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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ २७४ ] (२०९५) ज्वरनाशकाञ्जनम् (र. सा. सं. (परि.) व्योषञ्च त्रिफला सूतं लौहं वङ्गञ्च ताम्रकम् । पुत्रमातृपयश्चैव कारयेद्वटिकां बुधैः ॥ दुग्धेन चाञ्जनं कृत्वा एकाङ्गज्वरनाशनम् । द्वितीये चाञ्जनं कृत्वा सर्वाङ्गज्वरनाशनम् ॥ भारत-- भैषज्य रत्नाकरः । त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), हर्र, बहेड़ा और आमलेका चूर्ण, पारा, लोहभस्म, वङ्गभस्म, और ताम्रभस्म । सब चीजें समान भाग लेकर पुत्रवती स्त्रीके दूध में पीसकर गोलियां बना लीजिए । एक गोलीको स्त्रीके दूध में घिसकर बांई आंखमें आंजने से दहिने अङ्गका और दहिनी आंख में आंजनेसे बांये अङ्ग का ज्वर नष्ट हो जाता है। (प्रथम प्रत्येक काष्ठादि ओषधिको अत्यन्त महीन पीसना चाहिए फिर भस्मोंके साथ पारेको खरल करके सब चीजोंको एकत्र मिलाकर दूधके साथ घोटना चाहिए |) (२०९६) ज्वरनाशकाञ्जनम् (र.सा.सं. (परि.) ऊर्णाया नाभिजालेन वर्ति कृत्वा प्रयत्नतः । ज्वालयेत्तिलतैलेन कज्जल महरेच्छनै' || अञ्जयेनेत्रयुगल द्वयाहिकं तु ज्वरं जयेत् ।। मकड़ीके जालेकी बत्ती बनाकर उसे तिल तैलमें भिगोकर जलाइये और उसकी स्याहीको इकट्ठा कर लीजिए । इसे दोनों आंख में आंजनेसे तिजारी ज्वर नष्ट होता है । (मिट्टी के दीपकमें तैल भरकर उसमें उपरोक्त बत्ती डालकर जलाइये और इस दीपक दोनों ओर दीपकसे १ बालिशत ऊंची दो ईंटें जकारादि रखकर उन ईंटों पर मिट्टीका एक कच्चा ( बिनापका ) शराव रख दीजिए। इस शराब पर जो स्याही जमे उसे छुड़ा लीजिए ।) इति जकाराद्यञ्जनप्रकरणम् । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अथ जकारादिनस्यप्रकरणम् (२०९७) जपापुष्परसनस्यम् (र. र. र. | उप . १ ) जपापुष्परसं क्षौद्रं कर्षैकं नस्थमाचरेत् । सप्ताहाद्रञ्जयेत्केशान् सर्वनस्येष्वयं विधिः ॥ जब के फूलों का रस और शहद समान भाग मिलाकर प्रतिदिन १ तोलेकी नस्य लेनेसे सात दिनमें सफेद बाल काले हो जाते हैं । (२०९८) जालिनीफलादिनस्यम् (बृ. नि. र. । कामला. ) जालिनीफलमाध्मानं नस्त्रं वा तण्डुलाम्भसा । जालिनीफलमध् स्वं नामासर्षपनस्वतः ॥ | बिंल डोटेको सुखाकर चूर्ण करके उसे नलकीद्वारा नाक में फूंकनेसे, या उस चूर्णको चावलों के पानी में पीसकर नस्य लेनेसे अथवा उसके गूदे के साथ निसोत, और सरसों मिलाकर 'चूर्ण करके नम्य लेनेसे कामला रोग नष्ट होता है। (२०९९ ) जिङ्गिन्यादि नस्यम् (वं. से. वातव्या.) परमौषधमपबाहु फमन्यास्तम्भोध्वज त्रुगतरोगे । शीतलजलेन नावनमुपशमने जिङ्गिनी च पुरः ॥ शीतल जल के साथ पीसकर जिंगनीके गोंद और गूगलकी नम्य देनेसे अपबाहुक और मन्या। स्तम्भादि ऊर्ध्वजत्रुगत वातव्याधियां नष्ट होती हैं । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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