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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अञ्जनमकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ २७३ ] चमेलीके फूल, जवाखार, शंख, हर्र, बहेड़ा, , दिन निकालकर धूपमें सुखा लीजिए । फिर उन्हें आमला, मुलैठी और खरैटीका समान भाग चूर्ण दूसरे नी बमें भरकर रख दीजिए और सातवें दिन लेकर आकाशजल (भूमिसे ऊपर ही इकट्ठा किया निकालकर सुखा लीजिए । यही क्रिया सात बार हुवा वर्षाजल) में पीसकर वर्तियां (बत्तियां) बना । करके जमाल गोटेकी गिरीको सुखाकर सुरक्षित लीजिए। रखिए। इन्हें आकाशजलमें घिसकर आंखमें आंजने । इसे मनुष्यको लाला (धूक) में घिसकर आंखों से पितज और रक्तज नेत्ररोग नष्ट होते हैं। में आंजनेसे सपके काटनेसे उपन हुई मृ. (२०९२) जात्याद्याइच्योतनम् (वं.से. नेत्र.)| नष्ट होती है । जात्या प्रवालं मधुकं ससर्पि यह प्रयोग एक योगिसे प्राम हुवा है और भृष्टं सुखोष्णाम्बुसुशीतरश्मिः। सत्य है। .. आश्च्योतनं शुक्रहरं पदिष्टं (२०९४) ज्वरनाशकाञ्जनम् (र.सा.सं.परि.) शुक्रापहं स्त्रीपयसा महार्हम् ॥ रसगन्धं शिलातुत्थं तालकं मृतटङ्कणम् । चमेलीकी कोंपल और मुलैठीके चूर्णको धीमें नवसादरं ककमर्कदुग्धेन मर्द येत ॥ भूनकर मन्दोष्ण जलमें मिलाकर (छानकर) उसमें चुल्लिकायामथारोप्य पचेद्यामचतुर्दशः । जरासा कर्पूर घिस लीजिए। इसकी बंदें आंखमें स्वाङ्गशीतलमादाय खल्ले तं कज्जलीकृतम् ।। टपकानेसे शुक्र (फूला) नष्ट होता है । | अञ्जनं वामनेत्रस्य दक्षिणे कौतुकं भवेत् । सफेद चन्दनको स्त्रीके दूधमें घिसकर आंख दक्षिणे चाञ्जनश्चैव आरोग्यं भवति क्षणात् ।। में डालने से भी फूला जाता रहता है। पारा, गन्धक, मनसिल, नीलाथोथा, हरताल, (२०९३) जैपालाञ्जनम् (वै. र. । विष०) सुहागे की खील और नौसादर समान भाग लेकर चूर्ण करके आकके दूधमें धोटें और फिर उसकी एकनिम्बूफले सप्तनैपालास्थि क्षिपेद्बुधः । टिकिया बनाकर सम्पुटमें बन्द करके चूल्हे पर सप्तमेहि समुद्धत्यातपे शुष्कीकृतं तथा ॥ चढ़ाकर १४ पहर तक पकाएं । तत्पश्चात् स्वांग पुनर्निम्बूफलेऽन्यस्मिन्प्रकारेणैवमुक्षिपेत् । शीतल होनेपर औषधको निकालकर धोटकर कज्जली सप्तवारानतः सिद्धं पुंसो लालाभिरञ्जनम्॥ | कर लें। क्रियेयं सर्पदष्टस्य मूर्तिस्य प्रबोधनम् । इसे बांये नेत्रमें आंजनेसे दहिने अङ्गका ज्वर भवेत्सत्यमिदं प्रोक्तं योगिनो लब्धमौषधम् ॥ नष्ट हो जाता है, फिर दहिने नेत्रमें आंजनेसे एक कागजी नीबूमें छिद्रकरके उसके भीतर बांये अङ्गका ज्वर भी उतरकर रोगी स्वस्थ हो जमाल गोटेकी सात गिरी भर दीजिए और सातवें | जाता है । भा० ३५ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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