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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[गकारादि
(११७८ ) गुडूच्यादि काथः
गिलोय, लालचन्दन, खस, धनिया और सोंठके (बृ. नि. र.। ज्व. प्र.) काथमें मिश्री और शहद मिलाकर पीनेसे तृतीयक गुडूचीपद्मलोध्राणां सारिवोत्पलयोस्तथा। | ज्वर (तिजारी) शान्त होता है। शर्करामधुरः काथः पीतः पित्तज्वरापहः ।। । (११८२ ) गुडूच्यादि काथः (वृ.नि. र. । ज्व.) गिलोय, पद्माख, लोध, सारिवा, और नीलो
गुडूची सारिवा द्राक्षा वला चांशुमती तथा। फरके काथको मिसरीसे मीठा करके पीनेसे पित्त- एषोऽपि परमः सिद्वो वातज्वरविनाशनः ॥ ज्वरका नाश होता है।
गिलोय, सारिवा, मुनक्का, खरैटी और शाल
पर्गीका काथ भी वातज्वरको नष्ट करनेके लिए (११७९ ) गुरुच्यादि काथ:
अत्यन्त उत्तम है। (वृ. नि. र.। मसू० चि० )
(११८३ ) गुडूच्यादि काथः गुडूचीपर्पटानन्ताकटुकाकथितं पिबेत् ।
(वृ० नि० र० 1 ज्व० प्र.) वातपित्तमसूयान्तु घारोपद्रवभाजि च ॥ गुडूच्यामलकीयुक्तः केवलोवापि पर्पटः।
घोर उपद्रव-युक्त वातपित्तज मसूरिका (छोटी | पित्तज्वरं हरेत्तूर्ण पित्तशोषभ्रमान्वितम् ॥ माता ) में गिलोय पितपापड़ा, अनन्तमूल और __ गिलोय, आमला और पितपापड़ेका अथवा कुटकीका काथ पीना हितकर है।
केवल पितपापड़ेका काथ दाह, शोष और भ्रमयुक्त (१९८०) गुडूच्यादि काथ:
पित्तज्वरको अत्यन्त शीघ्र नष्ट कर देता है। (कृ. नि. र. । ने. चि.) (११८४ ) गुडूच्यादि काथः (व. नि. र. । ज्व) गुडूचीत्रिफलाकाथो मधुना सह योजितः।। गुडूची चन्दनं पनं नागरेन्द्रयवासकम् । पीतःसर्वाक्षिरोगन्नः कृष्णाचूर्णावचूर्णितः॥
अभयारग्वधोशीरपाठाधान्याब्दरोहिणी ।। गिलोय और त्रिफले (हैड, बहेड़ा, आमला)
कषायं पाययेदेतत्पिप्पलीचूर्णसंयुतम् । के काथमें शहद और पीपलका चूर्ण मिलाकर
तन्द्राकासज्वरश्वासपिपासा दाहनाशनः ।। पीनेसे आखोंके सम्पूर्ण रोग नष्ट होते हैं।
विण्मूत्रानिलविष्टम्भत्रिदोषप्रभवस्य च ।
गुडूच्यादि गणो ह्येष पाचनो दीपनः परः।। (प्र० वि० पीपल १ मा. और शहद २ तो.
गिलोय, लाल चन्दन, पद्माख ( अथवा मिलाना चाहिए।)
पोहकर मूल ) सोंठ, इन्द्रजौ, जवासा, हर्र, अमल(११८१ ) गुडूच्यादि काथः
तासका गूदा, खस पाठा (जल जमनी ) धनिया (वृ० नि० र० । बा० रो०) | नागरमोथा और कुटकी । इनके काथमें पीपलका गुडूचीचन्दनोशीरधान्यनागरतो यदि। चूर्ण मिलाकर पीनेसे तन्द्रा, कास, ज्वर, श्वास, कार्थः तृतीयकं हन्याच्छर्करामधुमिश्रितः॥ पिपासा, दाह, मलमूत्र और अपान वायुका अवरोध
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