SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २८८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि ५.vvvvvvvvvvvvv .. शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, शुद्ध निम्ब खदिरमङ्कोलं राजवृक्षस्य मूलकम् ॥ जमालगोटा और शुद्ध गूगल समान भाग लेकर कषायं पाययेच्चानु चर्मकुष्ठविनाशकृत् ।। प्रथम पारे और गन्धककी कज्जली बना लीजिए | पारद भस्म और अभ्रक भस्म समान भाग फिर अन्य औषधोंका चूर्ण मिलाकर सबको धीमें | लेकर दोनोंको लोहेके खरलमें १-१ दिन बेलधोटकर (२-२ रत्तीकी) गोलियां बना लीजिए। पत्रके रस नीलके रस धी, माल कंगुनी नीम और इनमेंसे प्रतिदिन १-१ गोली खानेसे शोथ। कपासके तैल ( कपासके बीजोंके तैल )में घोटऔर पाण्डुरोग नष्ट होता है । कर १-१ माशेकी गोलियां बना लीजिए । ( अनुपान-गोमूत्र या त्रिफलाक्काथ) _ नित्य प्रति १-१ गोली नीमकी छाल, (२१२८) जैपालशोधनम् (र.सा.सं.।पू.खं.) खैरसार, अंकोल और अमलतासकी जड़के काथके निस्तुषं जयपालश्च द्विधा कृत्वा विचक्षणः। साथ खाने अथवा पीसकर लगानेसे चर्मकुष्ठका एतद्वीजस्य मध्यन्तु पत्रवत्परिवर्जयेत् ॥ नाश होता है। अष्टमांशेन चूर्णेन टङ्कणस्य च मेलयेत। (२१३०) ज्वरकालकेतुरसः त्रिरात्रं गोमये क्षिप्त्वा पाच्यं दुग्धेन सप्लुतम् ।। (भै. र.; र. रा. सुं. । ज्व. ) एवं वै शुद्धिमायाति जैपालममृतोपमम् ॥ रसं विषं गन्धकताम्रकञ्च जमाल गोटोंको छील कर उनके बीचसे मनःशिलारुष्करतालकञ्च । विमर्थ वज्रीपयसा समांश पत्तेके समान जीभको निकाल डालिए और. फिर उनमें आठवां भाग सुहागेका चूर्ण मिलाकर पोटली गजाहयं तत्र पुटं विदध्यात् ।। बनाकर गोबरमें दबा दीजिए । ३ दिन पश्चात् द्विगुञ्जमस्यैव मधुप्रयुक्तं ___ ज्वरं निहन्त्यष्टविधं महोग्रम् । इस पोटलीको निकालकर (धोकर, १ पहर तक) दोलायन्त्र विधिसे दूधमें पकाइये । पुरा भवान्यै कथितो भवेन इस प्रकार जमाल गोटे शुद्ध होकर अमृतोपम नृणां हिताय ज्वरकालकेतुः ।। गुणकारी हो जाते हैं। शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध बछनाग, ताम्र भस्म, शुद्ध मैनसिल, शुद्ध भिलावा, शुद्ध (२१२९) ज्योतिष्पुञ्जो रसः हरताल सब चीजें समान भाग लेकर थोहर ( र. रा. सुं. । कु; र. का. धे. । कु.) ( सेंड )के दूधमें घोटकर गोला बना लीजिए; मृतसूताभ्रक तुल्यं मद्ये विल्वरसैदिनम् । और उसे सुखाकर सम्पुट में बन्द करके गजपुटमें नीलिन्याज्ये रसोप्येवमयःपात्रे विमर्दयेत् ॥ फंक दीजिए । स्वांग शीतल होने पर गोलेको कंगुणीनिम्बकासैस्तैलेनापि च मर्दयेत् । निकालकर पीसकर रख लीजिए । इसमेंसे २ रत्ती माष भजेत्तथा लेप्यं चर्मकुष्ठहरं परम् ॥ दवा शहदके साथ देनेसे आठों प्रकारके भयङ्कर ज्योतिष्पुञ्जो रलो नाम सर्वकुष्ठकुलान्तकृत् । । ज्वर नष्ट होते हैं। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy