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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम्] द्वितीयो भागः। [२५१] चन्दनस्य कषायेण रक्तपितज्वरापहा। से पित्त ज्वरका नाश होता है। पथ्य, मूंगकी जयन्ती वा जया वाथ माक्षिकेण च कासजिद।। दालके यूष और आमलेके रसके साथ घृत रहित जयन्ती वा जया क्षीरैः पाण्डुशोथविनाशिनी। देना चाहिए । जयन्ती वा जया वाथ तण्डुलोदक पानतः॥ जयन्तीवटी, जया वटी या आनन्द भैरवरस अश्मरी हन्ति नो चित्रं मूत्रकृच्छन्तु दारुणम् । को स्याह मिर्चके चूर्ण और शहदके साथ देनेसे जयन्ती वा जयां वाऽथ गोमूत्रेण युतां पिबेत्।। सन्निपात ज्वरका नाश होता है। हन्याशु काकणं कुष्ठं सुलेपेन च तद्रुतम् ।। जयन्ती या जयावटी को विषमज्वरमें घृतके द्वि निष्कं केतकीमूलं पिष्ट्वा तोयेन पाययेत्॥ साथ, समस्त प्रकारके ज्वरोंमें त्रिकुटाका चूर्ण और जयन्ती वा जया वाऽथ मेहं हन्ति सुरावयम्। शहद के साथ, शीतज्वरमें गोमूत्रके साथ, ज्वरयुक्त जयन्ती वा जया वाऽथ मधुना मेहजिद्भवेत्॥ रक्तपित्तमें चन्दनके काढ़ेके साथ, खांसीमें शहदके लोध्रमुस्ताभयातुल्यं कटफलश्च जलैःसह। साथ, पाण्डु और शोथमें दूधके साथ तथा पथरी काथयित्वा पिबेचानु मधुना सर्वमेहजिद् ॥ और भयङ्कर मूत्रकृच्छमें चावलोंके पानीके साथ. जयन्ती वा जयशंवाथ गुडै कोष्णजलैः पिबेत् । सेवन कराना चाहिए। काकण कुष्टमें जया या त्रिदोषोत्थं हरेद्गुल्मं रसश्चानन्दभैरवः ॥ जयन्ती वटीको गोमूत्रमें पीसकर पिलाना और जयन्ती वा जया हन्ति शुण्ठया सर्व भगन्दरम् लेप करना चाहिए । ८ माशे केतकीकी जड़को जयन्ती वा जया वाऽथ तक्रेण ग्रहणीप्रणुत ॥ पानीमें पीसकर उसके साथ जया वा जयन्तीवटी जयन्ती वा जया वाऽथ रसश्चानन्दभैरवः। खिलानेसे सुरामेह नष्ट होता है। रक्तपिते त्रिदोषोत्थे शीततोयेन पाययेत् ॥ ! शहदके साथ दवा खिलाकर ऊपरसे लोध, जयन्ती वा जया वाऽथ घृष्टवा स्तन्येन चाञ्जयेत मोथा, हर्र और कायफलके काथमें शहद डालकर स्रावणं सर्वदोषोत्थं मांसवृद्धिञ्च नाशयेत् ॥ । पिलानेसे समस्त प्रमेह नष्ट होते हैं। जया या शुद्ध बछनाग विष ( मीठा तेलिया), पाठा, । निलिया जयन्ती वटी अथवा आनन्द भैरवरसको गुड़ और असगन्ध, बच, तालीस पत्र, स्याहमिर्च, पीपल, | - मन्दोष्ण जलके साथ देनेसे त्रिदोषज गुल्म नष्ट और नीमकी छालका समान भाग चूर्ण लेकर | होता है। भगन्दरमें सोंठके साथ, ग्रहणीमें छाछके सबको बकरीके मूत्रमें घोटकर चनेके बराबर साथ, और त्रिदोषज रक्तपित्तमें शीतल जलके साथ साथ, गोलियां बना लीजिए। यह 'जयन्ती वटिका' सेवन कराना चाहिए। योग वाही है, अर्थात् जिस प्रकारके अनुपानके । जया अथवा जयन्ती वटीको स्त्रीदुग्धमें घिससाथ सेवन की जाती है वैसा ही गुण करती है। कर आंखमें आंजनेसे सर्वदोषज स्राव और मांस यजन्ती अथवा जयावटीको दूधके साथ देने | वृद्धि नष्ट होती है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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