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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २६० ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि ___काला जीरा, सफेद जीरा, चीता, चव्य, (१०३८) जीरकाद्यं घृतम् अजवायन, सोंठ, काला नमक, सेंधा नमक, कांच (यो. र.; वृं. मा.; च. द.; वृ. नि. र. । अम्ल.) लवण ( कचलौना ), खारी नमक और सामुद्र | पिष्ट्वाजाजी सधान्यक घृतपस्थं विपाचयेत् । लवणका कल्क एक एक पल (५ तोले), काजी कफपित्तारुचिहरं मन्दानलवमि जयेत् ॥ ४ सेर तथा धी १ सेर लेकर एकत्र मिलाकर जीरे और धनियेके कल्कके साथ पकाया मन्दाग्नि पर पकाइये और घृत मात्र शेष रहने पर हुवा घी सेवन करनेसे कफपित्तज अरुचि, मन्दाग्नि छान लीजिए । और वमनका नाश होता है । मात्रा १ से २ ___इसके सेवनसे अग्निकी वृद्धि और अर्शका तोले तक । अनुपान गर्म पानी ।। नाश होता है। ( जीरा ५ तोले, धनिया ५ तोले, पानी ( मात्रा-१ तोला । अनुपान गर्म पानी १६० तोले, घी ४० तोले ) एकत्र मिलाकर या दूध ।) पकाएं। (२०३७) जीरकवृतम् (भै.र.; च. द. । व्रण) (२०३९) जीवनीयघृतम् (सु.सं.।चि.अ.५) जीरकपकं पश्चात् सिक्थकसर्जरसमिश्रितं हरति जीवनीयमतीवापं सर्पिःपयसा पाचयित्वाऽभ्यघृतमभ्यगात्पावकदग्धजदुःखं क्षणार्दैन । __ञ्जयेत् ।। ८० तोले जीरेको ३२० तोले पानीमें जीवनीयगणके कल्क और दूधके साथ पकाइये जब ८० तोले पानी रह जाय तो छान- पकाए हुवे धृतकी मालिशसे वातरक्त रोग नष्ट कर उसमें जीरेका ५ तोले कल्क और २० तोले होता है। गोघृत मिलाकर मन्दाग्नि पर पकाइये । जब धृत (क कके समस्त द्रव्य समान मात्रामें मिले मात्र शेष रह जाय तो छानकर उसमें १।-१। और पानीके साथ पिसे हुवे १ भाग, घी ४ भाग तोला मोम और राल मिला लीजिए। दूध १६ भाग । मिलाकर पकाएं । ) इसे लगानेसे अग्निसे जले हुवे घावकी पीड़ा (२०४०) जीवन्तीयमकः (वं. से. । वाजी.) तत्काल शान्त हो जाती है । जीवन्त्यतिबलामेदाकाकोलीद्वयजीरकैः। ( मोमको पिघलाकर और रालको पीसकर समभागीकृतैःकृष्णाकाकनासारसायनैः॥ मिलाना चाहिए। स्वयंगुप्ताशठीशृङ्गीजीवकशारिवाद्वयैः । नोट -----राजमार्तण्डमें इसी प्रयोगमें मोमके सहाचरवराविश्वापिप्पलीमूलभजनैः ।। स्थानमें मैनफल लिखा है । पिष्टैस्तैलं घृतं पकं क्षीरेणाष्टगुणेन च । __ १ जीवति पाठान्तरम् २ समधुकमिति पाठभेदः । धनियेकी जगह किसी किसी ग्रन्थमें मुलैठी भी लिखी है । ३ पित्ताम्लकहरमिति पाठन्तरम् । ४ जीवनीयगण जकारादि क्वाथ प्रकरण में देखिए । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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