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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ २९७] (२१४८) ज्वरमातङ्गकेसरीरसः (२१४९) ज्वरमुरारिरसः (१) (र. रा. सुं. । ज्वर.; वृ. यो. त. । त. ५९) . ( भै. र.; र. रा. सु. । ज्वर.) रसवलिफणिलोहव्योमताम्राणितुल्यापारदं गन्धकश्चैव हरितालं समाक्षिकम् । न्यथ रसदलभागो नागरं तत्पमृष्टम् । कटुत्रयं तथा पथ्या क्षारौ द्वौ सैन्धवं तथा ॥ भवति ज्वरमुरारिश्चास्य गुञ्जावारिः निम्बस्य विषमुऐश्च वीज चित्रकमेव च। क्षपयति दिवसेन प्रौढमामज्वराख्यम् ॥ एषां माषमितं भागं ग्राह्यं प्रति मुसंस्कृतम् ॥ पारा, गन्धक, सीसाभस्म, लोह भस्म, अभ्रक द्विमाष कानकफलं विषश्चापि द्विमाषिकम् ।। भस्म और ताम्र भस्म १-१ भाग तथा सोंठका निर्गुण्डीस्वरसेनैव शोषयेत्तत् प्रयत्नतः ॥ । चूर्ण ६ भाग लेकर, प्रथम पारे गन्धककी कजली सार्द्धरक्तिपमाणेन वटी कार्या सुशोभना । बना लीजिए, तत्पश्चात् अन्य औषधोंका चूर्ण सर्वज्वरहरी चैषा भेदिनी दोषनाशिनी ।। मिलाकर अदरकके रसमें घोटकर एक एक रत्तीकी आमाजीर्णप्रशमनी कामलापाण्डुरोगहा। । गोलियां बनाइये। इनमेंसे एक गोली अदरक के रसके साथ वहिदीप्तिकरी चैषा जठरामयनाशिनी ॥ देनेसे प्रबल आमज्वर एकही दिनमें नष्ट हो उष्णोदकानुपानेन दातव्या हितकारिणी। जाता है। भाषितो लोकनाथेन ज्वरमातङ्गकेसरी॥ (२१५०) ज्वरमुरारिरसः (२) पारा, गन्धक, हरताल, सोनामक्खी भस्म, (भै. र. र. रा. सुं; ज्वर.) त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल) हर्र,यवक्षार,सज्जीक्षार शुद्धमतं शुद्धगन्धं विषश्च दरदं पृथक् । (सोडा), सेंधानमक,नीमके बीज,कुचला और चीतेका चातका कर्षप्रमाणं कई लवङ्ग मरिचं पलम्॥ चूर्ण १-१ माषा तथा शुद्ध बछनाग और धतूरे, धतूर शुद्धकनकवीजं च पलद्वयमितं तथा। के बीज २-२ माघे लेकर प्रथम पारे और गन्धक त्रिता कमेकश्च भावयेदन्तिकाद्रवैः॥ की कजली बना लीजिए तत्पश्चात् उसमें अन्य सप्तधा च ततः कार्या गुटी गुञ्जामिता शुभा। ओषधियों का कपड़छन चूर्ण मिलाकर संभालके । ज्वरमुरारिनामायं रसो ज्वरकुलान्तकः ॥ . रसमें अच्छी तरह धोटकर १॥-१॥ रत्तीकी । अत्यन्ताजीर्णपूर्गे च ज्वरे विष्टम्भसंयुते । गोलियां बना लीजिए। सर्वाङ्गग्रहणे गुल्मे चामवातेऽम्लपित्तके ॥ . इन्हें उष्ण जलके साथ देनेसे सर्व प्रकारके ! कासे श्वासे यक्ष्मरोगेऽप्युदरे सर्वसम्भवे ।। वर, आमाजीर्ण, पाण्डु, कामला और उदर विकार गृध्रस्पां सन्धिमज्जस्थे वाते शोथे च दुस्तरे।। दूर होते तथा अग्नि दीप्त होती है। यह गोलियां यकृति प्लीहरोगे च वातरोगे चिरोत्थिते । भेदिनी ओर दोष नाशिनी हैं। अष्टादशकुष्ठरोगे सिद्धो गहननिर्मितः ।। भा० ३८ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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