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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ २८५]
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को सेवन करनेसे भयङ्कर संग्रहणी, आमातिसार | लेकर ३-३ दिन तक त्रिकुटा, त्रिफला, मोथा और अन्य अनेक प्रकारके अतिसार, पाण्डु, कामला भंगरा और संभालु के रसमें घोटकर सुखाकर और विशेषतः अग्निमान्द्य रोग अत्यन्त शीघ्र नष्ट | सुरक्षित रखिए। होते हैं।
इसे १ माशेकी मात्रानुसार यथोचित अनु(२१२०) जीरकादिरसः (यो. र. । छ.) पानके साथ देनेसे जीर्णज्वर, क्षय, अग्निमांद्य, खांसी अजाजीधान्यपथ्याभिः सक्षौद्रैःसकटुत्रिकैः। पाण्डु, हलीमक, गुल्म, उदररोग, अर्दित (लकवा), एतैःसाधू मूतभस्म सद्यो वान्ति विनाशयेत् ।।
ग्रहणी, बवासीर और अनेक प्रकारकी अरुचि नष्ट
होती तथा कान्ति, तेज, बल, और वीर्यकी वृद्धि ___ जीरा, धनिया, हर्र, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च और पीपल) तथा पारद भस्म (अभावमें रससिन्दूर)
होकर शरीर पुष्ट हो जाता है।
(व्यवहारिक मात्रा-२--३ रत्ती) समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए ।
(२१२२) जर्णिज्वरारिरसः (१) इसे शहदके साथ चाटनेसे वमन तुरन्त
(र. का. धे. । ज्वर.) रुक जाती है।
एको भागो रसाद्भागद्वयं शोधितगन्धकात् । (मात्रा-- १॥ माशा।)
विषस्य च त्रयो भागाश्चतुर्भागा हिमावती॥ (२१२१) जीर्णज्वराङ्कुशरसः
जैपालजा पञ्चभागा निम्बूकद्रवमर्दिताः। (यो. र.; वृ. नि. र.; र. चं. । ज्वर.)
कृमिघ्नपतिमा वटयः कार्याः सर्वज्वरच्छिदः॥ मृतसूताभ्रनागार्ककान्तं वैक्रान्तमेव च । शङ्गवेरेण दातव्या वटिकैका दिने दिने । हिङ्गुलं टङ्कणं गन्धं विषं कुष्ठं समांशकम् ॥ जीर्णज्वरे तथाऽजीर्णे समे वा विषमे तथा । त्रिकटु त्रिफला मुस्ता भृङ्गनिर्गुण्डिकाद्रवैः । सर्वज्वरं निहन्त्याशु दावानलमिवाम्बुदः ॥ भावयेत्रिदिनं चैव माषमात्रानुपानतः ।। शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, जीर्णज्वरे क्षये कासे दोषे मन्दानलेषु च । शुद्ध बछनाग विष ३ भाग, स्वर्ण क्षीरी (सत्यापाण्डं हलीमकं गुल्ममुदरं चार्दितं जयेत् ॥ नाशीकी जड-चोक) ४ भाग और शुद्ध जमालग्रहणीमूलरोगांश्च त्वरोचकमनेकधा।
गोटा ५ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली कान्ति तेजो बलं पुष्टिं वीर्य बुद्धिं विवर्धयेत् ॥ बना लीजिए, तत्पश्चात् उसमें अन्य औषधोंका साध्यासाध्यं निहन्त्याशु रसो जीर्णज्वराङ्कुशः॥ चूर्ण मिलाकर नीबूके रसमें घोटकर बायबिडङ्गके
पारद भस्म, (अभावमें रस सिन्दूर) अभ्रक दानेके समान गोलियां बना लीजिए। भस्म, सीसाभस्म, ताम्र भस्म, कान्तलोह भस्म, प्रतिदिन एक एक गोली अदरकके रसके वैक्रान्त भस्म, हिङ्गुल, सुहागेकी खील, शुद्ध गन्धक, साथ देनेसे जीर्णज्वर, आमज्वर, विषमज्वर, इत्यादि शुद्ध बछनाग, और कूठ । सब चीजें समान भाग इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे वृष्टि से दावानल।
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