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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नस्यप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२९५] InvvvvvNA लीजिए और उसे सुरखाकर थोड़ी देरतक दोला । सहदेवीभृङ्गशुण्ठीब्राह्मीनिर्गुण्डिकारसैः॥ यन्त्र विधिसे मन्दाग्नि पर छाछमें स्वेदन कीजिए। सगव्यदुग्धैर्जयति सर्वरोगानशेषतः ॥ इसके पश्चात् उसे दस भावना तुलसीके रसकी, . | शुद्ध पारा, शुद्र गन्धक, शुद्ध हरताल, कपूर, और ३ भावना नागबलाके ग्सकी देकर ३-३ | सोमल (संखिया), सुहागेकी खील, शुद्ध बछनाग, रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। और अकरकरेका चूर्ण २-२ भाग, तथा धतूरेके इनमेंसे एक एक गोली पानके रसके साथ | बीज, शुद्ध जमालगोटा, समन्दर फल और जीरेका देनेसे जीर्णज्वर नष्ट होता है । इसपर मंगका यूष चूर्ण ३-३ भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी और भातका पथ्य देना चाहिए। कजली बना लीजिए और फिर उसमें अन्य इसे यथोचित अनुपानके साथ देनेसे शूल, औषधोंका चूर्ण मिलाकर तुलसीके रसमें घोटकर अग्निमांद्य, गुल्म, अतिसार, अर्श, ग्वांसी और १-१ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए । श्वास का भी नाश होता है। इनमेंसे एक एक गोली गर्म पानीके साथ (नोट-तांबेकी जिन कटोरियोंमें कजली भर- देनेसे जीर्ण ज्वर नष्ट होता है । हींग, अजवायन कर सम्पुट बनाना हो वह कजलीके बराबर बजनी और बचके (१ माशा) चूर्णको तक्रमें मिलाकर होनी चाहिये ।) उसके साथ खिलानेसे शूल नष्ट होता है । त्रिफला, २--जिस हाण्डीमें सम्पुट रक्खा जाय उसके सोंठ, मिर्च, पीपल और चीतेके काथके साथ ऊपर ३-४ कपरौटी कर लेनी चाहिये। अथवा इनके चूर्णको गर्म पानीमें मिलाकर उसके ३-हाण्डीमेंसे औषध निकाल कर देख लेना साथ देनेसे वायु; और त्रिफलेके साथ सेवन करने चाहिए कि तांबेकी कटोरियोंकी भस्म बन गई से पित्त नष्ट होता है। एवं सहदेवी, भंगरा, सोंठ, है या नहीं यदि कमी हो तो दुबारा अग्नि लगानी ब्राह्मी और संभालके रस अथवा काथको गायके चाहिए ।) दूधमें मिलाकर उसके साथ देनेसे अन्य समस्त (२१४४) ज्वरभैरवरसः (२) गेग शान्त होते हैं। . (र. का. धेः । ज्वर. ) (२१४५) ज्वरभैरवरसः (३) रसगन्धकतालेन्दुमल्लटङ्कणकं विषम् । (र. का. धे. । अधि. १) आकल्लकं द्वि द्वि भागं कृष्णधूर्तफलं त्रिधा॥ सूतं गन्धमभ्रकं समलवं सूतार्धभागं विषम् । जैपालश्च समुद्रश्च जीरकश्च विभावयेत्।। तत्व्यशं जयपालमम्लमृदितं तद्गोलकं घेष्टितम् ।। सुलस्या गुटिका गुञ्जा रसोऽयं ज्वरभैरवः॥ पत्रैमजुभुजङ्गवल्लिमृदितैनिष्पिष्य खाते पुटम् तप्तोदकेन सकलाञ्जयेज्जीर्णज्वरान भृशम्।। | दत्वा कुकुटसंज्ञकं सहवलैः संचूर्ण्य तत्र क्षिपेत्॥ हिङ्गदीप्यवचाभिस्तु सतक्राभिः सशूलजित्॥ भागार्द्ध जयपालवीजममृतं तत्तुल्यमेकीकृतम् । त्रिकटुत्रिफलाचित्रैर्वातं पित्तं फलत्रिकैः। ! गुञ्जा नागरसिन्धुचित्रकयुतो सर्वज्वरान्नाशयेत्।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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