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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [गकारादि (११६६) गुडूचीकाथः (वै. जो । वि० ३) । गुहच्या रचितं हन्ति हिमं मधुसमन्वितम्। विलासिनी विलासेन विलासिहृदयं यथा । दुनिवारामपि छदि त्रिदोषजनिता बलात् ।। तथा गुडूची विश्वेन हरेदामसमीरणम् ।। गिलोय के हिममें शहद मिलाकर पीनेसे त्रिदोष जिस प्रकार विलासिनी, बिलाससे विलासी जनित. कष्टसाध्य छति ( वमन ) भी अवस्य नष्ट पुरुषका हृदय हर लेती है उसी प्रकार शुण्ठि- हो जाती है । चूर्णयुक्त गुडुची काथ आमवातको हर लेता है। (प्र. वि० हिम ( खेसान्दा ) बनानेकी विधि ( ११६७ ) गुडूचीस्वरमः । बं. से. । ज्व. प्रथम भागमें देखिए । इसकी मात्रा साधारणतः ५ तोलेसे १० तोले तककी है । शहद सया पिप्पलीमधुसम्मिश्रं गुडूचीस्वरसं पिवेत् ।। | तोलेसे २॥ तो० तक मिलाया जा सकता है । जीर्णज्वरकफप्लीहकासारोचकनाशनम् ॥ गिलोयके स्वरसमें पीपलका चूर्ण और शहद (११७१ ) गुडूच्यनुपानम् (भा. प्र. | म. ग्व. वा. र.) मिलाकर पीनेसे जीर्णज्वर, कफ.प्लीह रोग [ तिल्ली ] घृतेन वातं सगुडा विवन्धं खांसी और अरुचि का नाश होता है। प्र वि०-पीपल का चूर्ण १ माशा और पित्तं सिताढया मधुना कफश्च । वातासगुग्रं रुधुतैलमिश्रा शहद कायका चतुर्थांश मिलाना चाहिए । शुण्ठ्यामवातं शमयेद् गुडूची। (११६८ ) गुडूचीस्वरसः (वं. सेन । प्र. अ.) गिलोय, क्रमशः घृत, गुड़, मिश्री, शहद. गच्या स्वरसः पेयो मधुना सह मेह जित् । एरण्ड तेल और शुण्ठिके साथ सेवन करनेसे यथा(दो तोले ) गिलोयके स्वरसमें (६ मा.) । क्रम. बायु, मलावरोध, पित्त, कफ प्रबल वातरक्त शहद डालकर सेवन करनेसे प्रमेह रोग नए और आमवातका नाश करती है । होता है। ( ११७२ ) गुडूच्यादि कल्कः (वं. से. । इली.) ( ११६५ ) गुडूची स्वरसादि प्रयोगः । पिधेदेवं गुहूची या नागरं भद्रदारु य । (३. मा। बा. र.), पिबेत्सर्पपनैलेन उलीपदानां निवृत्तये ।। गुडूच्या स्वरसं कल्कं चूर्ण वा काथमेव वा। दीपदकी निवृत्ति के लिए गिलोय, अथवा प्रभूतकालमासेव्यं मुच्यते वातशोणितात् ।। मोट और देवदारुक कन्कको सरसों के तेल में गिला गिलोयका स्वरस. क क अथवा चूर्ण, वा काथ कर सेवन करना चाहिए । दीर्घ काल तक सेवन करनेमे वातरकका नाग ( ११७३ ) गुडूच्यादि क्वाथः । होता है। ( भा. प० । छर्दि, बं० से ० । अ. पि.) (११७० ) गुडूची हिमः । गुडूचीत्रिफलानिम्बपटोलेः कथितं जलम् । ( भा. ५.. . . । छर्दि०) पिधेन्मधुयुतं तेन छर्दिर्नश्यति पित्तजा ।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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