________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
कषायप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[९]
गिरिकर्णिका ( कोयल ) की जड़को पीस कर (११६१) गुडाईकयोगः (ग. नि. । अर्श० ) उसमें मिश्री और घृत मिलाकर प्रातःकाल सेवन गुडाकं भक्षयित्वा मदिरातर्पणं पिषेत् । करनेसे गण्डमालाका नाश होता है (प्र. वि. कोयट सस्नेहै : सतभिर्युक्तं बद्धविटगुदजातुरः।। की जड़ ६ मा० मिश्री ६ मा० और धी १ तोला अद्रक और गुडको मिलाकर मदिरा और सत्तु लेना चाहिए।)
से निर्मित धृतयुक्त तर्पगके साथ सेवन करनेसे (११५९)गिरिमलिकायंक्षीरम (वं.से. अति.) बवासीर रोगमें होनेवाला कब्ज नष्ट होता है। निकायमूलममलं गिरिमल्लिकायाः
(११६२-६४) गुडाईकाद्यास्त्रयो योगाः सम्पफलं द्वितयमम्बु चतु शरावे ।
(ग. नि. । शोफ०) नत्पादशेषसलिलं खलु शोषणीयं गुडाईकं वाऽथ सदारुविश्वं क्षीरे पलद्वयमिते कुशलैरजायाः॥
___ सनागरं वाऽथ किराततिक्तम् । प्रक्षिप्य माषकानष्टौ मधुनस्तत्र शीतले।
योगत्रयं श्रेष्ठतमं पदिष्ट रक्तातिसारी तत्पीत्वा नैरुज्यमिह विन्दति ।।
मित्यौषधं शोफहरं नराणाम् ।। ___ कुड़ेकी जड़की छाल और द्वितीय त्रिफला
सूजनको नष्ट करनेके लिए ( १ ) गुड़ और (खम्भारी, फालसा, और मुनका) १---१ पल (सब
अद्रक (२) देवदारु और सोंठ तथा (३) सोंठ और मिलाकर ४ पल) लेकर कूटकर ३२ पल पानी में
चिरायता; यह तीन प्रयोग अत्युत्तम हैं । पकाएं. और चौथा भाग जल शेष रहने पर छानलें।
( ११६५) गुडूचिकादि काथः । तत्पश्चात उसमें २ पल बकरीका दूध डाल कर
(हा. सं. । स्था. ३ अ. २) पुनः पकाएं, जब समस्त काथ जल जाए तो उतार
गुडूचिका निम्बदलानि शुण्ठी कर ठण्डा करके उसमें ८ माशे शहद मिलाकर पिएं।
मुस्तश्च कुस्तुम्बरु चन्दनानि । इससे रक्तातिसार नष्ट होता है।
काथं विदध्यात्कफपित्तवात
ज्वरं निहन्याच्च गुडूचिकाय ।। गिरिमालापञ्चककषायः (ग.नि. । ज्व. चि.)
प.) एष सर्वज्वरान्हन्ति हल्लासाधानरोचकान्। ( आरग्वधादि कवाय देखिए।)
प्रतिश्यायपिपासानः शोषदाहनिवारणः॥ (११६०) गुडदुग्धयोगः (यो.र.। मू. कृ. चि.) गिलोय, नीमके पत्ते, सोंठ, नागरमोथा, कुस्तुगुडेन मिश्रितं दुग्धं कदुष्णं कामतः पिबेत् । बरु (नैपाली धनिया) और लाल चन्दनका काथ मूत्रकृ षु सर्वेषु शर्करावातरोगनुत् ॥ सेवन करनेसे वातज, पित्तज और कफज इत्यादि
किश्चित् उ०॥ दुग्धको गुड़से मीठा करके सर्व प्रकारके ज्वर, हृल्लास (उबकाइ, जी मचलाना) यथेच्छ मात्रामें पीनेसे सब प्रकारके मूत्रकृच्छ्, शर्करा अरुचि, जुकाम, पिपासा, शोष और दाह आदि (ग) और वातरोगों (उष्ण वात) का नाश होता है।। रोग नष्ट होते हैं ।
भा. २
For Private And Personal