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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१३] ( रुकना) एवं सन्निपातज्वरका नाश होता है। टिपणो-जो ओषधि दो बार आती है वह यह काथ अत्यन्त दीपन पाचन (अग्निकी वृद्धि द्विगुण ली जाती है यथा इस प्रयोगमें कटेली । करने और आहार तथा दोषादिको पचाने वाला) है। (११८७ ) गुडूच्यादि काथ: (प्र० वि० पीपलका चूर्ण १ माशा डालना (हा० सं० । स्था. ३, अ. २) चाहिए।) गुडूची शतपुष्पा च द्राक्षा रास्ता पुनर्नवा । (११८५) गुडूच्यादि काथः (वं. से. । मे.रो.) प्रायमाणककाथश्च गुडैतिज्वरापहः॥ गिलोय, सौंफ, मुनक्का, राना, पुनर्नवा और गडूचीत्रिफलाकाथस्तथा लोहरजो युतः । अश्मजं महिषाक्षं वा तेनैव विधिना पिवेत्॥ त्रायमाणा ( बनफशा ) के काथमें गुड़ डालकर पीनेसे वातज्चर नष्ट होता है। गिलोय और त्रिफलेके काथमें लोह चूर्ण (० वि० गुड़ एक तोला मिलाना चाहिए। ) अथवा शिलाजीत और मैंसिया गूगल मिलाकर (११८८ ) गुडूच्यादि काथ: सेवन करनेसे मेदरोग नष्ट होता है। (हा० सं० ! स्था. ३ अ. २) (प्र० वि०-लोह चूर्णके स्थानमें एक रत्ती गुडूचिनिम्बत्वग्वासकश्च लोह-भस्मका प्रयोग किया जाय तो विशेष उत्तम शठी किरातं मगधा वृहत्यौ। है। शुद्ध लोह-चूर्ण भी उचित मात्रानुसार प्रयोग दावर्षी पटोली कथितं कषायं करनेमें कोई हानि प्रतीत नहीं होती । शिलाजीत पिबेन्नरः पित्तकफज्वरश्च ॥ और गूगलकी शास्त्रोक्त मात्रा ४ माशे है, परन्तु पित्तज और कफज वरमें गिलोय, नीमकी आज कल रोगियोंके बलानुसार आधेसे १ माशे छाल, बासा ( अडूसा ), कचूर, चिरायता, पीपल, तक ही सेवन कराना पर्याप्त है । ) छोटी और बड़ी कटेली, दारुहल्दी और पटोलपत्र (११८६ ) गुडूच्यादि काथः का काथ सेवन करना लाभदायक है। (बं० से० । मसू० चि०) (११८९) गुडच्यादि काथः (ग. नि. । व्यरा.) गुडूची मधुकं रास्ना पश्चमूलं कनिष्ठकम्। गृडूच्यतिविपोशीरं गिरिमल्ली च मोचकः । चन्दनं काश्मर्यफलं बलामूलं विकङ्कतम् ।। कुष्ठं लज्जावतीयष्टीमधुचन्दनसारिवाः॥ पाककाले मसूर्यान्तु वातजायां प्रयोजयेत् ।। एषां कषायः कथितो मधुना च विमिश्रितः । वातज मसूरिकाके पकनेके समय गिलोय, हन्तिज्वरातीसारं सकुक्षिशूलं निषेवितः ।। मुलहटी, रास्ना, लघु पञ्चमूल (शालपर्णी, पृष्टपर्णी, गिलोय, अतीस, खस, कुड़ेको छाल, मोचरस, बड़ी कटैली, कटैली, गोखरू), लाल चन्दन, कूट लज्जालु, मुलहटी, लाल चन्दन और सारिवाके खम्भारीके फल, खरैटीकी जड़ और कटैलीका काथमें शहद मिलाकर पीनेसे कुक्षि शूल युक्त काथ पिलाना हितकर है। वरातिसार नष्ट होता है । १ ज्वरे चेति साधुः For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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