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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२७२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि अथ जकाराद्यञ्जनप्रकरणम् । चमेलीकी कलियां, जवाखार और लालचन्दन (२०८६) जङ्घास्थितिः (ग. नि. । नेत्र.) | का महीन चूर्ण समान भाग लेकर पानीके साथ | पीसकर गोलियां बना लीजिए । गोजङ्घा मानुपीश्चैव पण्मासान् क्लेदयेजले । इन्हें पानीमें पत्थरपर घिस कर आंखमें जात्यन्धोऽप्यनया वयां त्वचिरेण प्रपश्यति॥ | आंजने से काच, तिमिर और पटल नामक नेत्र गाय और मनुष्यकी जंधाकी हड्डीको २ मास रोग नष्ट होते हैं। तक पानीमें भिगोए रक्खें. जब वे कोमल हो जायं (२०८९) जातीपायञ्जनम् (यो. र । नेत्र.) तो पीसकर वर्ति (बत्ती) बना लीजिए। इसे पानी जातीपुष्पं प्रवालश्च मरिचं कटुका वचा । में घिसकर आंखमें आंजने से जन्मका अन्धा भी सैन्धवं बस्तमत्रेण पिष्टं तन्द्रानमञ्जनम् ।। देखने लगता है। (यह तिमिर रोगके लिए उप- चमेलीके फूल और कोंपल, स्याह मिर्चका योगी है।) चूर्ण, कुटकीका चूर्ण, बचका चूर्ण और सेंधानमक (२०८७) जातिपत्ररसाञ्जनम् (वं. से. । नेत्र.) का चूर्ण समान भाग लेकर बकरेके मूत्रमें धोटें। जातीपत्ररसक्षौद्रनिशाहयरसाञ्जनैः। इसे आंखमें लगानेसे तन्द्राका नाश होता है। नक्तान्ध्यमञ्जनं हन्यात्कृष्णाया गोमयान्वितम्॥ (२०९०) जातीपुष्पाद्यञ्जनम् (ग. नि. । नेत्र.) चमेलीके पत्तोंका रस, शहद, हल्दी, रसौत जात्याः पुष्पं सैन्धवं श्रृङ्गवेरं और काली गायका गोबर समान भाग लेकर, चूर्ण कृष्णावीजं कीटशत्रोश्च सारम् । योग्य ओषधियोंका कपडछन महीन चूर्ण करके एतत्पिष्ट्वा नेत्रपाके जनार्थ सबको एकत्र मिलाकर खरल करें। क्षौद्रोपेतं निर्विशङ्कः प्रयोज्यम् । इसे आंखमें आंजनेसे नक्तान्ध्य (रतौंधा) | चमेलीके फूल, सेंधानमक, सोंठ, पीपलके बीजे, बायबिडंगका सैत । समान भाग लेकर नष्ट होता है। | महीन पीसकर खरल करके सुरमा बना लीजिए। (नोट-गोबर शुष्क लेना चाहिए अथवा इसे नेत्रपाक (आंख दुखने ) में शहद में ताजे गोबरका रस लेना चाहिए ।) मिलाकर लगानेसे अवश्य आराम होता है । (२०८८) जातिपुष्पादिगुटिका (ग.नि.।नेत्र.) (२०९.१) जात्यादिवत्तिः (वं. से. । नेत्र.) प्रत्यग्रजातिपुष्पाणि यावको रक्तचन्दनम्। सुमनः क्षारकं शङ्ख त्रिफलां मधुकं बलाम् । गुटिका हन्ति काचान्ध्यं तिमिरं पटलं तथा ॥ पित्तरक्तापहा वत्तिः पिष्टवा दिव्येन वारिणा ॥ १ पीपलको रात्रिके समय दूधमें भिगो दीजिए, प्रातःकाल हाथोंसे मलिए तो उसके बीज (छोटे छोटे दाने) निकल आएंगे। २ बाय बिडङ्गको कूटकर १६ गुने पानीमें पकाइये और चौथा भाग पानी शेष रहने पर छानकर फिर पकाइये; जब गाढ़ा हो जाय तो उतारकर सुखा लीजिए । यही बायविडङ्गका सत है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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