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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२८७] .vvvvvvvvvvvvuAAAAAAnamvivornowwwwwwwww अथवा (२१२५) जीवनानन्दाभ्रम् जैपालं रहितं त्वगङ्कररसज्ञाभिर्मले माहिषे । ( भै. र.; र. रा. सुं. । ब्व.) निक्षिप्तं व्यहमुष्णतोयविमलं खल्वे सवासोदितम् वज्राभ्रं मारितं कृत्वा कर्षयुग्मं विचूर्णितम्। लिप्तं नूतनखपरेषु विगतस्नेहं रजःसनिभम् । जीरं कनकवीजश्च कर्ष वासारसेन च ॥ निम्बूकाम्बुविभावितं च बहुशः शुद्धं गुणाढयं कण्टकारिरसेनैव धात्रीमुस्तरसेन च।। ___ भवेत् ॥ गुडूच्याश्चस्वरसेनेव पलांशेन पृथक् पृथक् ॥ मर्दयित्वा वटी कार्या गुञ्जामात्रा प्रयोजिता। जैपालं निस्तुषं कृत्वा दुग्धे दोलायुतं पचेत् । विषमाख्याज्वरान्सर्वान् प्लीहानं यकृतं वमिम।। अन्तर्जितां परित्यज्य युज्याच रसकर्मणि ॥ रक्तपित्तं वातरक्तं ग्रहणीश्वासकासकौ ।.. जमाल गोटा--गुरु, तिक्त, वमनकारक, ज्वर अरुचिं शूलहल्लासावीसि च विनाशयेत् ॥ तथा कुष्ठनाशक, उष्ण, सर (रेचक ), व्रण (घाव) जीवनानन्दनामेदमभ्रं वृष्यं बलप्रदम् । . कफ खुजली कृमि और विषनाशक है। रसायनमिदं श्रेष्ठमनिसंदीपनं परम् ॥ ____ जमाल गोटेके ऊपरका छिलका और भीतरकी ___ वज्राभ्रककी भस्म २ कर्ष ( २॥ तोले ) जीभ ( पत्ता ) अलग करके पोटलीमें बांधकर तथा जीर और धतूरेके बीजोंका चूर्ण १-१ कर्ष भैसके गोबरमें दबा दीजिए और तीन दिन लेकर सबको बासा, कटेली, आमला, मोथा और पश्चात् निकालकर गर्म पानीसे धोकर, खरलमें गिलोयके १-१ पल ( ५-५ तोले ) रसमें घोट पीसकर मिट्टीके कोरे खरपर (अथवा घड़े की तली) कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। | पर लेप कर दीजिए जब सब तेल खरपर सोखले इनमेंसे १-१ गोली यथोचित अनुपानके और वह चूर्णके समान हो जाय तो उतारकर साथ खिलानेसे विषम ज्वर, तिल्ली, जिगर, वमन उसे नीबूके रसकी अनेक भावनाएं दीजिए । इस रक्तपित्त, वातरक्त, ग्रहणी, श्वास, खांसी, अरुचि, . प्रकार जैपाल शुद्ध और अधिक गुणवान हो जाता है। शूल, हल्लास ( उबकाई ) और बवासीरका नाश अथवा होता है। ___ जमाल गोटेका ऊपरका छिलका अलग करके यह रस वृष्य ( वीर्यवर्द्धक ) बलदायक, उसे पोटलीमें बांधकर दोलायन्त्र विधिसे (१ पहर रसायन और अग्निदीपक है। तक ) दूधमें पकाइये और फिर उसके भीतरका (२१२६) जैपालगुणशोधने पत्ता अलग करके काममें लाइये । (यो. र.; यो. त. । त. १७; वृ. यो. त.। (२१२७) जैपालरसः (र.र.स.।उ.खं.अ.१९) त. ४३; शा. धं. । खं. २ अ. १२) रसं गन्धं मृतं तानं जयपालञ्च गुग्गुलुम् । जैपालोस्ति गुरुस्तिक्तो वान्तिकृज्ज्वरकुष्ठनुत् । समांशमाज्यसंयुक्तां गुटिकां कारयेन्मिताम्॥ उष्ण सरो व्रणश्लेष्मकण्ट्रकृमिविषापहः॥ एकैकां खादयेद्वैध शोफपाण्ड्वपनुत्तये॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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