक अंगुल ऊपर नवज्वरं त्रिदोषोत्थं जीर्णश्च विषमज्वरम् । रहना चाहिए। जब सब रस सूख जाय तो दिनैकेन निहन्त्याशु रसोऽयं ज्वरभैरवः॥ इतना ही और डाल दीजिए और इसी प्रकार सात . सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, बार रस डालकर सुखाइये । सुहागा, शुद्ध बछनाग, शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारा, इसमें से २ रत्ती रस अद्रकके रसमें खांड और जमालगोटेका चूर्ण समान भाग लेकर प्रथम मिलाकर उसके साथ देनेसे श्वास, नवीन ज्वर, • पारे और गन्धककी कजली बना लीजिए और जीर्णज्वर, विषमज्वर और कफपित्तज ञ्चर, अग्निफिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर १ ! मांद्य और शूल नष्ट होता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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