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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २८६ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि ' (नोट-यह तीव्र रेचकौषध है इस लिए। (२१२४) जीवननामारसः गर्भिणी और बालकोंको नहीं देनी चाहिये। ( र. र. स. । उ. ख. अ. १६ ) (२१२३) जीर्णज्वरारिरसः (२) रसगन्धौ सिन्धुकणाटङ्कण(र. र. स. । उ. ख. अ. १२; र. रा. सुं. । ज्वर.) मभयाग्निहियावलीकतकफलम् । क्रमशोत्तरभागविचूर्णितया नागं वङ्गं रसं तानं गन्धकं टङ्कणन्तथा। वृहतीरससंयुतभावनया ॥ सूतं विषं च नेपालं हरितालं समं तथा ॥ वटक्षीरेण सम्मर्थ सर्व कुर्यात्तु गोलकम् । आकहिङ्गपुनर्नवपूति च्छिन्नरसै क्रमशो भावनया । तं गोलकम् भाण्डमध्ये पाचयेद्दीपवहिना ॥ . तत्र कलांशविषं च विमिश्रं ततःसंशीतलं कृत्वा भृङ्गराजेन मर्दयेत् । तद्रसमाषसमानवटी या ॥ आईकस्य रसेनापि मर्दयेच्च पुनःपुनः॥ . सर्वमजीर्णकफमारुतपाण्डु चणप्रमाणवटिका रसेनाऽऽर्द्रस्य दापयेत् । शोफहलीमककामलशूलम् । गुञ्जाद्वयपयोगेण ज्वरं जीर्ण हरत्यसौ॥ । नाशयते यदरानिकरोऽयं सीसा भस्म, वंग भस्म, खपरिया भस्म, ताम्र दीपनःजीवननाम रसेन्द्रः॥ भस्म, · शुद्ध गन्धक, शुद्ध सुहागा, शुद्ध पारा, पारा १ भाग, गन्धक २ भाग, सेंधा नमक शुद्ध बछनाग, शुद्ध जमाल गोटा और शुद्ध हरताल ३ भाग, पीपल ४ भाग, सुहागेकी खील ५ भाग, (अथवा हरताल भस्म ) समान भाग लेकर प्रथम । हर्र ६ भाग, चीता ७ भाग, हियावली ८ भाग, पारे गन्धककी कजली बना लीजिए, तत्पश्चात् और निर्मलीके फल ९ भाग लेकर प्रथम पारे अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर बड़के दूधमें गन्धककी कजली बनाकर पश्चात् अन्य ओषधियोंका घोटकर सबका एक गोला बना लीजिए और उसे महीन चूर्ण मिलाकर कटेली, अद्रक, हींग, पुनर्नवा, सुखाकर एक हांडीमें रखकर उसका मुख बन्द खट्टासी ( जुन्दबेदस्तर ) और गिलोयके रसकी कर दीजिए । इस हांडीको चूल्हे पर चढ़ाकर नीचे पृथक् पृथक् १-१ भावना देकर, उसमें समस्त (४ पहर तक) दीपकके समान मन्दाग्नि जलाइये। | औषधका १६ वां भाग शुद्ध बछनागका चूर्ण तत्पश्चात् हांडीके स्वांग शीतल होने पर | मिलाकर उर्दके समान गोलियां बनाएं । उस गोलेको निकालकर भंगरे और अदरकके रसमें इनके सेवनसे सर्व प्रकारका अजीर्ण, वात३-३ बार घोटकर चनेके बराबर ( २ रत्तीकी) कफज पाण्डु, शोथ, हलीमक, कामला और शूलका गोलियां बना लीजिए । इनमेंसे १-१ गोलो | नाश होता तथा अग्नि दीप्त होती है। अद्रकके रसके साथ खिलानेसे जीर्णज्वर नष्ट नोट-हींग और जुन्दबेदस्तरको ३२ गुने होता है। पानीमें घोटकर उससे भावना देनी चाहिए । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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