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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । कषायप्रकरणम् ] गिलोय, त्रिफला [ हैड़, बहेड़ा, आमला ], नीम की छाल, और पटोलपत्र के काथमें [ आठवां भाग ] शहद मिलाकर पीने से पित्तज छर्दि [वगन) होती है। ( यही काथ बंगसेनके मतानुसार अम्लपित्त तथा पित्तरोग नाशक है । ) । (११७४ ) गुडूच्यादि काथः (ग.नि. । ज्य. चि.) गडूच्यतिविषाधान्यशुण्डि बिल्वान्दवालकैः पाठाभूनिम्बकुटजचन्दनोशीर पद्मकैः 0 कषायः शीतलः पेयो ज्वरातिसारशान्तये । हल्लासारोचकच्छर्दिपिपासादाहनाशनः ॥ गिलोय, अतीस, धनिया, सांठ, बेलगिरी, नागरमोथा, नेत्रबाला, पाठा ( जलजमनी) चिरायता, कुड़ेकी छाल, लाल चन्दन, खुस और पद्माखका शीत कषाय' सेवन करने से ज्वरातिसार, हल्लास [ उबकाई - बमनेच्छा ] अरुचि, वमन, पिपासा और दहका नाश होता है । (१२७५ ) गुडूच्यादि काथः (बृ. नि. र. । वा० २० ) गुडूची वाकुची चक्रमर्दश्च पिचुमन्दकः । हरीतकी हरिद्रा च धात्री वासा शतावरी ।। बालं नागबला यष्टिः मधूकं क्षुरकोषि च । पटोलस्य लतोशीरं मञ्जिष्ठा रक्तचन्दनम् || गुच्यादिरयं काथो वातरक्तान्तकारकः । कुष्ठानामपि संहर्त्ता कण्डूमण्डलखण्डनः ॥ वातिकान् रौधिकान्सर्वान्विकारानाशु नाशयेत् मुनिभिः करुणाकीर्णैः कषायोयं प्रकाशितः ।। । १ शीतकप्राय विधि प्रथम भाग में देखिए । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ११ ] गिलोय, बाबची, पर्वोंडके बीज, नीमकी छाल, हैड़, हल्दी आमला, अडूसा (बाँसा ) शतावर, नेत्रबाला, नागवला [ कंधी भेद ] मुल्हटी, महुआ, तालमखाना, पटोलकी बेल, खस, मजीठ और लाल चन्दन | इनका काथ वातरक्त, कुष्ठ, खुजली, tree [ चकते ] और समस्त वातज तथा रक्तज रोगोंको शीघ्र नष्ट कर देता है । ( ११७६) गुडूच्यादि काथः (भै० २० । ० नि० ) गुडूची मुस्तभूनिम्बं धात्री क्षुद्रा व नागरम् । विल्वादि पञ्चमूलञ्च कटुकेन्द्रयवासकम् ॥ निशाभवं ज्वरं वातकफपित्तसमुद्भवम् । चिरोत्थं द्वन्द्वजं हन्ति सकणं मधुसंयुतम् ॥ गिलोय, मोथा, चिरायता, आमला, कटैली, सोंठ, विवाद पचमू ( बेलकी छाल, सोनापाठा, खम्भारी, पाढ़ल, और अरणी ) कुटकी, इन्द्रजौ और जवासेके काथमें पीपलका चूर्ण और शहद मिलाकर पीने से रात्रि के समय बढ़ने वाले वातज, पित्तज, कफज और पुराने इन्द्रज ज्यरका नाश होता है । (प्र० वि० पोपलका चूर्ण एक माशा और शहद २ तोले मिलाकर प्रातः सायं पीना चाहिए । ) . (१९७७) गुडूच्यादि काध: (वृ.नि. र. । उयर) गवस्तधान्याक मधुकं कटुरोहिणी । तृष्णाशूलारु चिच्छर्दि पित्तज्वरहरो गणः || गिलोय, नागरमोथा, धनिया, मुलहटी, और कुटकीका काथ पीनेसे तृषा, शूल, अरुचि, बमन और पित्तज्वर नष्ट होता है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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