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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २५२ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि (२०११) जयन्तीवटी (र. र.स.उ.ख. अ.२९) | (बछनागादि प्रत्येक वस्तुका चूर्ण १ तोला। वचाश्वगन्धामरिचोपकुल्या काथ २८ तोले । अच्छी तरह घोटकर गोलियां तालीसमुस्तापिचुमन्दपाठाः ।। बनाएं।) विषं च तेषां वटिका जयन्त्यः (२०१३) जयादिवटी (आ.वे. वि. । अ.७९) फले प्रयोगे च जयासमाना ॥ मूलं रक्तोत्पलभवं विजयासारमेव च।। बच, असगन्ध, मरिच, दन्तीमूल, मोथा, अपामार्गस्य मूलश्च कन्यासारं समं समम् ।। नीमकी छाल, पाठा और शुद्ध बत्सनाभ (मीठा | मईयित्वा वटी कुर्यात् रक्तिद्वयमिताः शुभाः। तेलिया) का चूर्ण समान भाग लेकर (पानीमें पीस | सेवनादाशु नश्यन्ति वेदनाः कटिसम्भवाः ॥ कर १--१ माशेकी) गोलियां बना लीजिए। जरायुशूलं वाधाश्च तथा कष्टरजांसि च । इन्हें शहदके साथ सेवन करनेसे कुष्ठ रोग जयादिवटिका नाम महादेवेन भाषिता ॥ नष्ट होता है। लाल कमलकी जड़, विजयासार, (भांगका जयवटिका (रसा. सा. । ज्व.) सत-धन) अपामार्ग (चिरचिटे ) की जड़, और रसप्रकरणम देखिए एलवा (मुसब्बर) समान भाग लेकर खूब बारीक जयागुटिका (र.सा.सं;र.रा.सु.,र.चं. कास.) पीसकर पानीके साथ घोटकर २-२ रत्तीकी रसप्रकरणमें देखिए। गोलियां बना लीजिए। (२०१२) जयागुटी (र. र. स. । उ.खं ।अ.२९) इनके सेवनसे कमर का दर्द, जरायुशूल, वासामृताखदिरनिम्बविडङ्गपथ्या बन्ध्यत्व (बांझपना) और कष्ट रज (मासिकधर्मके काथे विषत्रिकटु चित्रकलोहतिक्ताः। । समय कष्ट होना) का नाश होता है। आवाप्य माषतुलिता वटिका प्रणीता (२०१४) जयावटीx क्षौद्रान्विता क्षपयति क्षयकुष्ठजातम् ॥ (र. स. क. । वि. ५; र. चं.। रसा.; र. सा. सं. । बासा, गिलोय, खरसार, नीमकी छाल, बाय ज्वर; रसें. चिं. । अ. ८; आयु. वे. प्र. । अ. १) बिडङ्ग और हर्रके काथमें शुद्ध वछनाग ( मीठा | विषं त्रिकटुकं मुस्तं हरिदा निम्बपत्रकम् । तेलिया) सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, लोहभस्म और विडङ्गमष्टमं चूर्ण छागमूत्रैःसमं समम् ॥ कुटकीका समान भाग चूर्ण मिलाकर १-१ माशे चणकाभा वटी कार्या स्याज्जया योगवाहिका।। की गोलियां बना लीजिए। शुद्ध वत्सनाभ (मीठा तेलिया) त्रिकुटा (सोंठ, ___ इन्हें शहदके साथ सेवन करनेसे सर्व प्रका- मिर्च, पीपल,) नागरमोथा, हल्दी, नीमके पत्ते रके क्षय और कुष्टरोग नष्ट होते हैं। | और बायबिडङ्गका चूर्ण समान भाग लेकर बकरी १-भांगको १६ गुने पानीमें पकाएं, चौथा भाग शेष रहने पर छानकर उस काढ़ेको पुनः पकाकर गाढ़ा करले। यही 'विजयासार' है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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